कांग्रेस के नए अध्यक्ष को लेकर सीनियर नेताओं की होगी बैठक, CWC मीटिंग का दिन होगा तय
नई दिल्लीः राहुल गांधी के अध्यक्ष पद से इस्तीफे के बाद कांग्रेस के नए अध्यक्ष को लेकर गुरुवार को पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की बैठक हो सकती है. सूत्रों के हवाले से खबर है कि कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल आज दिल्ली आएंगे. ऐसा बताया जा रहा है कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आज यह तक कर सकते हैं कि कांग्रेस वर्किंग कमेटी यानि सीडब्ल्यूसी की अगली बैठक कब होगी. ऐसा भी खबर है कि अगले एक या दो दिन में यह बैठक हो सकती है और इसी बैठक में कांग्रेस पार्टी के नए अध्यक्ष का नाम तय हो जाएगा.
इससे पहले कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिए जाने को लेकर उनकी बहन और पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने उनकी सराहना की. प्रियंका ने राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़ने के फैसले को साहसी कदम बताया और कहा है कि बहुत कम लोगों में ऐसा साहस होता है जो तुमने दिखाया है. प्रियंका गांधी वाड्रा ने बुधवार को अपने ऑफिशियल ट्विटर अकाउंट से लिखा, ‘बहुत कम लोगों में ऐसा साहस होता है जो आपने किया है, आपके फैसले का दिल से सम्मान करती हूं.’
बता दें कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने बुधवार को घोषणा कर दी थी. राहुल ने अपने ट्विटर अकाउंट के जरिए कहा, “‘कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष के तौर पर मैं 2019 के चुनाव के नुकसान के लिए जिम्मेदार हूं. हमारी पार्टी के भविष्य के विकास के लिए जवाबदेही महत्वपूर्ण है. यही कारण है कि मैं कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे रहा हूं.”
राहुल ने चार पेज का एक पत्र भी लिखा जिसमें उन्होंने कहा, “पार्टी के पुनर्निर्माण के लिए कठोर निर्णयों की आवश्यकता होती है और 2019 की विफलता के लिए कई लोगों को जवाबदेह बनाना होगा.” अपने पत्र में राहुल ने कहा, “आरएसएस बीजेपी के वैचारिक माता-पिता, देश के संस्थागत ढांचे पर कब्जा करने में सफल रहे. उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनाव में चुनाव आयोग की भूमिका पर सवाल उठाने की मांग की.”
राहुल ने कहा, “हमने चुनाव किसी राजनीतिक पार्टी के खिलाफ नहीं लड़ा बल्कि हमने भारतीय राज्य की पूरी मशीनरी से लड़ाई लड़ी, जिसका हर संस्थान विपक्ष के खिलाफ था. इससे अब साबित हो गया है कि हमारी संस्थागत तटस्थता अब भारत में मौजूद नहीं है.” राहुल ने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जीत उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की सांस नहीं रोकती है. उन्होंने कहा कि कोई भी राशि या प्रचार कभी भी सच्चाई की रोशनी को नहीं छिपा सकता है.
राहुल ने अपनी चिट्ठी में जो लिखा, उसका टेक्स्ट कुछ इस प्रकार है
“मेरा संघर्ष कभी भी राजनीतिक सत्ता के लिए साधारण लड़ाई नहीं रहा. मुझे बीजेपी के प्रति कोई घृणा या क्रोध नहीं है, लेकिन मेरे शरीर में मौजूद रक्त की हर बून्द सहज रूप से भारत के उनके विचार का प्रतिरोध करती है. यह प्रतिरोध इसलिए पैदा होता है, क्योंकि मेरे होने की अनुमति एक भारतीय विचार से मिलती है और जो हमेशा उनके साथ सीधे टकराव में रहा है. यह कोई नई लड़ाई नहीं है; यह हजारों वर्षों से हमारी धरती पर छाई हुई है. जहां वे मतभेद देखते हैं, मैं समानता देखता हूं. जहां वे घृणा से देखते हैं, मैं प्रेम से देखता हूं. जहाँ वे डरते हैं, मैं गले लगाता हूं.
किसी भी तरह से मैं इस लड़ाई से पीछे नहीं हट रहा हूं. मैं कांग्रेस पार्टी का एक निष्ठावान सिपाही और भारत का एक समर्पित बेटा हूं और अपनी अंतिम सांस तक उनकी सेवा और सुरक्षा करता रहूंगा.
हमने एक मजबूत और गरिमापूर्ण चुनाव लड़ा. हमारा अभियान भारत के सभी लोगों, धर्मों और समुदायों के लिए भाईचारे, सहिष्णुता और सम्मान में से एक था. मैंने व्यक्तिगत रूप से प्रधान मंत्री, आरएसएस और उन सभी संस्थानों से लड़ाई लड़ी है, जिन पर उन्होंने कब्जा कर रखा है. मैंने संघर्ष किया क्योंकि मैं भारत से प्यार करता हूं और भारत ने जिन आदर्शों का निर्माण किया था, उनकी रक्षा के लिए मैंने संघर्ष किया. कई बार, मैं पूरी तरह से अकेला खड़ा था और मुझे इस पर बहुत गर्व है. मैंने अपने कार्यकर्ताओं और पार्टी के सदस्यों, पुरुषों और महिलाओं की भावना और समर्पण से बहुत कुछ सीखा है, जिन्होंने मुझे प्यार और शालीनता के बारे में सिखाया है.
एक स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए किसी देश के संस्थानों की निष्पक्षता की आवश्यकता होती है; एक चुनाव बिना मध्यस्थों के निष्पक्ष नहीं हो सकता – एक स्वतंत्र प्रेस, एक स्वतंत्र न्यायपालिका और एक पारदर्शी चुनाव आयोग जो उद्देश्यपूर्ण और तटस्थ हो. न ही एक चुनाव स्वतंत्र हो सकता है, अगर एक पार्टी का वित्तीय संसाधनों पर पूर्ण एकाधिकार हो.
हमने 2019 के चुनाव में हमारी लड़ाई एक राजनीतिक पार्टी से नहीं थी. बल्कि, हमने पूरी सरकारी मशीनरी से लड़ाई लड़ी, जिसका हर संस्थान विपक्ष के खिलाफ था. अब यह स्पष्ट हो गया है कि हमारी संस्थागत तटस्थता अब अस्तित्व में नहीं है. हमारे देश की संस्थागत संरचना पर कब्जा करने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के घोषित उद्देश्य अब पूरे हो गए हैं. हमारा लोकतंत्र बुनियादी रूप से कमजोर हुआ है. एक वास्तविक खतरा यह है कि अब से, चुनाव भारत के भविष्य को तय करने के बजाय औपचारिकता मात्र रह जाएंगे.