केंद्र प्रायोजित योजनाओं को खत्म करना चाहते हैं नीतीश कुमार, आरजेडी ने किया समर्थन

पटनाः केंद्र प्रायोजित योजनाओं को कम या फिर पूरी तरह से बंद करने की मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की मांग पर बिहार में राजनीति शुरू हो गई है. विपक्षी राजद इस मुद्दे पर जदयू के साथ है, तो भाजपा और कांग्रेस विमर्श की बात कह रहे हैं. साथ ही फेडरल स्ट्रक्चर में केंद्र की राज्यों के विकास में क्या भूमिका हो, ये भी तय करने की बात कह रहे हैं. राजनीति से इतर अगर बिहार के परिपेक्ष में इसको देखें, तो इसके फायदे और नुकसान दोनों हैं. एक विशेष रिपोर्ट

केरल में सौ फीसदी साक्षरता है, लेकिन बिहार अभी पूरी तरह से साक्षर नहीं हो पाया है. लेकिन जब केंद्रीय मदद की बात सामने आती है, तो जिस अनुपात में केंद्र सरकार केरल को मदद देती है. वही, अनुपात बिहार में भी लागू होता है. अगर शिक्षा के स्तर की बात करें, तो बिहार को केरल से ज्यादा मदद मिलनी चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं हो पाता.

स्वास्थ्य भी मूलभूत सुविधाओं में आता है. बिहार में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति तमिलनाडु जैसी नहीं है, फिर भी दोनों राज्यों को मदद एक सामान मिलती है. अगर हम केंद्र सरकार की स्वास्थ्य को लेकर रिपोर्ट देखेंगे, तो तमिलनाडु और बिहार में बड़ा अंतर नजर आयेगा, इसके मुताबिक बिहार को ज्यादा मदद मिलनी चाहिये, लेकिन केंद्रीय नियमों की वजह से ऐसा नहीं हो पाता है.

इसी तरह सड़कों के मामले में गुजरात और महाराष्ट्र से बिहार काफी पीछे है. औद्योगिक विकास की वजह से गुजरात और महाराष्ट्र में इंडस्ट्रियल कॉरीडोर है, लेकिन बिहार में उद्योगों को विकास नहीं है, इसलिए यहां ऐसा कोई कॉरीडोर नहीं बन पाया.  ये तीन ऐसे उदाहरण हैं, जो केंद्र प्रायोजित योजनाओं में बिहार की हकीकत को बयान कर रहे हैं और शायद यही वजह है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार केंद्र प्रायोजित योजनाओं को लेकर सख्त हैं. वह इन्हें पूरी तरह से बंद करने या फिर कम करने की वकालत करते हैं. अगर हम जदयू के विभिन्न नेताओं की बात सुनेंगे, तो वो भी मुख्यमंत्री की बात का समर्थन करते नजर आते हैं.

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