2019 से पहले किसानों पर मोदी सरकार की नजर, 50 हजार करोड़ के फंड का एलान संभव

नई दिल्ली: 2019 आम चुनाव से ठीक पहले नरेंद्र मोदी सरकार किसानों के लिए एक बड़ा कदम उठाने जा रही है. बजट में न्यूनतम समर्थन मूल्य को लागत से डेढ़ गुना करने के ऐलान को मूर्तरूप देने के लिए सरकार 50 हजार करोड़ रुपये के फंड बनाने का फ़ैसला कर सकती है.

इस हफ्ते बुधवार को होने वाली बैठक में कैबिनेट की मंज़ूरी मिल सकती है. किसानों से अनाज ख़रीदने के लिए निजी कंपनियों को भी शामिल किए जाने की योजना है. एबीपी न्यूज़ को मिली एक्सक्लूसिव जानकारी के मुताबिक किसानों को कम से कम 50 फीसदी मुनाफ़ा दिलाने के लिए सरकार ने 50 हजार करोड़ रूपये का एक फंड बनाने का फैसला किया है. इस फंड का मक़सद किसानों को उनकी अनाज़ का सही मूल्य दिलाना सुनिश्चित करना है. सूत्रों के मुताबिक़ कृषि मंत्रालय के इस प्रस्ताव पर वित्त मंत्रालय से चर्चा हो चुकी है और इसपर इसी हफ्ते कैबिनेट की मुहर लग सकती है. फंड का इस्तेमाल न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम में ख़रीद होने पर किसानों को होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए किया जाएगा. सरकार का फोकस इस बात पर ज़्यादा है कि किसानों को कम से कम समर्थन मूल्य जितना दाम ज़रूर मिल सके. क्योंकि होता ये है कि जो समर्थन मूल्य घोषित किया भी जाता है किसान को अपनी फ़सल का वो दाम भी नहीं मिल पाता है. इसके चलते किसान को अपनी फ़सल औने पौने दामों पर बेचनी पड़ती है. गृह मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में इस मसले पर बने मंत्रीसमूह ने इस योजना को अंतिम रूप दे दिया है. सूत्रों के मुताबिक़ मंत्रीसमूह ने किसानों से अनाज ख़रीदने के लिए तीन विकल्पों को मंज़ूरी दी है.

    1. बाज़ार गारंटी स्कीम ( Market Assurance Scheme ) – आमतौर पर प्रचलित विकल्प जिसमें केंद्र और राज्य सरकार की एजेंसियां जैसे एफसीआई किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर अनाज ख़रीदती हैं.
    1. मूल्य न्यूनता ख़रीद स्कीम ( Price Deficiency Procurement Scheme ) – ये मध्य प्रदेश में पहले से लागू भावान्तर भुगतान योजना जैसी स्कीम है. इसके तहत अगर फ़सल का दाम न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम होगा तो समर्थन मूल्य और फ़सल के दाम के अंतर का भुगतान सरकार करेगी.
    1. निजी ख़रीद और स्टॉक स्कीम ( Private Procurement & Stockist Scheme ) – चूंकि पहली दोनों स्कीम सरकार से जुड़ी हैं इसलिए सरकार अनाज की ख़रीद में निजी कंपनियों को भी शामिल करना चाहती है. राज्य सरकारें फ़सलों के दाम समर्थन मूल्य से नीचे जाने की हालत में कुछ चुनिंदा निजी कंपनियों को अनाज ख़रीदने की इजाज़त दे सकती हैं. कंपनियों को टैक्स में छूट और कमीशन देने की व्यवस्था की जाएगी.

 

इसका फ़ैसला राज्यों पर छोड़ा जाएगा कि वो अपनी ज़रूरत के मुताबिक़ किस विकल्प को चुनते हैं. वहीं कृषि मंत्रालय ने किसानों से गेहूं और धान के अलावा मोटे अनाज को भी किसानों से ख़रीदने का फ़ैसला किया है. हालांकि सरकार के लिए असली चुनौती है न्यूनतम समर्थन मूल्य का निर्धारण है. बजट में तो सरकार ने फ़सल की लागत से कम से कम डेढ़ गुना ज़्यादा समर्थन मूल्य देने का वादा किया है लेकिन ज़्यादातर किसान संगठन और जानकार समर्थन मूल्य के निर्धारण के फॉर्मूले को लेकर सरकार से सहमत नहीं दिखते.

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