सीधे SC की जज बनने वाली पहली महिला वकील इंदु मल्होत्रा आज लेंगी शपथ

नई दिल्ली। इंदु मल्होत्रा बार(वकालत) से सीधे सुप्रीम कोर्ट में जज बनने वाली देश की पहली महिला जज बनने जा रही है। सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश नियुक्त की गईं वरिष्ठ अधिवक्ता इंदु मल्होत्रा आज शपथ लेंगी। भारत के प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा उन्हें पद की शपथ दिलाएंगे। इंदु मल्होत्रा का नाम उन दो लोगों में शामिल था जिन्हें उच्चतम न्यायालय के कोलेजियम ने शीर्ष अदालत में न्यायाधीश नियुक्त करने की सिफारिश की थी। सरकार ने मल्होत्रा के नाम पर मंजूरी दी जबकि दूसरे नाम- उत्तराखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश केएम जोसेफ पर फिर से विचार के लिए कोलेजियम के पास भेज दिया। उच्चतम न्यायालय के आज के कामकाज की सूची में इस बात का जिक्र है कि आज मल्होत्रा को पद की शपथ दिलाई जाएगी।

इससे पहले गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया जिसमें वरिष्ठ अधिवक्ता इंदु मल्होत्रा को सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश बनाए जाने पर रोक लगाने की मांग की गई थी। प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ की पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह की याचिका पर यह फैसला दिया। याचिका में जयसिंह ने मल्होत्रा को सर्वोच्च न्यायालय की न्यायाधीश के तौर पर शपथ नहीं दिलाने और सरकार को उत्तराखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति के. एम. जोसेफ के नाम की भी सिफारिश (सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के पद के लिए) करने का निर्देश सरकार को देने की मांग की थी।

पीठ ने कहा, बार की एक सदस्य की नियुक्ति पर रोक लगाने के लिए वकीलों की ओर से याचिका दायर करना अकल्पनीय, सोच से परे, समझ से बाहर और कभी नहीं सुनी जाने वाली बात है। सरकार को इस बात का अधिकार है कि वह (न्यायाधीश पद के लिए) उसे भेजे गए नाम पर पुनर्विचार करने के लिए कह सके। पीठ ने कहा, संवैधानिक औचित्य के तहत इंदु मल्होत्रा की नियुक्ति के वारंट को लागू किया जाना चाहिए। केंद्र सरकार ने शीर्ष अदालत कॉलेजियम को न्यायमूर्ति के. एम. जोसेफ को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में प्रोन्नत करने की सिफारिश पर पुनर्विचार करने को कहा लेकिन वरिष्ठ अधिवक्ता इंदु मल्होत्रा की नियुक्ति को मंजूरी प्रदान की।

सरकार के इसी फैसले का जिक्र करते हुए इंदिरा जयसिंह ने पीठ से कहा कि ऐसा नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि या तो दोनों नामों की सिफारिश की जाए या फिर दोनों खारिज कर दिए जाएं। इस पर अदालत ने कहा कि सरकार किसी भी नाम को वापस पुनर्विचार के लिए भेजने का हक रखती है और फिर कॉलेजियम संविधान और सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों के आधार पर फैसला करता है। अधिवक्ता ने याचिका पर त्वरित सुनवाई की मांग की जिसे शीर्ष अदालत ने खारिज कर दिया।

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