पितृपक्ष में इन बातों का रखें खास ध्यान

पितर या पितृ, हिंदू धर्म में इन दिनों का अत्यधिक महत्व है। इन विशेष दिनों में लोग अपने पूर्वजों को याद करते हैं उन्हें पानी देते हैं, उनका श्राद्ध, तर्पण करते हैं। इन दिनों का इंतजार साल भर किया जाता है। सिर्फ उनके द्वारा नहीं जो जीवित हैं, बल्कि उनके द्वारा भी जो अब परलोक गमन कर चुके हैं। शास्त्रों में इसका महत्व बताया गया है। यहां हम इन दिनों के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें आपको बताने जा रहे हैं।

लगता है पितृदोष
पुराणों में ऐसा उल्लेख मिलता है कि जब तक पितरों का श्राद्ध न किया जाए तब तक उनकी आत्मा को इस संसार से मुक्ति नहीं मिलती। वे अपनी संतान का इंतजार करते रहते हैं। जब उनका श्राद्ध किया जाता है तब ही उन्हें दुनिया से मुक्ति मिलती है। जो भी अपने पूर्वजों को इससे वंचित रखते हैं उन्हें पितृदोष लगता है।

कौए का महत्व
इन दिनों कौए की भूमिका बढ़ जाती है। जहां श्राद्ध आदि किया जाता है वहां अक्सर ही कौए मंडराते नजर आते हैं। कहा जाता है कि पूर्वज कौए का रूप धारण कर आते हैं। और अपनी संतान को आशीर्वाद देते हैं।

ये भी है रास्ता
जो भी लोग किसी परिस्थिति के चलते अपने पितरों का श्राद्ध नहीं कर पाते वे उन्हें पानी देते हैं। अर्थात् विधि-विधान से पवित्र नदी घाट से उन्हें आमंत्रित किया जाता है कि फिर 15 दिन तक उनके हिस्से का खाना-पानी विधि अनुसार निकाला जाता है। फिर उसे छत पर या किसी ऊँचे स्थान पर रखा जाता है।

हो जाते हैं नाराज
ऐसी मान्यता है कि यदि कौए इसे ग्रहण करने आते हैं तो समझिए पितरों ने आपकी सेवा को स्वीकार किया यदि नहीं आते तो वे नाराज हैं। हालांकि शहरी क्षेत्रों के कांक्रीट के जंगलों में कौओं का ना आना कोई बड़े आश्चर्य की बात भी नहीं।
ये है प्रसिद्ध स्थान
भारत देश में गया या गयाजी एक प्रसिद्ध स्थान है जहां श्राद्ध आदि किया जाता है। यहां लाखों की संख्या में लोग अपने पूर्वजों का मुक्ति दिलाने के लिए आते हैं। हालांकि यहां सालभर में कभी भी निर्धारित वक्त पर इस प्रक्रिया को किया जा सकता है।
भगवान राम ने भी किया
ऐसा बताया जाता है कि भगवान श्रीराम ने भी अपने पिता महाराजा दशरथ का पिंडदान, श्राद्ध किया था जिसके बाद ही उन्होंने स्वर्ग की ओर प्रस्थान किया था, अर्थात् इसके पश्चात ही उन्हें मुक्ति मिली। इससे इन दिनों के महत्व को स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है।
पड़ता है बुरा असर
कहा जाता है कि गया में पितर प्रत्येक के आने पर अपनी संतान को तलाशते हैं, वे हर साल आते हैं यदि उनके परिवार से कोई ना आए तो वे दुखी होकर लौट जाते हैं। उनका मन दुखता है जिसका असर उस परिवार को किसी न किसी प्रकार का कष्ट अर्थात् धन, घरेलू कलह या जेल जाकर भी चुकाना पड़ सकता है।

Related Articles

Back to top button

Notice: ob_end_flush(): Failed to send buffer of zlib output compression (1) in /home/tarunrat/public_html/wp-includes/functions.php on line 5427

Notice: ob_end_flush(): Failed to send buffer of zlib output compression (1) in /home/tarunrat/public_html/wp-includes/functions.php on line 5427