पाकिस्तान के बाद एक और देश का चीन को करारा झटका, रद्द होगा 20 बिलियन का रेल प्रोजेक्ट

कुआलालम्पुर: पाकिस्तान के बाद एक और देश ने चीन को करारा झटका दिया है. मलेशिया चीनी कॉन्ट्रैक्टर द्वारा बनाए जाने वाले 20 बिलियन के रेल प्रोजेक्ट को रद्द करने वाला है. ये रेल प्रोजेक्ट चाइना कम्युनिकेशन कंस्ट्रक्शन के पास है. कॉन्ट्रैक्ट रद्द किए जाने की जानकारी देश के इकनॉमिक अफेयर्स मिनिस्टर अज़मीन अली ने दी है. अली ने मीडिया से कहा कि देश की सरकार को लगता है कि ईस्ट कोस्ट रेल लिंक प्रोजेक्ट ‘सरकार की आर्थिक क्षमता के परे है.’ आगे कहा गया है कि ज़रूरत पड़ने पर इससे जुड़ी राष्ट्रपति महातिर मोहम्मद के निर्देश वाली एक आधिकारिक घोषणा की जा सकती है. अज़मीन ने कुआलालम्पुर में कहा, “अगर प्रोजेक्ट कैंसल नहीं किया गया तो सरकार को भारी ब्याज़ चुकाना पड़ेगा. हम इसे वहन नहीं कर सकते हैं. इसी वजह से चीन के साथ रिश्ते ख़राब किए बग़ैर हम प्रोजेक्ट को रद्द कर रहे हैं.”

अज़मीन ने कहा कि प्रोजेक्ट रद्द किए जाने के एवज में दिया जाने वाला मुआवज़ा वित्त मंत्रालय द्वारा तय किया जाएगा. उन्होंने कहा कि इसे बेहद सजगता के साथ अंजाम दिया जा रहा है जिसके लिए इस बात का भी ध्यान रखा जा रहा है कि इससे देश की आर्थिक स्थिति पर असर मत पड़े. मलेशिया के इस फैसले के बाद चाइना कम्युनिकेशन कंस्ट्रक्शन को इस देश से अपना कारोबार समटेन के लिए कदम उठाने पड़ रहे हैं.

ईस्ट कोस्ट रेल लिंक प्रोजेक्ट के लिए मलेशिया रेल लिंक को चाइना कम्युनिकेशन कंस्ट्रक्शन वाले इस रेल प्रोजेक्ट की देख रेख का ज़िम्मा दिया गया था. इस प्रोजेक्ट का अनुमानित ख़र्च 19.6 बिलियन डॉलर यानी मलेशिया की करेंसी में 81 ख़रब रिंग्गित का था. भारतीय करेंसी में ये रकम 14,20,70,00,00,000 रुपए के करीब बैठेगी.

पाकिस्तान के पहले ही दे चुका है झटका
पाकिस्तान सरकार ने चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) के तहत एक बड़ी बिजली परियोजना को रद्द करने का फैसला किया है, जिसे पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के शासन ने आगे बढ़ाया था. मीडिया ने सोमवार को यह जानकारी दी. पाकिस्तानी मीडिया ‘द डॉन’ की रिपोर्ट के मुताबिक पर्दे के पीछे चल रहे सरकारी अधिकारियों के साथ चर्चा से संकेत मिल रहे हैं कि पाकिस्तान ने आधिकारिक तौर पर चीन को सूचित कर दिया है कि उसे 1,320 मेगावाट वाले रहीम यार खान बिजली परियोजना में कोई दिलचस्पी नहीं है क्योंकि अगले कुछ सालों के लिए पर्याप्त विद्युत क्षमता पर पहले से ही काम हो रहा है.

पाकिस्तान ने चीन से सीपीईसी सूची से परियोजना को औपचारिक रूप से हटाने का अनुरोध किया है. एक सरकारी अधिकारी ने कहा, “पिछले महीने हुई आठवीं संयुक्त समन्वय समिति (जेसीसी) की बैठक के दौरान, योजना और विकास मंत्री मखदूम खुसरो बख्तियार के नेतृत्व में एक पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल ने सीपीईसी सूची से रहीमयार खान आयातित ईंधन बिजली संयंत्र (1,320 मेगावाट) को हटाने का प्रस्ताव दिया था.”

परियोजना को मूल रूप से पूर्व मुख्यमंत्री शहबाज शरीफ की अगुवाई वाली पंजाब सरकार के काएद-ए-आजम थर्मल कंपनी द्वारा आयातित कोयला आधारित संयंत्र के रूप में आगे बढ़ाया गया था. एक प्रमुख व्यवसायी ने इस परियोजना का प्रस्ताव दिया था और उसके इस परियोजना के प्रमुख प्रायोजकों में से एक होने की उम्मीद थी. आपको बता दें कि ये चीन के लिए किसी झटके से कम नहीं है क्योंकि उसके सीपीईसी के तहत पाक में निवेश का एक बड़ा हिस्सा बिजली परियोजना से जुड़ा था.

क्या है सीपीईसी
बेल्ट एंड रोड (बीआरआई) चीन के इतिहास की सबसे महत्वकांक्षी योजना है. इसके तहत ‘ड्रैगन’ विश्व भर में अपना प्रभुत्व कायम करना चाहता है. पश्चिमी जगत की मीडिया के अनुसार चीन इस परियोजना में खरबों रुपयों का निवेश दो वजहों से कर रहा है. एक तो विश्व भर में अपना प्रभुत्व कायम करने के अलावा चीन इसके सहारे अपनी धीमी पड़ती अर्थव्यवस्था में भी नई जान फूंकना चाहता है. वहीं दूसरा, उनका ये भी मानना है कि पहले से विश्वभर में हो रहे चीनी निवेश और बढ़ते प्रभुत्व को बीआरआई के रूप में बस एक नया नाम दे दिया गया है.

भारत इस योजना का प्रखर विरोधी रहा है और इसके विरोध के पीछे सबसे बड़ी वजह चीन पाकिस्तान कॉरिडोर (सीपीईसी) रही है. दरअसल, इसी योजना के तहत पाकिस्तान में होने वाले चीनी निवेश को सीपीईसी का नाम दिया गया है. चीन ने जानकारी साझा करते हुए विश्व को बताया कि इसके तहत पाकिस्तान में 46 बिलियन डॉलर (लगभग 56,81,00,00,00,000 पाकिस्तानी रुपए) का निवेश किया गया है.

वहीं, भारत ने इस बात पर भी विरोध जताया है कि वन बेल्ट वन रोड (ओबीओआर- इस योजना क पुराना नाम) को लेकर भारत का कोई विरोध नहीं है, लेकिन इससे भारत को ख़तरा है क्योंकि पाकिस्तान में इसके तहत जो सड़क बनाई जानी है वो पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) से होकर गुजरती है. भारत की इस चिंता पर चीन का यही रुख रहा है उन्होंने इस मामले पर अपनी पलकें भी नहीं झपकाई हैं.

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