फ्रीबीज का मसला कोर्ट के दायरे से बाहर- SC की बड़ी टिप्पणी, 3 जजों की पीठ के पास भेजा
राजनीतिक पार्टियों द्वारा ‘फ्रीबीज’ यानी मुफ्त की सौगातें बांटने पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला सामने आया है. शीर्ष अदालत ने इस मामले को 3 जजों की बेंच के पास भेज दिया है. चुनाव के दौरान मुफ्त की योजनाओं की घोषणा और बाद में उनके अमल से अर्थव्यवस्था को नुकसान हो रहा है. सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर अदालत का यह फैसला आया है. कोर्ट ने कहा कि ‘फ्रीबीज’ टैक्सपेयर का महत्वपूर्ण धन खर्च किया जाता है. हालांकि सभी योजना पर खर्च फ्रीबीज नहीं होते. यह मसला चर्चा का है और अदालत के दायरे से बाहर है.
अदालत ने सुनवाई के दौरान कहा कि सरकार को ऑल पार्टी मीटिंग बुलाकर चर्चा करनी चाहिए. इसके लिए कमेटी बनाना अच्छा रहेगा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘कुछ सवाल हैं जैसे कि न्यायिक हस्तक्षेप का दायरा क्या है? क्या अदालत किसी भी योजना को लागू करने योग्य आदेश पास कर सकती है? समिति की रचना क्या होनी चाहिए? कुछ पार्टी का कहना है कि सुब्रमण्यम बालाजी 2013 के फैसले पर भी पुनर्विचार की जरूरत है.’
राज्य को दिवालिया बना सकता है ‘फ्रीबीज’
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि फ्रीबिज एक ऐसी स्थिति पैदा कर सकती है, जहां राज्य को दिवालिया होने की ओर धकेल दिया जाता है. उन्होंने कहा कि ऐसी मुफ्त घोषणा का इस्तेमाल पार्टी की लोकप्रियता बढ़ाने के लिए किया जाता है. यह राज्य को वास्तविक उपाय करने से वंचित करता है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निर्वाचन लोकतंत्र में निर्वाचक मंडल के पास सच्ची शक्ति है.
इस मामले की पिछली सुनवाई में कोर्ट सरकार से सर्वदलीय बैठक के जरिए एक राय बनाने की बात कह चुका है. चुनाव आयोग ने भी कहा कि इस बाबत नियम कायदे और कानून बनाने का काम उसका नहीं, बल्कि सरकार का है. वहीं, सरकार ने कहा कि कानून बनाने का मामला इतना आसान नहीं है. कुछ विपक्षी पार्टियां इस मुफ्त की घोषणाएं करने को संविधान प्रदत्त अभिव्यक्ति के अधिकार का अंग मानती हैं.
‘फ्रीबीज’ के मुद्दे पर बहस जरूरी
‘फ्रीबीज’ के खिलाफ अश्विनी उपाध्याय की ओर से दायर याचिका में वोटर्स को लुभाने के लिए ‘मुफ्त’ का वादा करने वाले राजनीतिक दलों पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई थी. याचिका में कहा गया था कि राजनीतिक दलों के द्वारा जनता के पैसे का दुरुपयोग हो रहा है और राज्य कर्ज के बोझ तले दबता जा रहा है. आम आदमी पार्टी (AAP) ने इस याचिका का विरोध किया था और कहा था कि वंचित जनता के सामाजिक-आर्थिक कल्याण के लिए चलाई जा रही योजनाओं को ‘मुफ्त’ नहीं कहा जा सकता है.इस मामले में सुनवाइयों के दौरान सीजेआई एनवी रमना ने कहा था कि लोगों की भलाई करना सरकार की जिम्मेदारी है. उन्होंने कहा था कि मुद्दा यह है कि जनता का पैसा सही खर्च करने का सही तरीका क्या है और यह मामला बहुत जटिल है. सवाल यह भी है कि क्या अदालत इन मुद्दों की पड़ताल करने में सक्षम है. सीजेआई रमना ने कहा था कि देश के कल्याण के लिए फ्रीबीज यानी रेवड़ी बांटने के मुद्दे पर बहस जरूरी है. सीजेआई ने कहा था कि एक राजनेता के द्वारा फ्रीबीज के रूप में किए गए वादे और कल्याण योजना के बीच अंतर करने की जरूरत है.