बाइडेन के लोकतंत्र शिखर सम्मेलन में बोले पीएम मोदी, कहा-भारतीयों में निहित लोकतांत्रिक भावना

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन द्वारा आयोजित ‘लोकतंत्र के शिखर सम्मेलन’ में भाग लेते हुए, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को कहा कि कानून के शासन और बहुलवादी लोकाचार के लिए सम्मान सहित लोकतांत्रिक भावना “भारतीयों में निहित है”। पीएम मोदी उन 12 नेताओं में से एक थे, जिन्हें गुरुवार को ‘समिट फॉर डेमोक्रेसी’ के पहले दिन अमेरिकी राष्ट्रपति बिडेन द्वारा वर्चुअल रूप से आयोजित मुख्य नेताओं के पूर्ण सत्र में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया था। बंद कमरे के सत्र में भारत सहित 12 चुनिंदा देशों के हस्तक्षेप हुए।

पीएम मोदी ने उस तारीख को याद किया जब भारत की संविधान सभा ने 75 साल पहले अपना पहला सत्र आयोजित किया था। इंडिया टुडे को सूत्रों ने बताया, उन्होंने लोकतंत्र के मूल स्रोतों में से एक के रूप में भारत के सभ्यतागत लोकाचार पर प्रकाश डाला। सूत्रों ने कहा “पीएम मोदी ने कहा कि कानून के शासन और बहुलवादी लोकाचार के सम्मान सहित लोकतांत्रिक भावना भारतीयों में निहित है। भारतीय प्रवासी भी इसे वहन करते हैं, जिससे उनके दत्तक घरों की आर्थिक भलाई और सामाजिक सद्भाव में योगदान होता है।

पीएम मोदी ने लोकतांत्रिक देशों को अपने संविधानों में निहित मूल्यों को पूरा करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने भारतीय लोकतांत्रिक शासन के चार स्तंभों के रूप में संवेदनशीलता, जवाबदेही, भागीदारी और सुधार अभिविन्यास को भी रेखांकित किया। उन्होंने जोर देकर कहा कि लोकतंत्र के सिद्धांतों को भी वैश्विक शासन का मार्गदर्शन करना चाहिए और यह कि लोकतंत्र को सकारात्मक या नकारात्मक रूप से प्रभावित करने की प्रौद्योगिकी की क्षमता को देखते हुए, प्रौद्योगिकी कंपनियों को खुले और लोकतांत्रिक समाजों को संरक्षित करने में योगदान देना चाहिए।अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने बृहस्पतिवार को कहा कि लोकतांत्रिक मानदंडों और मूल्यों की रक्षा करना वर्तमान समय की चुनौती है। बाइडन ने विश्व के नेताओं को डिजिटल तरीके से संबोधित करते हुए लोकतांत्रिक नवीनीकरण के लिए एक महत्वाकांक्षी पहल की घोषणा की, जिसके तहत उनका प्रशासन वैश्विक लोकतांत्रिक नवीनीकरण रणनीति के वास्ते42.44 करोड़ अमेरिकी डालर मुहैया कराने पर विचार कर रहा है। बाइडन की पहल के तहत व्हाइट हाउस द्वारा लोकतंत्र पर आयोजित शिखर सम्मेलन में भारत सहित 80 से अधिक देशों के नेताओं ने हिस्सा ले रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार को इस डिजिटल शिखर सम्मेलन को संबोधित करने वाले हैं।

बाइडन ने लोकतंत्र पर पहले शिखर सम्मेलन की शुरुआत करते हुए कहा, ‘‘सार्वभौमिक मानवाधिकारों और दुनिया भर में निरंतर एवं खतरनाक चुनौतियों के मद्देनजर लोकतंत्र के समर्थन की जरूरत है। मैं इस शिखर सम्मेलन की इसलिए मेजबानी करना चाहता था क्योंकि यहां अमेरिका में, हम सभी जानते हैं कि हमारे लोकतंत्र को नवीनीकृत करना और हमारे लोकतांत्रिक संस्थानों को मजबूत करने के वास्ते निरंतर प्रयास करने की आवश्यकता है।’’ लोकतंत्र के समक्ष उत्पन्न चुनौतियों पर विचार साझा करते हुए बाइडन ने कहा कि तानाशाहों के बाहरी दबाव के बावजूद वे अपनी शक्ति बढ़ाने, निर्यात करने और दुनिया भर में अपने प्रभाव का विस्तार करने की कोशिश करते हैं। उन्होंने कहा कि निरंकुश दमनकारी नीतियों और प्रथाओं को आज की चुनौतियों से निपटने के अधिक कुशल तरीके के तौर पर पेश करने का प्रयास करते हैं।

 

बाइडन ने साथ ही विश्व के नेताओं का इसके लिए आह्वान किया कि वे आपस में सहयोग करें और यह दिखायें कि लोकतंत्र क्या दे सकता है।बाइडन ने साथ ही कहा कि यह साथी नेताओं के लिए लोकतंत्र को मजबूत करने के प्रयासों को दोगुना करने के लिए एक महत्वपूर्ण समय है। उन्होंने उल्लेख किया कि उन्हें खुद उनके प्रयासों में तब सफलता मिली जब देश में मतदान अधिकार विधेयक पारित हुआ। उन्होंने अमेरिका में लोकतांत्रिक संस्थाओं और परंपराओं के लिए अपनी चुनौतियों का उल्लेख किया।

 

बाइडन ने दो दिवसीय डिजिटल शिखर सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए कहा, ‘‘यह एक जरूरी मामला है। हम जो आंकड़े देख रहे हैं वह काफी हद तक गलत दिशा की ओर इशारा कर रहे हैं।’’ इस शिखर सम्मेलन में ऐसे विषयों पर चर्चा हो रही है जिसका उल्लेख बाइडन ने राष्ट्रपति के तौर पर अपने पहले वर्ष की प्राथमिकता के तौर पर पूर्व में किया है। उन्होंने बार-बार इस बात पर जोर दिया है कि अमेरिका और समान विचारधारा वाले सहयोगियों को दुनिया को यह दिखाने की जरूरत है कि लोकतंत्र, समाज के लिए, निरंकुश शासन व्यवस्था से कहीं बेहतर है।

 

व्हाइट हाउस का कहना है कि दो दिवसीय शिखर सम्मेलन में 110 देशों के नेताओं और नागरिक समूहों के विशषज्ञों को भ्रष्टाचार को रोकने और मानवाधिकारों को सम्मान देने जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर साथ मिल कर काम करने और विचार साझा करने का अवसर मिलेगा। सम्मेलन के पहले ही इस कार्यक्रम को उन देशों की आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है,जिन्हें इसमें आमंत्रित नहीं किया गया है।

 

अमेरिका के लिए चीन और रूस के राजदूतों ने ‘नेशनल इंटरेस्ट पॉलिसी जर्नल’ में एक संयुक्त लेख लिखा जिसमें उन्होंने बाइडन प्रशासन को ‘‘शीत-युद्ध की मानसिकता’’ प्रदर्शित करने वाला बताया,जो ‘‘दुनिया में वैचारिक मतभेद और दरार बढ़ाएगा।’’ अमेरिका को इन आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ा कि उसने कैसे निर्णय लिया कि सम्मेलन के लिए किसे आमंत्रित करना है और किसे नहीं। वहीं बाइडन प्रशासन का कहना है कि वर्चुअल माध्यम से आयोजित यह सम्मेलन एक अहम बैठक है, खासतौर पर ऐसे वक्त में जब दुनियाभर में आजादी में कटौती का चलन सा चल रहा है।

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