सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, अयोध्या विवाद के मामले में होगी मध्यस्थता, पैनल में तीन नाम

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद के सर्वमान्य समाधान के लिए इसे मध्यस्थता के लिए सौंपने का फैसला किया है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, मध्यस्थता के लिए एक तीन सदस्यीय पैनल बनाया गया है। जस्टिस फकीर मोहम्मद कलीफुल्ला (रिटायर्ड) को इस पैनल का चेयरमैन नियुक्त किया गया है। इस पैनल के दो अन्य सदस्य आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर और सीनियर ऐडवोकेट श्रीराम पंचू हैं। बताया जा रहा है कि अयोध्या में ही मध्यस्थता के लिए कोशिश की जाएगी।

मध्यस्थता को लेकर बातजीत फैजाबाद में ही की जाएगी। अगले एक हफ्ते में यह काम शुरू हो जाएगा और 4 हफ्ते में पैनल को अपनी रिपोर्ट अदालत को सौंपनी होगी। हालांकि फाइनल रिपोर्ट के लिए पैनल को 8 हफ्ते का समय दिया गया है। मध्यस्थता के लिए जब तक बातचीत का सिलसिला चलेगा, सारी बातें गोपनीय रहेंगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पैनल में शामिल लोग या संबंधित पक्ष मामले से जुड़ी कोई भी जानकारी नहीं देंगे। कोर्ट ने मध्यस्थता की मीडिया रिपोर्टिंग पर भी पाबंदी लगाई है। साथ ही कोर्ट ने कहा है कि मध्यस्थता की कार्यवाही कैमरे के सामने होनी चाहिए।

शीर्ष अदालत ने विवादास्पद 2.77 एकड़ भूमि तीन पक्षकारों-सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के बीच बराबर-बराबर बांटने के इलाहाबाद हाई कोर्ट के 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपील पर सुनवाई के दौरान मध्यस्थता के माध्यम से विवाद सुलझाने की संभावना तलाशने का सुझाव दिया था। संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस धनन्जय वाई चन्द्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल नजीर शामिल हैं।

निर्मोही अखाड़ा जैसे हिंदू संगठनों ने रिटायर्ड जजों – जस्टिस कुरियन जोसफ, जस्टिस ए के पटनायक और जस्टिस जी एस सिंघवी के नाम मध्यस्थ के तौर पर सुझाए जबकि स्वामी चक्रपाणी धड़े के हिंदू महासभा ने पूर्व प्रधान न्यायाधीशों – जस्टिस जेएस खेहर और जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस (रिटायर्ड) ए के पटनायक का नाम प्रस्तावित किया। कोर्ट ने बुधवार को कहा कि वह अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को मध्यस्थता के लिए भेजा जाए या नहीं इस पर आदेश देगा। साथ ही इस बात को रेखांकित किया कि मुगल शासक बाबर ने जो किया उसपर उसका कोई नियंत्रण नहीं और उसका सरोकार सिर्फ मौजूदा स्थिति को सुलझाने से है।

शीर्ष अदालत ने कहा था कि उसका मानना है कि मामला मूल रूप से तकरीबन 1,500 वर्ग फुट भूमि भर से संबंधित नहीं है बल्कि धार्मिक भावनाओं से जुड़ा हुआ है। यूपी सरकार की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि कोर्ट को यह मामला उसी स्थिति में मध्यस्थता के लिए भेजना चाहिए जब इसके समाधान की कोई संभावना हो। उन्होंने कहा कि इस विवाद के स्वरूप को देखते हुए मध्यस्थता का मार्ग चुनना उचित नहीं होगा। इससे पहले, फरवरी महीने में शीर्ष अदालत ने सभी पक्षकारों को दशकों पुराने इस विवाद को मैत्रीपूर्ण तरीके से मध्यस्थता के जरिए निपटाने की संभावना तलाशने का सुझाव दिया था। कोर्ट ने कहा था कि इससे ‘संबंधों को बेहतर’ बनाने में मदद मिल सकती है।

शीर्ष अदालत में अयोध्या प्रकरण में 4 दीवानी मुकदमों में इलाहाबाद हाई कोर्ट के 2010 के फैसले के खिलाफ 14 अपील लंबित हैं। हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि अयोध्या में 2.77 एकड़ की विवादित भूमि तीनों पक्षकारों- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के बीच बराबर बांट दी जाए।

 

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