अयोध्या मामले में मध्यस्थता पर सुन्नी वक्फ बोर्ड का बड़ा बयान, कहा-तीनों में कोई हमारा सुझाया नाम नहीं

नई दिल्ली: अयोध्या के पांच सौ साल पुराने विवाद को अब बातचीत से सुलझाने की कोशिश की जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अब तीन मध्यस्थों का पैनल अयोध्या विवाद की मध्यस्थता करेगा। इस फैसले को लेकर हर पक्ष की अलग-अलग राय है। महंत धर्मदास ने जल्द बातचीत का समर्थन किया। मुस्लिम पक्षकार भी मध्यस्थता के पक्ष में हैं।वहीं सुन्नी वक्फ बोर्ड का कहना है कि उन्होंने अपनी तरफ से किसी मध्यस्थ का नाम नहीं सुझाया था और तीनों नाम सुप्रीम कोर्ट ने खुद चुने हैं। दूसरी ओर श्री श्री रविशंकर का कहना है कि सबका सम्मान करना, सपनों को साकार करना, सदियों के संघर्ष का सुखांत करना और समाज में समरसता बनाए रखना, इस लक्ष्य की ओर सबको चलना है।

बता दें कि इससे पहले भी कई बार मध्यस्थता की कोशिशें हो चुकी हैं, लेकिन हर बार ये कोशिश असफल रही है। हालांकि, ये पहली बार हुआ है कि सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने इस मसले को मध्यस्थता के लिए भेजा है।

क्या है मामला

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2010 में अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद में फैसला देते हुए विवादित जमीन को तीन बराबर हिस्सों में बांटने का आदेश दिया था। कोर्ट ने जमीन को रामलला, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड में बांटने का आदेश दिया था साथ ही साफ किया था कि रामलला विराजमान को वही हिस्सा दिया जाएगा जहां वे विराजमान हैं। हाईकोर्ट के इस फैसले को सभी पक्षकारों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश से फिलहाल मामले में यथास्थिति कायम है।

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