धोनी के दस्ताने पर लगा ‘लोगो’ पैरा स्पेशल फोर्सेज़ का नहीं, सेना नहीं देगी विवाद में दखल
नई दिल्ली: ICC और BCCI के बीच भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी महेंद्र सिंह धोनी के दस्तानों के लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है. सेना का रुख एकदम साफ़ है. धोनी ने दस्ताने पर पैराशूट रेजीमेंट के जिस लोगो को लगाया है, उसके बारे में सेना का कहना है कि वह पैराशूट रेजीमेंट का है ही नहीं. सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, हम इस मामले में कोई दखल नहीं देना चाहते क्योंकि ये बैज भारतीय सेना की पैराशूट रेजीमेंट का नहीं है. चाहे भले ये लोगो उससे मिलता-जुलता हो.
भारतीय सेना का कोई भी बैज, फ्लैग या निशान एक खास पैटर्न, खास तरीक़े के रंग और खास तरह के आकार का होता है, तभी उसे आधिकारिक रूप से मान्यता दी जाती है. पैराशूट रेजीमेंट की कुल 9 बटालियन स्पेशल फोर्सेज़ हैं और 5 एयरबोर्न कमांडो बटालियन. स्पेशल फोर्सेज़ की बटालियन के नाम के आगे SF लिखा जाता है. जैसे 9 PARA(SF). केवल इन 9 बटालियनों के सैनिक ही इस बैज को पहनते हैं. इसमें दो पंखों के बीच उल्टा कमांडो डैगर बना होता है और नीचे हिंदी में बलिदान लिखा होता है. इस बैज को लाल रंग की बैक ग्राउंड पर बनाया जाता है और इसे कमीज़ के दायीं ओर नेम प्लेट के नीचे पहना जाता है.
सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, धोनी ने जिस बैज को पहना है, उसका रंग या आकार उस बैज जैसा नहीं है, जिसतरह के बैज का इस्तेमाल पैरा रेजीमेंट की स्पेशल फोर्सेज़ यानि PARA SF में किया जाता है. धोनी के ग्लब्स में केवल पंख और डैगर बने हैं, उनके नीचे बलिदान नहीं लिखा है. ये लाल रंग की बैकग्राउंड पर भी नहीं बना है, इसलिए इसे PARA SF का नहीं माना जा सकता.
बेहद मुश्किल होता है इस बलिदान बेज को पाना
भारतीय सेना में PARA SF का बलिदान बैज पहनना बहुत फख्र की बात मानी जाती है, क्योंकि इसे हासिल करना बेहद मुश्किल होता है. ये बैज केवल उन्हीं सैनिकों को मिल पाता है, जिन्होंने किसी PARA SF बटालियन में अपना प्रोबेशन पूरा कर लिया हो. इसका अर्थ है कि उन्होंने बटालियन में 3 से 6 महीने के तय समय तक एक्टिव ड्यूटी पूरी कर ली हो. ये वक्त किसी भी सैनिक के लिए सबसे ज्यादा कड़ी आजमाइश का होता है. इस दौरान सैनिक को सहनशक्ति की हद तक शारीरिक और मानसिक दबाव से गुजरना होता है. इसमें 72 घंटे तक बिना सोए सैनिक कार्रवाइयों में भाग लेना, बिना खाना-पानी के बहुत ज्यादा शारीरिक मेहनत करना, हाथ-पांव बांधकर पानी में तैरना जैसी कसौटियां होती हैं. लेकिन सबसे मुश्किल होती है आखिरी परीक्षा जिसमें सैनिक को 25 किलो वज़न और पूरे सैनिक साजोसामान के साथ 100 किमी तक दौड़ना होता है.
इन सारी कार्रवाइयों में उसका मनोबल आजमाने के लिए उसे हतोत्साहित किया जाता रहता है. इस परीक्षा में पास होने के बाद ही कोई सैनिक PARA SF का TROOPER बनता है. PARA SF ने 1966 में औपचारिक रूप से एक रेजीमेंट बनने के बाद से लगातार ऐसे ऑपरेशन किए, जिन्हें करने के बारे में दूसरा सोच भी नहीं सकता. पहले 2015 म्यांमार और उसके बाद 2016 में पीओके में सर्जिकल स्ट्राइक कर PARA SF देश भर के दिल पर छा गई.