आज की भाजपा में कितना प्रसांगिक होते अटल!
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिन पर विशेष
संजय सक्सेना,लखनऊ
25 दिसंबर का दिन हिन्दुस्तान की तारीख में अहम स्थान रखता है। 25 दिसंबर को जहां पूरी दूनिया ‘क्रिसमस डे’ मनाती है, वहीं भारत में ‘क्रिसमेस डे’ के अलावा इस दिन को भारत रत्न और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिन को भी मनाया जाता है। 25 दिसंबर 1924 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर में शिन्दे की छावनी में ब्राह्ममुहूर्त में अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म हुआ था। कहा जाता है कि महात्मा रामचंद्र वीर द्वारा रचित अमर कृति ‘विजय पताका’ पढ़कर अटल जी के जीवन की दिशा ही बदल गई थी।अटल जी ऐसे भारत निर्माण की कल्पना करना चाहते थ,ेे जिसमें जनता भूख-डर से, निरक्षरता और अभाव से मुक्त हो। ग्वालियर में जन्मे और 16 अगस्त 2018 को दिल्ली में दुनिया से ‘कूच’ कर गए पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के 96 वें जन्मदिन पर केन्द्र की मोदी और उत्तर प्रदेश की योगी सरकार कई कार्यक्रमों का आयोजन कर रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिन के मौके पर 25 दिसंबर को उत्तर प्रदेश के किसानों से संवाद का कार्यक्रम रखा है।इस संवाद में उत्तर प्रदेश के करीब 2500 इलाकों से किसान हिस्सा लेंगे। वही उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की 96वीं जयंती पर आगरा में अटल जी के पैतृक गाँव बटेश्वर में 14 करोड़ रुपये की विकास परियोजना शुरू करने की योजना बनाई है। बहुउद्देश्यीय सुविधा वाली इस परियोजना में ‘भारत रत्न श्री अटल बिहारी वाजपेयी संस्कृत संकल्प केंद्र’ बनाकर इसमें एक खुला थियेटर, लाइब्रेरी और बच्चों के लिए पार्क और अन्य सुविधाओं की व्यवस्था की जाएगी। साथ ही गांव में हाई मास्ट एलईडी लाइटें लगाई जाएंगी। कई अन्य राज्यों की भाजपा सरकारों ने भी अटल जी की याद में कार्यक्रम रखे हैं।
बहरहाल,अटल ही के 96 वें जन्मदिन पर एक तरफ केन्द्र की मोदी और राज्यों की भाजपा सरकारें तमाम कार्यक्रम आयोजित कर रही हैं तो दूसरी तरफ सवाल उठ रहा है कि यदि आज अटल जी जीवित होते तो वह आज की भाजपा में कितना प्रसांगिक होते, यह सवाल इस लिए उठ रहा है,क्योंकि मोदी-आडवाणी से इत्तर मोदी-शाह की भाजपा काफी बदल चुकी है। अटल और मोदी का सरकार चलाने का तरीका एकदम अलग है। मोदी-शाह की भाजपा अपने विरोधियों को अपनी नहीं उन्हीं की शैली और जुबान में जबाव देती है। मोदी-शाह वाला भाजपा आलाकमान ‘दूध का दूध, पानी का पानी’ करने में गुरेज नहीं करता है। मौजूदा भाजपा नेृतत्व यह नहीं भूला है कि किस तरह से अटल जी की सरकार एक वोट से गिर गई थी। तब अटल जी ने लोकसभा में अपने संबोधन के दौरान कांगे्रस और उनके साथ खड़े विपक्षी नेताओं से कहा था कि एक दिन ऐसा भी आएगा,जब संख्याबल हमारे साथ होगा। बात 28 मई, 1996 की है जब अटल जी सदन में अपनी सरकार का बहुमत नहीं सिद्ध कर पाए थे,तब अटल जी ने अपने भाषण में कहा था,‘ अघ्यक्ष महोदय, हम संख्याबल के सामने सिर झुकाते हैं। मैं अपना इस्तीफा राष्ट्रपति जी को देने जा रहा हूं.।’ आज मोदी के साथ जबर्दस्त संख्या बल है। इसी संख्या बल के सहारे उन्होंने कश्मीर से धारा-370 हटा दी। नागरिकता संशोधन कानून बदल दिया। मुस्लिम महिलाओं को इंस्टेंट तीन तलाक के अभिशाप से मुक्ति दिला दी। अयोध्या में भगवान राम लला का भव्य मंदिर निर्माण भले ही सुप्रीम कोर्ट के फैसले से हो रहा हो,लेकिन इसमें मोदी सरकार की इच्छाशक्ति का भी योगदान कम नहीं थी। विपक्ष के हो-हल्ले की चिंता किए बिना मोदी सरकार ने जीएसटी और नोट बंदी जैसे कड़े फैसले लिए। अटल जी को भले संख्याबल के सामने झुकना पड़ गया था,मोदी के साथ ऐसा कुछ नहीं है। बल्कि इसके उलट मोदी सरकार संख्याबल के सहारे विपक्ष के नापाक मंसूबों पर पानी फेरने में लगा है। अटल जी राजनीति में विरोधियों से संवाद पर जोर देेते थे,लेकिन मोदी सरकार विपक्ष से उतना ही संवाद करती है,जितना उसकी सरकार के कामकाम में फर्क न पड़े। इसी लिए वह अपने फैसले के खिलाफ होने वाले विरोध-प्रदर्शनों की भी चिंता नहीं करती है।
आज की तारीख में यह कहा जाए कि करीब 41 वर्ष पुरानी अटल-आडवाणी युग से काफी आगे निकल गई तो ऐसा कहना गलत नहीं होगा। अटल बिहारी वाजपेयी से नरेंद्र मोदी युग तक बीजेपी ने अपने 41 वर्षो के संघर्ष में तमाम तरह के उतार चढ़ाव से गुजरते हुए शून्य से शिखर तक का सफर तय किया है। 10 सदस्यों के साथ जिस बीजेपी की नींव पड़ी थी,वह आज पहाड़ सी ऊंचाई छू रही है। आज भाजपा के देश में 18 करोड़ के करीब सदस्य हैं। केंद्र से लेकर 18 राज्यों में अपनी या गठबंधन की सरकार है और पार्टी के 303 लोकसभा सांसद हैं। बीजेपी देश ही नहीं, दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा भी करती है।
अप्रैल 1980 में अटल बिहारी वाजपेयी,लाल कृष्ण आडवाणी,मुरली मनोहर जोशी,विजयाराजे सिधिंया, सिकंदर बख्त जैसे नेताओं ने मिलकर बीजेपी का गठन किया था। तब बीजेपी की कमान अटल बिहारी वाजपेयी को सौंपी गई थी और पार्टी ने उनके नेतृत्व में सत्ता के शिखर तक पहुंचने का सपना देखा था। चार साल के बाद 1984 में लोकसभा चुनाव हुए तो भाजपा मात्र 2 सीटों पर सिमट गई। इस हार ने बीजेपी को रास्ता बदलने पर मजबूर होना पड़ा और पार्टी की कमान कट्टर छवि के माने जाने वाले नेता लालकृष्ण आडवाणी को सौंपी गई। एक तरफ कट्टर छवि वाले लाल कृष्ण आडवाणी तो दूसरी तरफ पार्टी का उदार चेहरा समझे जाने वाले अटल बिहारी वाजयेपी की सियासी जुगलबंदी देखने लायक थी। आडवाणी भले ही पार्टी अध्यक्ष थे,लेकिन अटल जी को वह ‘राम’ की तरह मानते थे। कभी भी दोनों नेताओं के बीच मनभेद नहीं देखा गया।
खैर, आडवाणी के कंधों पर अब बीजेपी के नेतृत्व की जिम्मेदारी थी तो पार्टी पर नियंत्रण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का था। आडवाणी हिंदुत्व व राममंदिर मुद्दे को लेकर आगे बढ़े और इसके बाद ये रास्ता बनता हुआ सत्ता से शीर्ष तक चलता चला गया। यहां एक बात का और जिक्र जरूरी है।भारतीय जनता पार्टी पर अक्सर आरोप लगता रहता था की उसकी छवि कट्टर हिन्दुवादी थी। 1988 में भाजपा का एक फैसला उसके लिए टर्निंग प्वांइट साबित हुआ। इसी वर्ष हिमाचल के पालमपुर में बीजेपी के राष्ट्रीय अधिवेशन में अयोध्या मुद्दे को पार्टी के एजेंडे में शामिल कर लिया गया। लाल कृष्ण आडवाणी की चर्चित सोमनाथ से अयोध्या रथ यात्रा ने बीजेपी में नई ऊर्जा का संचार किया और आडवाणी की लोकप्रियता भी बढ़ी और वह संघ से लेकर पार्टी की नजर में काफी बुलंदी पर पहुंच गए। इसी के चलते बीजेपी को 1989 के लोकसभा चुनाव में नई संजीवनी मिली,जब बीजेपी दो सीटों से सीधे देश में दूसरे नंबर की पार्टी बन गई। इसी दौरान छह दिसंबर को अयोध्या में विवादित ढांचा गिरने और आडवाणी का नाम ‘जैन हवाला डायरी’ में आने के बाद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने आडवाणी से दूरी बना ली।
तत्पश्चात, बीजेपी और संघ परिवार ने आडवाणी के बजाय उदारवादी छवि वाले अटल बिहारी वाजपेयी के चेहरे के साथ आगे बढ़ने का फैसला किया। 1995 में मुंबई अधिवेशन में वाजपेयी को बीजेपी का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया गया। हालांकि, पार्टी की कमान आडवाणी के हाथों में रही। अटल-आडवाणी की जोड़ी ने बीजेपी को शून्य से शिखर तक पहुंचाने का काम किया। बीजेपी ने 1996 में अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई में पहली बार 13 दिन की सरकार बनाई. इसके बाद 1998 में पार्टी की 13 महीने तक सरकार चली। 1999 में फिर एक ऐसा वक्त आया, जब अटल बिहारी वाजपेयी ने बतौर प्रधानमंत्री अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया। इस तरह वह सबसे लंबे समय तक गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री रहे, लेकिन 2004 में बीजेपी की सत्ता में वापसी नहीं करा सके. इसके चलते बीजेपी को 10 साल तक सत्ता का वनवास झेलना पड़ा। यहीं से बीजेपी में मोदी युग की शुरुआत हुई। संघ की इच्छानुसार भारतीय जनता पार्टी ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को 2014 लोकसभा चुनाव के लिए पीएम उम्मीदवार चुना और अध्यक्ष बने अमित शाह। अमित शाह जो गुजरात में मोदी सरकार में भी मंत्री रहे थे। फिर मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने वो कर दिखाया, जो अभी तक नहीं हुआ था. 2014 में बीजेपी ने पहली बार पूर्ण बहुमत का आंकड़ा पार किया और आसानी से सरकार बनाई।
2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री और अमित शाह के पार्टी अध्यक्ष बनने के साथ ही बीजेपी की तीन धरोहर अटल, आडवाणी, मुरली मनोहर युग की समाप्ति हो गई। यह कहना गलत नहीं होगा कि अटल जी ने भले ही स्वास्थ्य कारणों से राजनीति को अलविदा कह दिया था,लेकिन आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी के सामने सक्रिय राजनीति से अलग जो जाने के अलावा कोई रास्ता ही नहीं बचा था।
अब भाजपा में मोदी युग चल रहा है। अटल युग समाप्त होने और मोदी युग के आगमन के साथ पार्टी का नेता ही नहीं संगठन, चुनाव लड़ने का तरीका, सरकार चलाने का तौर तरीका, फैसले लेने और उन्हें शिद्दत से लागू करने की तत्परता, पार्टी की नई पहचान बन गई बीजेपी अकेले या सहयोगियों के साथ सत्ता की उस ऊंचाई पर पहुंच गई, जहां पहुंचने का उसके संस्थापकों ने कल्पना भी नहीं की होगी। बीजेपी दूसरी बार पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में है तो सवाल यह भी खड़ा होने लगा है कि अटल और मोदी में कौन बड़ा नेता है।
अटल के जीवन दर्शन पर प्रकाश डाला जाए तो अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को और मृत्यु 16 अगस्त 2018 को हुई थी। भारत के तीन बार के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजयेयी पहले 16 मई से 1 जून 1996 तक, तथा फिर 19 मार्च 1998 से 22 मई 2004 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे। अटल जी न केवल सफल नेता रहे बल्कि वे हिंदी कवि, पत्रकार व एक प्रखर वक्ता भी थे। भारतीय जनसंघ के संस्थापकों में एक अटल 1968 से 1973 तक जनसंघ के अध्यक्ष भी रहे। उन्होंने लंबे समय तक राष्ट्रधर्म, पाञ्चजन्य और वीर अर्जुन आदि राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत अनेक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन भी किया।
चार दशकों से भारतीय संसद के सदस्य अटल जी लोकसभा के लिए दस और राज्य सभा के लिए दो बारं चुने गए थे। अटल जी लोकसभा का पहला चुनाव उत्तर प्रदेश के बलरामपुर से जीते थे। अटल ने लखनऊ के लिए संसद सदस्य के रूप में कार्य किया। 2005 मेें स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं के कारण सक्रिय राजनीति से सेवानिवृत्त हुए। अपना जीवन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के रूप में आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प लेकर प्रारंभ करने वाले वाजपेयी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार के पहले प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने गैर काँग्रेसी प्रधानमंत्री पद के 5 वर्ष बिना किसी समस्या के पूरे किए। आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प लेने के कारण इन्हे भीष्म पितामह भी कहा जाता है। वैसे अटल जी अक्सर मजाक में कहा करते थे कि अविवाहित जरूर हैं,लेकिन ब्रहमचारी नहीं रहे। अटल ने 24 दलों के गठबंधन से सरकार बनाई थी जिसमें 81 मंत्री थे।
आज भले मोदी को सख्त फैसले लेने के लिए जाना जाता हो,लेकिन अटल जी भी देशहित में कोई फैसला लेने में हिचकिचाते नहीं थे।उनकी सरकार के कुछ फैसले इसकी मिशाल हैं। अटल सरकार ने निजीकरण को बढ़ावा-विनिवेश की शुरुआत की तो संचार क्रांति का दूसरा चरण भी अटल राज में ही शुरू हुआ था। इसके अलावा सर्व शिक्षा अभियान, पोखरण का परीक्षण,पोटा कानून, संविधान समीक्षा आयोग का गठन, जातिवार जनगणना पर रोक जैसे फैसले लेकर अटल सरकार ने खूब सुर्खिंया बटोरी थीं।
अटल जी ने एक बार तो मौजूदा प्रधानमंत्री और तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री तक क राजधर्म का पालन करने की नसीहत दे दी थी। हर प्रधानमंत्री की तरह वाजपेयी के फैसलों को अच्छे और खराब की कसौटी पर कसा जाता रहा है, लेकिन गुजरात में 2002 में हुए दंगे के दौरान एक सप्ताह तक उनकी चुप्पी को लेकर वाजपेयी की सबसे ज्यादा आलोचना हुई थी। गोधरा कांड 26 फरवरी, 2002 से शुरू हुआ था और तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी का पहला बयान तीन मार्च, 2002 को आया जब उन्होंने कहा कि गोधरा से अहमदाबाद तक जिस तरह से लोगों को जिंदा जलाया जा रहा है वो देश के माथे पर दाग है, लेकिन उन्होंने इसे रोकने के लिए ठोस कदम नहीं उठाए।
करीब एक महीने बाद चार अप्रैल, 2002 को वाजपेयी अहमदाबाद गए और वहां वाजपेयी बोले भी तो केवल इतना ही कहा कि मोदी को राजधर्म का पालन करना चाहिए। हालांकि वे खुद राजधर्म का पालन क्यों नहीं कर पाए, ये सवाल उठता रहा और संभवत ये बात वाजपेयी को भी सालती रही।उन्होंने बाद में कई मौकों पर ये जाहिर किया कि वे चाहते थे कि मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर इस्तीफा दे दें ? लेकिन ना तो तब नरेंद्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री के पद से अपना इस्तीफा दिया और ना ही तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी ने राजधर्म का पालन करते हुए उन्हें हटाना उचित समझा। इसके बाद 2004 में दिए इंटरव्यू में उन्होंने(अटल जी) कहा कह दिया कि अगर हिंदुओं को जलाया नहीं जाता तो गुजरात में भी दंगे नहीं होते।
बहरहाल,अटल ही के 96 वें जन्मदिन पर एक तरफ केन्द्र की मोदी और राज्यों की भाजपा सरकारें तमाम कार्यक्रम आयोजित कर रही हैं तो दूसरी तरफ सवाल उठ रहा है कि यदि आज अटल जी जीवित होते तो वह आज की भाजपा में कितना प्रसांगिक होते, यह सवाल इस लिए उठ रहा है,क्योंकि मोदी-आडवाणी से इत्तर मोदी-शाह की भाजपा काफी बदल चुकी है। अटल और मोदी का सरकार चलाने का तरीका एकदम अलग है। मोदी-शाह की भाजपा अपने विरोधियों को अपनी नहीं उन्हीं की शैली और जुबान में जबाव देती है। मोदी-शाह वाला भाजपा आलाकमान ‘दूध का दूध, पानी का पानी’ करने में गुरेज नहीं करता है। मौजूदा भाजपा नेृतत्व यह नहीं भूला है कि किस तरह से अटल जी की सरकार एक वोट से गिर गई थी। तब अटल जी ने लोकसभा में अपने संबोधन के दौरान कांगे्रस और उनके साथ खड़े विपक्षी नेताओं से कहा था कि एक दिन ऐसा भी आएगा,जब संख्याबल हमारे साथ होगा। बात 28 मई, 1996 की है जब अटल जी सदन में अपनी सरकार का बहुमत नहीं सिद्ध कर पाए थे,तब अटल जी ने अपने भाषण में कहा था,‘ अघ्यक्ष महोदय, हम संख्याबल के सामने सिर झुकाते हैं। मैं अपना इस्तीफा राष्ट्रपति जी को देने जा रहा हूं.।’ आज मोदी के साथ जबर्दस्त संख्या बल है। इसी संख्या बल के सहारे उन्होंने कश्मीर से धारा-370 हटा दी। नागरिकता संशोधन कानून बदल दिया। मुस्लिम महिलाओं को इंस्टेंट तीन तलाक के अभिशाप से मुक्ति दिला दी। अयोध्या में भगवान राम लला का भव्य मंदिर निर्माण भले ही सुप्रीम कोर्ट के फैसले से हो रहा हो,लेकिन इसमें मोदी सरकार की इच्छाशक्ति का भी योगदान कम नहीं थी। विपक्ष के हो-हल्ले की चिंता किए बिना मोदी सरकार ने जीएसटी और नोट बंदी जैसे कड़े फैसले लिए। अटल जी को भले संख्याबल के सामने झुकना पड़ गया था,मोदी के साथ ऐसा कुछ नहीं है। बल्कि इसके उलट मोदी सरकार संख्याबल के सहारे विपक्ष के नापाक मंसूबों पर पानी फेरने में लगा है। अटल जी राजनीति में विरोधियों से संवाद पर जोर देेते थे,लेकिन मोदी सरकार विपक्ष से उतना ही संवाद करती है,जितना उसकी सरकार के कामकाम में फर्क न पड़े। इसी लिए वह अपने फैसले के खिलाफ होने वाले विरोध-प्रदर्शनों की भी चिंता नहीं करती है।
आज की तारीख में यह कहा जाए कि करीब 41 वर्ष पुरानी अटल-आडवाणी युग से काफी आगे निकल गई तो ऐसा कहना गलत नहीं होगा। अटल बिहारी वाजपेयी से नरेंद्र मोदी युग तक बीजेपी ने अपने 41 वर्षो के संघर्ष में तमाम तरह के उतार चढ़ाव से गुजरते हुए शून्य से शिखर तक का सफर तय किया है। 10 सदस्यों के साथ जिस बीजेपी की नींव पड़ी थी,वह आज पहाड़ सी ऊंचाई छू रही है। आज भाजपा के देश में 18 करोड़ के करीब सदस्य हैं। केंद्र से लेकर 18 राज्यों में अपनी या गठबंधन की सरकार है और पार्टी के 303 लोकसभा सांसद हैं। बीजेपी देश ही नहीं, दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा भी करती है।
अप्रैल 1980 में अटल बिहारी वाजपेयी,लाल कृष्ण आडवाणी,मुरली मनोहर जोशी,विजयाराजे सिधिंया, सिकंदर बख्त जैसे नेताओं ने मिलकर बीजेपी का गठन किया था। तब बीजेपी की कमान अटल बिहारी वाजपेयी को सौंपी गई थी और पार्टी ने उनके नेतृत्व में सत्ता के शिखर तक पहुंचने का सपना देखा था। चार साल के बाद 1984 में लोकसभा चुनाव हुए तो भाजपा मात्र 2 सीटों पर सिमट गई। इस हार ने बीजेपी को रास्ता बदलने पर मजबूर होना पड़ा और पार्टी की कमान कट्टर छवि के माने जाने वाले नेता लालकृष्ण आडवाणी को सौंपी गई। एक तरफ कट्टर छवि वाले लाल कृष्ण आडवाणी तो दूसरी तरफ पार्टी का उदार चेहरा समझे जाने वाले अटल बिहारी वाजयेपी की सियासी जुगलबंदी देखने लायक थी। आडवाणी भले ही पार्टी अध्यक्ष थे,लेकिन अटल जी को वह ‘राम’ की तरह मानते थे। कभी भी दोनों नेताओं के बीच मनभेद नहीं देखा गया।
खैर, आडवाणी के कंधों पर अब बीजेपी के नेतृत्व की जिम्मेदारी थी तो पार्टी पर नियंत्रण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का था। आडवाणी हिंदुत्व व राममंदिर मुद्दे को लेकर आगे बढ़े और इसके बाद ये रास्ता बनता हुआ सत्ता से शीर्ष तक चलता चला गया। यहां एक बात का और जिक्र जरूरी है।भारतीय जनता पार्टी पर अक्सर आरोप लगता रहता था की उसकी छवि कट्टर हिन्दुवादी थी। 1988 में भाजपा का एक फैसला उसके लिए टर्निंग प्वांइट साबित हुआ। इसी वर्ष हिमाचल के पालमपुर में बीजेपी के राष्ट्रीय अधिवेशन में अयोध्या मुद्दे को पार्टी के एजेंडे में शामिल कर लिया गया। लाल कृष्ण आडवाणी की चर्चित सोमनाथ से अयोध्या रथ यात्रा ने बीजेपी में नई ऊर्जा का संचार किया और आडवाणी की लोकप्रियता भी बढ़ी और वह संघ से लेकर पार्टी की नजर में काफी बुलंदी पर पहुंच गए। इसी के चलते बीजेपी को 1989 के लोकसभा चुनाव में नई संजीवनी मिली,जब बीजेपी दो सीटों से सीधे देश में दूसरे नंबर की पार्टी बन गई। इसी दौरान छह दिसंबर को अयोध्या में विवादित ढांचा गिरने और आडवाणी का नाम ‘जैन हवाला डायरी’ में आने के बाद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने आडवाणी से दूरी बना ली।
तत्पश्चात, बीजेपी और संघ परिवार ने आडवाणी के बजाय उदारवादी छवि वाले अटल बिहारी वाजपेयी के चेहरे के साथ आगे बढ़ने का फैसला किया। 1995 में मुंबई अधिवेशन में वाजपेयी को बीजेपी का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया गया। हालांकि, पार्टी की कमान आडवाणी के हाथों में रही। अटल-आडवाणी की जोड़ी ने बीजेपी को शून्य से शिखर तक पहुंचाने का काम किया। बीजेपी ने 1996 में अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई में पहली बार 13 दिन की सरकार बनाई. इसके बाद 1998 में पार्टी की 13 महीने तक सरकार चली। 1999 में फिर एक ऐसा वक्त आया, जब अटल बिहारी वाजपेयी ने बतौर प्रधानमंत्री अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया। इस तरह वह सबसे लंबे समय तक गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री रहे, लेकिन 2004 में बीजेपी की सत्ता में वापसी नहीं करा सके. इसके चलते बीजेपी को 10 साल तक सत्ता का वनवास झेलना पड़ा। यहीं से बीजेपी में मोदी युग की शुरुआत हुई। संघ की इच्छानुसार भारतीय जनता पार्टी ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को 2014 लोकसभा चुनाव के लिए पीएम उम्मीदवार चुना और अध्यक्ष बने अमित शाह। अमित शाह जो गुजरात में मोदी सरकार में भी मंत्री रहे थे। फिर मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने वो कर दिखाया, जो अभी तक नहीं हुआ था. 2014 में बीजेपी ने पहली बार पूर्ण बहुमत का आंकड़ा पार किया और आसानी से सरकार बनाई।
2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री और अमित शाह के पार्टी अध्यक्ष बनने के साथ ही बीजेपी की तीन धरोहर अटल, आडवाणी, मुरली मनोहर युग की समाप्ति हो गई। यह कहना गलत नहीं होगा कि अटल जी ने भले ही स्वास्थ्य कारणों से राजनीति को अलविदा कह दिया था,लेकिन आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी के सामने सक्रिय राजनीति से अलग जो जाने के अलावा कोई रास्ता ही नहीं बचा था।
अब भाजपा में मोदी युग चल रहा है। अटल युग समाप्त होने और मोदी युग के आगमन के साथ पार्टी का नेता ही नहीं संगठन, चुनाव लड़ने का तरीका, सरकार चलाने का तौर तरीका, फैसले लेने और उन्हें शिद्दत से लागू करने की तत्परता, पार्टी की नई पहचान बन गई बीजेपी अकेले या सहयोगियों के साथ सत्ता की उस ऊंचाई पर पहुंच गई, जहां पहुंचने का उसके संस्थापकों ने कल्पना भी नहीं की होगी। बीजेपी दूसरी बार पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में है तो सवाल यह भी खड़ा होने लगा है कि अटल और मोदी में कौन बड़ा नेता है।
अटल के जीवन दर्शन पर प्रकाश डाला जाए तो अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को और मृत्यु 16 अगस्त 2018 को हुई थी। भारत के तीन बार के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजयेयी पहले 16 मई से 1 जून 1996 तक, तथा फिर 19 मार्च 1998 से 22 मई 2004 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे। अटल जी न केवल सफल नेता रहे बल्कि वे हिंदी कवि, पत्रकार व एक प्रखर वक्ता भी थे। भारतीय जनसंघ के संस्थापकों में एक अटल 1968 से 1973 तक जनसंघ के अध्यक्ष भी रहे। उन्होंने लंबे समय तक राष्ट्रधर्म, पाञ्चजन्य और वीर अर्जुन आदि राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत अनेक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन भी किया।
चार दशकों से भारतीय संसद के सदस्य अटल जी लोकसभा के लिए दस और राज्य सभा के लिए दो बारं चुने गए थे। अटल जी लोकसभा का पहला चुनाव उत्तर प्रदेश के बलरामपुर से जीते थे। अटल ने लखनऊ के लिए संसद सदस्य के रूप में कार्य किया। 2005 मेें स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं के कारण सक्रिय राजनीति से सेवानिवृत्त हुए। अपना जीवन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के रूप में आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प लेकर प्रारंभ करने वाले वाजपेयी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार के पहले प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने गैर काँग्रेसी प्रधानमंत्री पद के 5 वर्ष बिना किसी समस्या के पूरे किए। आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प लेने के कारण इन्हे भीष्म पितामह भी कहा जाता है। वैसे अटल जी अक्सर मजाक में कहा करते थे कि अविवाहित जरूर हैं,लेकिन ब्रहमचारी नहीं रहे। अटल ने 24 दलों के गठबंधन से सरकार बनाई थी जिसमें 81 मंत्री थे।
आज भले मोदी को सख्त फैसले लेने के लिए जाना जाता हो,लेकिन अटल जी भी देशहित में कोई फैसला लेने में हिचकिचाते नहीं थे।उनकी सरकार के कुछ फैसले इसकी मिशाल हैं। अटल सरकार ने निजीकरण को बढ़ावा-विनिवेश की शुरुआत की तो संचार क्रांति का दूसरा चरण भी अटल राज में ही शुरू हुआ था। इसके अलावा सर्व शिक्षा अभियान, पोखरण का परीक्षण,पोटा कानून, संविधान समीक्षा आयोग का गठन, जातिवार जनगणना पर रोक जैसे फैसले लेकर अटल सरकार ने खूब सुर्खिंया बटोरी थीं।
अटल जी ने एक बार तो मौजूदा प्रधानमंत्री और तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री तक क राजधर्म का पालन करने की नसीहत दे दी थी। हर प्रधानमंत्री की तरह वाजपेयी के फैसलों को अच्छे और खराब की कसौटी पर कसा जाता रहा है, लेकिन गुजरात में 2002 में हुए दंगे के दौरान एक सप्ताह तक उनकी चुप्पी को लेकर वाजपेयी की सबसे ज्यादा आलोचना हुई थी। गोधरा कांड 26 फरवरी, 2002 से शुरू हुआ था और तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी का पहला बयान तीन मार्च, 2002 को आया जब उन्होंने कहा कि गोधरा से अहमदाबाद तक जिस तरह से लोगों को जिंदा जलाया जा रहा है वो देश के माथे पर दाग है, लेकिन उन्होंने इसे रोकने के लिए ठोस कदम नहीं उठाए।
करीब एक महीने बाद चार अप्रैल, 2002 को वाजपेयी अहमदाबाद गए और वहां वाजपेयी बोले भी तो केवल इतना ही कहा कि मोदी को राजधर्म का पालन करना चाहिए। हालांकि वे खुद राजधर्म का पालन क्यों नहीं कर पाए, ये सवाल उठता रहा और संभवत ये बात वाजपेयी को भी सालती रही।उन्होंने बाद में कई मौकों पर ये जाहिर किया कि वे चाहते थे कि मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर इस्तीफा दे दें ? लेकिन ना तो तब नरेंद्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री के पद से अपना इस्तीफा दिया और ना ही तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी ने राजधर्म का पालन करते हुए उन्हें हटाना उचित समझा। इसके बाद 2004 में दिए इंटरव्यू में उन्होंने(अटल जी) कहा कह दिया कि अगर हिंदुओं को जलाया नहीं जाता तो गुजरात में भी दंगे नहीं होते।