बच्चों में बढ़ रही है कॅनजेनाइटल हार्ट डिजीज, जानें कितनी खतरनाक है ये बीमारी

बच्‍चों में होने वाली दिल की जन्मजात बीमारियों को मेडिकल भाषा में कॅनजेनाइटल हार्ट डिजीज भी कहते हैं। यानी गर्भावस्था में दिल के विकास के दौरान कुछ विकार रह जाना। जैसे दिल के अंदर रक्त के प्रवाह को दिशा देने वाले वाल्व की खराबियां। वाल्व अगर संकरा हो जाए, तो स्टेनोसिस और फैल जाए तो वाल्व लीकेज कहलाता है। जन्मजात दिल के विकारों में एऑर्टिक स्टेनोसिस, माइट्रल स्टेनोसिस, या माइट्रल वाल्व प्रोलैप्स प्रमुख हैं। दिल को दो हिस्से में विभाजित करने वाली हदय की आंतरिक दीवार की अपूर्णता को साधारण भाषा में दिल का छेद कहते हैं। वेंट्रिकुलर सेप्टल डिफेक्ट, एट्रियल सेप्टल डिफेक्ट और दिल से निकलने वाली शिराओं के बीच अवांछित जुड़ाव (पेटेंट डक्टस आर्टीरियोसस) आदि विकार और समस्याएं बच्चों को हो सकती हैं। दिल के कुछ हिस्से का कम विकसित होना। जैसे बाएं तरफ के मुख्य चैंबर का अपूर्ण विकास (हाइपोप्लास्टिक लेफ्ट हार्ट सिंड्रोम) आदि समस्याओं से भी बच्चे ग्रस्त हो सकते हैं। वहीं दिल से निकलने वाली मुख्य धमनियों का गलत या उल्टा जुड़ जाना, जिसे मेडिकल भाषा में ट्रांसपोजीशन ऑफ ग्रेट आर्टरीज कहते हैं। इसी तरह दिल के अंदर कई विकारों का एक साथ होना (टेट्रालॉजी ऑफ फेलॉट) भी संभव है।

इकोडॉप्लर जांच

इकोडॉप्लर एक तरह का दिल का अल्ट्रासाउंड है। इकोडॉप्लर से हृदय के विकारों का पता आसानी से हो जाता है। अनुभवी डॉक्टर अपने आले से ही इन विकारों की जानकारी कर लेते है। इनका इलाज सर्जरी ही है।

र्यूमैटिक हार्ट डिजीज

गले में स्ट्रेप्टोकोकल नामक जीवाणु से इंफेक्शन होता है। अगर समय रहते इस इंफेक्शन का इलाज न किया जाए, तो र्यूमैटिक हार्ट डिजीज हो जाती है। इसका असर दिल की मांसपेशियों पर भी पड़ता है । एक अर्से बाद दिल का माइट्रल वाल्व सिकुड़ जाता है। यह अवस्था गंभीर हो सकती है। जरूरत पड़ने पर डॉक्टर ऐसे बच्चों को एस्पिरिन नामक दवा देते हैं।

वायरल मायोकारडाइटिस

सांस तंत्र के वायरल इन्फेक्शन के साथ दिल में भी वायरल इन्फेक्शन हो सकता है। दिल की मांसपेशियों में सूजन आ जाती है और उसके स्पंदन की शक्ति कम हो जाती है। ज्यादातर मरीजों में यह स्वत: ही ठीक हो जाता है, लेकिन कभी-कभी पीड़ित बच्चे पेसमेकर भी लगाना पड़ता है।

हृदय की गति की बाधाएं

हर उम्र में हृदय की एक निश्चित गति होती है, जो उम्र के साथ बदलती रहती है। बच्चे या वयस्कों के गतिमान होने पर यह गति बढ़ती है और आराम के समय धीमी हो जाती है। कुछ बच्चों में जन्म से या कुछ समय बाद से हृदय गति के दोष हो जाते है। हृदय गति से संबंधित दोष हृदय की रक्त को पंप करने की क्षमता पर फर्क डालते हैं। देश ने वयस्कों को होने वाली दिल की बीमारियों के इलाज में बहुत तरक्की की है परंतु बच्चों के लिए अभी पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं। हृदय रोग से ग्रस्त बच्चों की संख्या देखते हुए प्रत्येक जिला स्तर पर या हर मेडिकल कॉलेज से सम्बद्ध अस्पताल में बच्चों के दिल का अस्पताल जरूर होना चाहिए।

इन बातों पर दें ध्यान

लगभग 1000 में 8 बच्चे जन्मजात हृदय की बीमारी के साथ पैदा होते हैं। जन्म के तुरंत बाद बच्चे के शरीर का नीलापन ठीक न होने पर टेट्रालॉजी ऑफ फेलॉट या ट्रांसपोजीशन ऑफ ग्रेट आर्टरीज नामक विकार होने की संभावना होती है। सांस तेज चलती रहे तो हाइपोप्लास्टिक लेफ्ट हार्ट सिंड्रोम और हृदय के अन्य विकारों के होने की आशंका सबसे ज्यादा होती है। हृदय के विकारों से ग्रस्त ज्यादातर बच्चों में ये विकार जन्म के तुरंत बाद अपना असर नहीं दिखाते, कुछ बड़े होने पर बीमारियों के दौरान या सामान्य जांच के दौरान इनकी पहचान होती है।

Related Articles

Back to top button

Notice: ob_end_flush(): Failed to send buffer of zlib output compression (1) in /home/tarunrat/public_html/wp-includes/functions.php on line 5427

Notice: ob_end_flush(): Failed to send buffer of zlib output compression (1) in /home/tarunrat/public_html/wp-includes/functions.php on line 5427