प्रधानमंत्री और रक्षामंत्री के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का नोटिस देने की तैयारी में कांग्रेस

नई दिल्ली: लड़ाकू विमान राफेल की डील पर सियासी जंग थमने का नाम नहीं ले रही है। सरकार ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पर देश से झूठ बोलने का आरोप लगाया है तो कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण पर संसद को गुमराह करने का आरोप लगा दिया है। विपक्ष डील की कीमत जानने की जिद कर रहा है लेकिन सरकार कह रही है कि मामला संवेदनशील है इसलिए सबकुछ बता नहीं सकते। राफेल पर सियासी जंग इतनी तेज़ हो गई है कि सरकार और विपक्ष दोनों संसद में एक-दूसरे के ख़िलाफ़ लोकसभा में विशेषाधिकार हनन का नोटिस देने की तैयारी कर रहे हैं।

भाजपा कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के ख़िलाफ़ विशेषाधिकार हनन का नोटिस देने का ऐलान कर चुकी है। जवाब में कांग्रेस प्रधानमंत्री और रक्षामंत्री के ख़िलाफ़ ब्रीच ऑफ प्रिविलेज का नोटिस देने वाली है। कांग्रेस का आरोप है कि अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के दौरान प्रधानमंत्री और रक्षामंत्री ने सदन को गुमराह किया जबकि भाजपा का आरोप है कि राहुल गांधी ने फ्रांस के राष्ट्रपति का नाम लेकर संसद में झूठ बोला और अब राहुल को बचाने के लिए राफेल डील पर सवाल उठाए जा रहे हैं। कांग्रेस की तरफ से कल पूर्व रक्षामंत्री एके एंटनी, पूर्व वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा और कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने मोर्चा संभाला तो जवाब देने कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद सामने आए और सबूतों के साथ दावा किया कि यूपीए सरकार ने भी देशहित में कई बार डिफेंस से जुड़ी जानकारियां शेयर करने से मना कर दिया था। एंटनी ने कहा कि समझौते में रक्षा सौदों की खरीद में कीमतों को छिपाने की बात का कहीं कोई जिक्र नहीं किया गया है। समझौते में हथियारों के तकनीकी और क्षमता संबंधी विवरण के खुलासे की अनुमति नहीं है लेकिन इनकी कीमत बताने पर कोई पाबंदी नहीं है। कांग्रेस नेताओं ने कहा कि प्रधानमंत्री और रक्षामंत्री ने समझौते में गोपनीयता की बात कर गलत सूचना देश की संसद को दी है। इसका सीधा मतलब है कि सौदे में गोपनीयता की बात कर उन्होंने संसद को गुमराह किया है। यह संसद के विशेषाधिकार हनन मामला है।

सरकार ने कांग्रेस के आरोपों पर पलटवार किया और राफेल विमान के लिए हुई डील से जुड़ी कुछ चीजें सार्वजनिक भी की और दावा किया कि मोदी सरकार ने ये डील यूपीए सरकार के मुक़ाबले 9 फीसदी कम कीमत में की है। कानून मंत्री ने बताया कि 2007 में राफेल विमान की कीमत 7.93 करोड़ यूरो बताई गई थी जो 2011 में टेंडर के वक्त बढ़कर 10.08 करोड़ यूरो हो गई। 2016 में एनडीए सरकार ने प्रति विमान 9.17 करोड़ यूरो पर समझौता किया। इसके अलावा विमान के साजो-सामान के लिए भी कीमत तय हुई है। इसका खुलासा करने से प्लेन की क्षमता संबंधी महत्वपूर्ण सूचना लीक हो जाएगी। सरकार ने अपना पक्ष रख दिया है लेकिन कांग्रेस इस विवाद को खत्म करने के मूड में नहीं दिख रही है।

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