तीस को श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद पर सुनवाई
अजय कुमार,लखनऊ
लखनऊ। 30 सितंबर का दिन काफी महत्वपूर्ण हो गया है। इस दिन अयोध्या में विवादित ढांचा गिराए जाने के मामले पर फैसला आने के साथ-साथ मथुरा की एक अदालत में श्रीकष्ण जन्मभूमि विवाद की सुनवाई भी शुरू हो सकती है। आज 28 सितंबर को श्रीकृष्ण जन्मभूमि को लेकर दायर याचिका को मथुरा की अदालत ने सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया, जिसके बाद 30 सितंबर से सुनवाई की प्रक्रिया और बहस शुरू होने के आसार हैं। दरअसल, मथुरा की अदालत में दायर हुए एक सिविल मुकदमे में श्रीकृष्ण जन्मभूमि परिसर की 13.37 एकड़ जमीन का मालिकाना हक मांगा गया है। इसके साथ ही मंदिर स्थल से शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की अपील की गई है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद 500 वर्ष पुराना रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह गया है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला सभी ने दिल खोलकर स्वीकार किया। यह सबसे अच्छा रहा। और अच्छा होता, अगर यह विवाद कोर्ट की बजाए दोनों पक्ष मिल-बैठकर सुलझा लेते,लेकिन यह हो नहीं सका,जबकि कोर्ट से बाहर समझौते की काफी कोशिश की गई थी।सुप्रीम कोर्ट भी चाहता था कि विवाद कोर्ट से बाहर सुलझ जाए। इसलिए उसने बकायदा गाइड लाइन जारी करके समझौते के लिए दोनों पक्षों को एक मंच पर बैठाया भी, परंतु कोई निर्णय निकल नहीं पाया। फैसला सुप्रीम कोर्ट से आया,इसलिए अब कोई पक्ष यह नहीं कह सकता है कि उसने देश में सौहार्द बना रहे इसके लिए ‘दरियादिली’ दिखाते हुए विवादित स्थल से अपना दावा छोड़ दिया था। इसी लिए अब कोई यह सवाल नहीं खड़ा कर सकता है कि क्यों काशी या मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद को अदालत में ले जाकर ‘सुलगाया’ जा रहा है। सब जानते हैं कि चाहंे सोमनाथ ज्योतिर्लिंग हो या फिर काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग अथवा प्रभु राम एवं भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि सहित हिन्दुओं की आस्था के प्रतीक अन्य तीर्थस्थलों को मुगल काल में जानबूझ कर नुकसान पहुंचाया गया था। उस पर बल पूर्वक कब्जा कर लिया गया था,जिसके खिलाफ हिन्दू समाज वर्षो से संघर्षशील था। सोमनाथ और अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि को उसका पुराना गौरव(मुगल काल से पूर्व का) हासिल हो गया है तो काशी और मथुरा को इससे क्यों वंचित रखा जाए। इसी लिए अब काशी और मथुरा की लड़ाई अदालत की चैखट पर पहुंच गई है। किसी का अदालत जाना गैर-कानूनी नहीं हो सकता है, जिसके पास साक्ष्य-प्रमाण होंगे फैसला उसी के पक्ष में आएगा, लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि अभी तक विश्व हिन्दू परिषद(विहिप) और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ(आरएसएस) जैसे संगठनों ने काशी-मथुरा विवाद से अपने आप को किनारे कर रखा है। सिर्फ साधू-संत और कुछ अखाड़े ही काशी-मथुरा के लिए आवाज उठा रहे हैं,लेकिन यह भी नहीं भूलना चाहिए कि रामजन्म भूमि विवाद के समय भी ऐसा ही कुछ हुआ था। पहले साधू-संतों ने रामजन्म भूमि विवाद का मसला उठाया था, बाद में जब विहिप और आरएसएस को लगा कि इससे जनभावनाएं जुड़ गई हैं तो वह ही नहीं, भारतीय जनता पार्टी तक इसमें कूद पड़ी थी।
बहरहाल, गत दिनों प्रयागराज में हुई अखाड़ा परिषद की बैठक में संतों ने मुस्लिम धर्मालंबियों से काशी-मथुरा के विवादित स्थल को स्वेच्छा से हिंदुओं को सौंपने की अपील की है। अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरी ने कहा है कि सभी पक्षों से बात कर सहमति बनाने का प्रयास किया जाएगा और सहमति न बनने पर संवैधानिक तरीके से कोर्ट के माध्यम से कानूनी लड़ाई लड़ी जाएगी। अयोध्या की तरह काशी और मथुरा की मुक्ति के लिए भी अखाड़ा परिषद ने आरएसएस-वीएचपी से समर्थन मांगा है। अखाड़ा परिषद की बैठक में तय किया गया है कि विहिप-आरएसएस और हिन्दू संगठनों की मदद से काशी-मथुरा की मुक्ति के लिए आंदोलन खड़ा करेगा।
बात अयोध्या के बाद श्रीकृष्ण जन्मस्थान का मुद्दा गरमाने की कि जाए तो मथुरा की सीनियर सिविल जज छाया शर्मा की कोर्ट में श्रीकृष्ण ठाकुरजी विराजमान सहित कई भक्तों को वादी बनाते हुए पूर्व में हुई डिक्र को रद्द करनेे के लिए वाद दायर किया गया है। यूपी सेंट्रल वक्फ बोर्ड, कमेटी आॅफ मैनेजमेंट ट्रस्ट ईदगाह मजिस्द, श्री कृष्ण जन्मभूति ट्रस्ट, श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान को पार्टी बनाया है। लखनऊ निवासी सुप्रीम कोर्ट के वकील हरीशंकर जैन और विष्णु शंकर जैन में दायर वाद में 13.37 एकड़ भूमि के मालिकाना हक को लेकर 1968 में हुए समझौते को गलत बताया है। उन्होंने भूमि पर श्रीकृष्ण जन्मभूमि का मालिकाना हक मांगा है। श्रीकृष्ण जन्मस्थान के बराबर से शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की मांग की है। मथुरा अदालत में सिविल सूट दाखिल किए जाने पर संत समाज में खुशी की लहर दौड़ गई है। सिविल जज छाया शर्मा ने याचिका सुनवाई के लिए स्वीकार कर ली है। 30 सितंबर से सुनवाई की प्रक्रिया और बहस शुरू होने के आसार हैं। यह श्रीकृष्ण जन्म स्थान की भूमि वापस दिलाने के मामले में पहली सुनवाई होगी।
इस संबंध मंे जब साधू-संतो से पूछा गया तो स्वामी रामदेवानंद सरस्वती, उमाशक्ति पीठ, वंृदावन का कहना था कि लखनऊ की एक महिला अधिवक्ता रंजना अग्नहोत्री समेत 6 लोगों द्वारा सविल जज सीनियर डिवीजन की अदालत में श्रीकृष्ण जन्मभूमि की भूमि को 1968 में हुए समझौता और उसके आधार हुई डिक्री को रद करके 13.37 एकड़ भूमि को वापस की जाने की जो अपील की गई है, वह स्वागत योग्य है। मंहत फूलडोल बिहारी दास, अध्यक्ष चतुः सम्प्रदाय विरक्त वैष्णव परिषद् का कहना था कि भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि को मुस्लिम आक्रांताओं द्वारा जिस तरह से कब्जा कर मजिस्द का निर्माण किया था। इससे करोड़ो हिंदुओं की धार्मिक भावनाएं आज तक आहत हो रही हैं। आक्रांताओं की ऐसी निशानी को मिटाकर भगवान की जन्मभूमि की जमीन भगवान को वापस करने का समय आ गया है। याचिकार्ताओं ने मथुरा कोर्ट में वाद दायर कर जो पहल की है। संत समाज उसमें हर संभव सहयोग करेगा।
साधू-संतो से इत्तर जब कानूनविद्वों से पूछा गया गया तो उनका कहना था कि तमाम लोगों ने श्रीकृष्ण जन्मस्थान का अतीत से लेकर वर्तमान तक एक समग्र अध्ययन किया गया है। मथुरा के सिविल जज सीनियर डिवीजन कोर्ट में दायर 57 पेज के दावे मेें भी इसकी झलक साफ दिखती है। सुप्रीम कोर्ट ने श्रीराम मंदिर के पक्ष में दिए फेसले के पैरा 117 में ‘संकल्प अमर रहने‘ का स्पष्ट उल्लेख किया है, यह वाक्य इस मामले में नजीर बन सकता है। श्रीकृष्ण विराजमान व अन्य पक्षकारों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हरिशंकर जैन व उनके पुत्र विष्णु शंकर जैन ने वाद दायर किया है। हरिशंकर ने 40 साल व विष्णु शंकर ने 10 साल तक राम मंदिर की पैरवी की है। विष्णु शंकर के मुताबिक राजा वीर सिंह बुदेंला ने वर्ष 1618 में 33 लाख रूपये की लागत से श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर मंदिर का दोबारा निर्माण कराया था। 1760 में औरंगजेब ने मंदिर को ध्वस्त करा मूर्तिया को हटवा दिया।
गौरतलब हो, 188 वर्षों में दसवीं बार श्रीकृष्ण जन्मस्थान और शाही मस्जिद ईदगाह का विवाद अदालत की चैखट पर पहुंचा है। अब तक नौ बार अलग-अलग कोर्ट में अलग-अलग मुद्दों को लेकर मुकदमें दाखिल किए गए। अब दसवीं बार मुकदमा दायर किया गया। इस लिहाज से 188 वर्षों में दस बार मामला न्यायालय पहुंचा है। पहला मुकदमा 15 मार्च 1832 को अताउल्ला खातिब ने कलेक्टर की कोर्ट में दायर किया था। उधर, प्रयागराज में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि कहते हैं कि श्रीकृष्ण जन्मभूमि व काशी विश्वनाथ मंदिर को पूरी तरह मुक्त होना चाहिए।
बात पूर्व में हुए समझौते की कि जाए तो श्रीकृष्ण जन्मस्थान और शाही मजिस्द ईदगाह के विवाद 1832 से लेकर 1968 तक 136 साल चला था। इसके बाद ढाई रूपये से स्टांप पेपर पर समझौता हो गया था। तत्कालीन जिलाधिकारी व पुलिस अधीक्षक के सुझाव पर श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ और शाही मस्जिद ईदगाह कमेटी ने दस प्रमुख बिंदुओं पर समझौता किया था। जिस समझौता को अवैध करार देते हुए कोर्ट में दाखिल दावे में मस्जिद को हटाने की मांग की गई है।