भारत के संसदीय लोकतंत्र में महिलाओं की कमजोर स्थिति

पूनम श्रीवास्तव

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर से पद और गोपनीयता की शपथ लेकर अपनी दूसरी पारी का आगाज किया। ‘‘ नौ रत्नों ’’ और ‘‘ नौ दुर्गा ’’ से मंडित उनके मंत्रिमंडल में फिलहाल 58 सदस्य हैं जिनमें 9 महिलाएं भी शामिल है, इनमें से 6 कैबिनेट और 3 राज्य मंत्री हैं। निर्मला सीतारमण, स्मृति ईरानी और हरसिमरत कौर बादल को इसमें जगह मिली है। निर्मला सीतारमण फिलहाल रक्षा मंत्री हैं। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में उन्होंने वाणिज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) के तौर पर कार्य किया था। इसके बाद उनको पदोन्नति देकर के कैबिनेट मंत्री बनाया गया था। फिलहाल वो राज्यसभा से सांसद हैं। सीतारमण दूसरी महिला हैं, जिनको रक्षा मंत्री बनाया गया था। स्मृति ईरानी मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में मानव संसाधन विकास मंत्री बनी थीं। हालांकि उनको बाद में कपड़ा मंत्री बना दिया गया था। 2019 में राहुल गांधी को अमेठी में हराने के बाद वो एक बार फिर से कैबिनेट में जगह बनाने में कामयाब हो गई हैं। हरसिमरत कौर बादल पिछली सरकार में कैबिनेट मंत्री थी। उन्हें इस बार भी इसी पद पर रखा गया है। पिछली सरकार में वो खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय संभाल रहीं थी। फिलहाल वो पंजाब से शिरोमणि अकाली दल बादल पार्टी से आती हैं। उनके पति सुखबीर सिंह बादल पंजाब में उप मुख्यमंत्री रह चुके हैं। इसके अलावा तीन महिलाओं को राज्य मंत्री बनाया गया है। यह महिलाएं हैं साध्वी निरंजन ज्योति, देबश्री चैधरी और रेणुका सिंह। साध्वी ज्योति सरकार के पहले कार्यकाल में भी राज्य मंत्री रह चुकी हैं। वो हरसिमरत कौर बादल के मंत्रालय में जूनियर मंत्री थीं। बाकी दो महिलाएं पहली बार सांसद बन कर आई हैं। आंकड़ों से ये साफ दिखता है कि देश की राजनीति में महिलाओं की भागीदारी कुछ बढ़ रही है पर अब भी ये बहुत ही कम है, लेकिन मौजूदा मंत्रिमंडल में महिलाओं को अहम भागीदारी दिए जाने से देश की महिलाओं में एक अच्छा सन्देश अवश्य गया हैगया है
सूबे से लगातार संसद में महिलाओं की संख्या कम होती जा रही है यह एक चिन्ता का विषय है। भाजपा में भी महिलाओं का प्रतिनिधित्व घट रहा है। भारतीय राजनीति में आजादी के इतने वर्षों बाद भी महिला की भागीदारी बहुत कम बनी हुई है। कई दशकों बाद भी महिला को अभी तक लोकसभा व विधानसभाओं में 33 प्रतिशत आरक्षण का इन्तजार है। यह भी एक तथ्य है कि महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने के बिल को रखने के दौरान सदन में किस तरह के व्यवहार व र्दुव्यवहार की घटनाएं सामने आती हैं। हर एक क्षेत्र में पुरुषों के साथ सफलतापूर्वक आगे बढ़ रही महिलाएं राजनीति में भी तेजी से कदम बढ़ा रही हैं लेकिन, संसद में उनका प्रतिनिधित्व देखकर पार्टियों के दावे फेल होते नजर आ रहे हैं। वोट बटोरने के लिए महिलाओं के हक में बड़ी-बड़ी बातें करनी वाली राजनीतिक पार्टियां भी उनकी आरक्षण की मांग को अब तक अमली जामा पहनाने के बजाय दरकिनार ही करती रही हैं। हालांकि, बढ़ते दबाव को देखते हुए अब संसद से लेकर विधानसभा में महिलाओं के लिए 33 फीसद आरक्षण की वकालत की जा रही है लेकिन, जमीन पर तस्वीर अलग है। गौर करने की बात यह है कि भले ही कानूनी बाध्यता नहीं है फिर भी पार्टियां चाहें तो टिकट बंटवारे में 33 फीसद महिलाओं को हिस्सेदारी दे सकती हैं लेकिन, वे ऐसा करने से बचती ही दिखाई दे रही हैं।सत्रहवीं लोकसभा भी आई और चली गई, लेकिन महिलाओं को संसद में एक तिहाई नुमाइंदगी देने की बात जुमलेबाजी से ऊपर नहीं गई। पिछली लोकसभा में हर दस पुरुष सांसदों में सिर्फ एक महिला सांसद थी। तब लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या महज ग्यारह फीसदी थी। टीवी की बहसों में अक्सर चुनावों के वक्त ये मुद्दा उठाया भी जाता है। यूं भी महिलाएं कुल मतदाताओं का 50 फीसदी हैं। पश्चिम बंगाल में सिर्फ ममता बनर्जी हैं जिन्होंने महिला उम्मीदवारों को 41 फीसदी सीटें और नवीन पटनायक जिन्होंने महिला उम्मीदवारों को 33 फीसदी सीटें दी हैं उनके अलावा बाकी सभी पार्टियों ने जुबानी जमाखर्च किया है। वर्तमान में लोकसभा में 12 फीसदी महिला सांसद हैं। गौरतलब हो कि 1951 में संसद में महिला सांसदों की संख्या 5 फीसदी थी।
निःसंदेह इन वर्षों में संसद में महिलाओं की संख्या, पूर्ण संख्या एवं प्रतिशत दोनों में स्थिरतापूर्वक वृद्धि हुई है। वर्ष 1951 में पहली लोकसभा में 22 महिला सांसद थीं। वर्तमान लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या 66 है। तात्पर्य यह कि 16 लोकसभा चुनावों के दौरान, लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या में तीन गुना वृद्धि हुई है। हमारी संसद में महिला सांसदों की संख्या मात्र 39 बढ़ी है। किन्तु यदि वृद्धि की रफ्तार यही रही, तो 179 के आंकड़े को छूने में करीब ढाई सौ साल लग जायेंगे और तब तक हम अन्य देशों से बहुत पीछे खिसक जायेंगे।
भाजपा और कांग्रेस महिलाओं को बराबरी का दर्जा देने और लोकसभा व विधानसभाओं में 33 प्रतिशत आरक्षण की चाहे जितनी वकालत करें, उनकी कथनी और करनी में फर्क बरकरार है। महिलाओं के सशक्तीकरण तथा बराबरी की बात करनेवाले दलों की असलियत टिकट वितरण के समय सामने आ जाती है। यह भी देखने में आता है कि प्रमुख महिला प्रत्याशी के खिलाफ अकसर महिला को ही मैदान में उतारते है। ऐसे में एक ही महिला चुनाव जीत पाती है। इस तरह बहुत सी प्रतिभावान महिलाएं संसद या विधानसभाओं में पहुंचने से वंचित रह जाती हैं। जिन्हें टिकट मिलता है, वे भी ज्यादातर राजनीतिक पारिवारों से आती हैं। उनके पीछे पिता या पति का हाथ होता है। टिकट बांटते समय हर दल उस प्रत्याशी की जीत की संभावना टटोलता है। भारत के संसदीय लोकतंत्र में महिलाओं की स्थिति कितनी कमजोर है, इसका पता दुनिया भर की संसदों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व पर इंटर-पार्लियामेंट्री यूनियन के ताजा अध्ययन से चलता है। रिपोर्ट के अनुसार यूरोप, अमेरिका और दुनिया के अन्य विकसित देशों की संसदों में महिला जनप्रतिनिधियों की संख्या के मुकाबले हम कहीं नहीं ठहरते।
महात्मा गांधी के आह्वान पर ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ हजारों महिलाएं कुरबानी देने घर से निकल आयी थीं। लेकिन, आजादी के इतने बरस बाद भी राजनीति में महिलाओं की भागीदारी की बात कागजी ही नजर आती है। हालांकि, देश के संविधान में पुरुषों और महिलाओं को समान अधिकार प्राप्त हैं, लेकिन हकीकत में वे हर मोर्चे पर गैर बराबरी का दंश झेलती हैं। 1952 में जब देश की आबादी आज से एक तिहाई से भी कम थी, तब 22 महिलाएं लोकसभा चुनाव जीती थीं। आज जनसंख्या का आंकड़ा सवा अरब पार कर गया है, फिर भी वर्तमान (17वीं) लोकसभा में उनका प्रतिनिधित्व महज 12 प्रतिशत है, जो अब तक का सर्वश्रेष्ठ आंकड़ा है!
तो क्या अब इसका एकमात्र उपाय महिला आरक्षण विधेयक ही है ? यदि हां तो संसद और विधानसभाओं में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने वाला विधेयक लंबे समय से लटका क्यों पड़ा है। यदि यह कानून लागू हो जाये, तो लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या स्वतः 179 हो जायेगी। इस विधेयक की राह में बरसों से रोड़े अटकाये जा रहे हैं। गौरतलब है कि बीते बरसों में हमारी संसद में महिला सांसदों की संख्या उतनी नहीं बढ़ी है। यदि वृद्धि की रफ्तार यही रही, तो 179 के आंकड़े को छूने में करीब ढाई सौ साल लग जायेंगे और तब तक हम अन्य देशों से बहुत पीछे खिसक जायेंगे।

Related Articles

Back to top button

Notice: ob_end_flush(): Failed to send buffer of zlib output compression (1) in /home/tarunrat/public_html/wp-includes/functions.php on line 5427

Notice: ob_end_flush(): Failed to send buffer of zlib output compression (1) in /home/tarunrat/public_html/wp-includes/functions.php on line 5427