जाने माने गीतकार गोपालदास नीरज का निधन, फिल्म व साहित्य जगत शोकमग्न
नई दिल्ली/ अलीगढ़। फिल्मी दुनिया के जाने -माने गीतकार गोपालदास नीरज (94) का एम्स में निधन हो गया। वे काफी समय से बीमार थे। गोपालदास नीरज ने हिन्दी फिल्मो के लिए बेशकीमती गाने दिए। लोग आज भी उनके गीतों को याद करते हैं। नीरज हिन्दी साहित्यकार, शिक्षक और कवि सम्मेलनों के मंचों पर पर काव्य वाचक एवं फिल्मों के गीत लेखक हैं। वे पहले व्यक्ति हैं जिन्हें शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में भारत सरकार ने दो-दो बार सम्मानित किया। पहले पद्मश्री से, उसके बाद पद्म भूषण से। इतना ही नहीं फिल्मों में सर्वश्रेष्ठ गीत लेखन के लिए उन्हें लगातार तीन बार फिल्म फेयर पुरस्कार भी मिला।
बम्बई की ज़िन्दगी से भी उनका जी बहुत जल्द उचट गया। वे फिल्म नगरी को अलविदा कहकर फिर अलीगढ़ वापस लौट आये। तब से आज तक वहीं रहकर स्वतन्त्र रूप से मुक्ताकाशी जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
इन गीतों से चर्चित हुए
पहली ही फिल्म में उनके लिखे कुछ गीत जैसे कारवाँ गुजर गया गुबार देखते रहे और देखती ही रहो आज दर्पण न तुम, प्यार का यह मुहूरत निकल जायेगा बेहद लोकप्रिय हुए जिसका परिणाम यह हुआ कि वे बम्बई में रहकर फ़िल्मों के लिये गीत लिखने लगे। फिल्मों में गीत लेखन का सिलसिला मेरा नाम जोकर, शर्मीली और प्रेम पुजारी जैसी अनेक चर्चित फिल्मों में कई वर्षों तक जारी रहा।
इन गीतों के लिए मिला फिल्मफेयर पुरस्कार
नीरज जी को फ़िल्म जगत में सर्वश्रेष्ठ गीत लेखन के लिये उन्नीस सौ सत्तर के दशक में लगातार तीन बार यह पुरस्कार दिया गया। उनके द्वारा लिखे गये पुररकृत गीत हैं-1970: काल का पहिया घूमे रे भइया! (फ़िल्म:चन्दा और बिजली)
-1971: बस यही अपराध मैं हर बार करता हूँ (फ़िल्म: पहचान)
-1972: ए भाई! ज़रा देख के चलो (फ़िल्म: मेरा नाम जोकर)