महबूबा ने अपने ट्वीट में आगे लिखा, ‘जबरन सरहदबंदी साफ तौर पर सांप्रदायिक नजरिये से सूबे के एक और जज्बाती बंटवारे की कोशिश है।’ आपको बता दें कि मीडिया में आई खबरों के मुताबिक, राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू है और राज्यपाल सत्यपाल मलिक को संविधान के तहत सभी अधिकार प्राप्त हैं, इसलिए संभावना है कि वह परिसीमन आयोग का गठन करेंगे, जो विधानसभा सीटों के नए सिरे से परिसीमन की सिफारिश करेगा। रिपोर्ट्स के मुताबिक, गृह मंत्री
अमित शाह के एजेंडे में जम्मू-कश्मीर में लंबित चुनाव क्षेत्रों का परिसीमन दोबारा करने समेत कई अहम मसले शामिल हैं।
बढ़ाई जा सकती है राष्ट्रपति शासन की अवधि गौरतलब है कि कलह से प्रभावित प्रदेश में इस समय राष्ट्रपति शासन है। शाह पहले ही राज्यपाल सत्यपाल मलिक के साथ बंद कमरे में बैठक कर चुके हैं। वह खुफिया ब्यूरो के निदेशक राजीव जैन और गृह सचिव राजीव गौबा से भी मिले। इस बीच माना जाता है कि गृह मंत्रालय में जम्मू-कश्मीर संभाग को बड़े पैमाने पर नया रूप दिया जा सकता है। प्रदेश में 18 दिसंबर 2018 से राष्ट्रपति शासन लागू है। संभावना है कि तीन जुलाई के बाद राष्ट्रपति शासन की अवधि बढ़ाई जा सकती है।
SC के लिए आरक्षित की जा सकती हैं सीटें
सरकार की आगामी योजनाओं में निर्वाचन क्षेत्रों का नए सिरे से परिसीमन और परिसीमन आयोग की नियुक्ति शामिल है। परिसीमन के तहत विधानसभा क्षेत्रों का दोबारा स्वरूप और आकार तय किया जा सकता है। साथ ही, अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित सीटें तय की जा सकती हैं। इसका मुख्य मकसद जम्मू-कश्मीर प्रांत में काफी समय से व्याप्त क्षेत्रीय असमानता को दूर करना है। साथ ही, प्रदेश विधानसभा में सभी आरक्षित वर्गो को प्रतिनिधित्व प्रदान करना है।
जम्मू-कश्मीर का है अपना संविधान
सोचने वाली बात यह है कि जम्मू-कश्मीर के महाराजा के 1939 के संविधान पर जम्मू-कश्मीर का संविधान 1957 में लागू हुआ जो अभी तक लागू है। भारत में शामिल होने के बाद प्रदेश संविधान सभा का गठन 1939 के संविधान के तहत हुआ, लेकिन शेख अब्दुल्ला के प्रशासन ने मनमाने ढंग से जम्मू के लिए 30 सीटें और कश्मीर क्षेत्र के लिए 43 सीटें और लद्दाख के लिए दो सीटें बनाईं। उसके बाद से यह क्षेत्रीय असमानता की मोर्चाबंदी हुई और कश्मीर में 46, जम्मू में 37 और लद्दाख में 4 सीटें हो गईं।