पत्रकार से दुर्व्यवहार पर आयोग ने सिब्बल से मांगा जवाब, बरखा दत्त ने की थी शिकायत

नयी दिल्ली। एक निजी टीवी चैनल की महिला पत्रकार के साथ कथित तौर पर दुर्व्यवहार किए जाने का मु्ददा अब तूल पकड़ता जा रहा है। पहले तो वरिष्ठ पत्रकार बरखा दत्त ने सोशल मीडिया के जरिए  कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल और उनकी पत्नी प्रोमिला सिब्बल को लेकर निशाने पर लिया। उसके बाद भाजपा सांसद भूपेंद्र यादव ने राज्यसभा में इस मुद्दे को रेखांकित किया था। जिसके बाद अब राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) ने कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल की पत्नी प्रोमिला सिब्बल से नोएडा स्थित उनके न्यूज चैनल की महिलाकर्मियों के खिलाफ कथित तौर असंसदीय भाषा का इस्तेमाल करने के मामले में जबाव मांगा हैं। बता दें कि बरखा दत्त ने सोमवार को अनेक ट्वीट करके सिब्बल और उनकी पत्नी को चैनल से 200 से अधिक कर्मचारियों को निकालने पर जम कर आड़े हाथ लिया था। दोनों ‘तिरंगा टीवी’ के प्रमोटर्स हैं।दत्त की शिकायत पर एनसीडब्ल्यू की सदस्य प्रीति कुमार ने प्रोमिला सिब्बल को पत्र लिख कर कहा कि एनसीडब्ल्यू कार्यस्थल पर महिलाओं के प्रति पक्षपात पूर्ण रवैए की कड़ी आलोचना करता है। कुमार ने कहा, ‘‘आरोप हैं कि महिला कर्मचारियों के खिलाफ लगातार असंसदीय भाषा का इस्तेमाल किया जाता था। राष्ट्रीय महिला आयोग कार्यस्लथल पर महिलाओं के प्रति पक्षपातपूर्ण रवैये की कड़ी निंदा करता है। यह महिला की गरिमा के खिलाफ है।’’ उन्होंने लिखा,‘‘इसलिए आप से पत्र के प्राप्त होने के सात दिन के भीतर विस्तृत स्पष्टीकरण / लिखित जवाब देने का अनुरोध किया जाता है।’’ बरखा ने अपने ट्वीट में आरोप लगाया था कि चैनल के 200 से अधिक कर्मचारियों के उपकरण भी छीन लिए गए।वहीं प्रोमिला ने दत्त के आरोपों से इनकार किया है। उन्होंने कहा कि पत्रकार 23 मई से चैनल के दफ्तर नहीं आए। उन्होंने अभद्र भाषा के इस्तेमाल से आरोप से भी इनकार किया और कहा कि उन्होंने दत्त से अथवा किसी अन्य कर्मचारी से बातचीत में ऐसा नहीं किया।जिसके बाद भाजपा सांसद भूपेंद्र यादव ने भी इस मुद्दे को उठाते हुए सभापति से अनुरोध किया कि अगर कोई सदस्य मीडिया की आवाज को दबा रहा है तो इस स्थिति में मामले को सदन की आचार समिति के पास भेजा जाए। यादव ने कहा कि ‘‘हम किसी निजी संस्थान में हस्तक्षेप नहीं करना चाहते, लेकिन अगर किसी महिला के साथ दुर्व्यवहार किया जाता है, कर्मचारियों को भुगतान नहीं किया जाता है तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करना सांसदों की जिम्मेदारी बनती है।’

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