डीयू से देश की राजनीति तक, हर जगह अपनी छाप छोड़ गए अरुण जेटली; कुछ ऐसा रहा सियासी सफर
नई दिल्ली: देश के पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली अब हमारे बीच नहीं है। अरुण जेटली ने शनिवार को राजधानी दिल्ली स्थित एम्स अस्पताल में अंतिम सांस ली। अटल बिहारी वाजपेयी और मोदी सरकार में मंत्री रह चुके अरुण जेटली न सिर्फ भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख चेहरों में से एक थे बल्कि राज्यसभा में पार्टी की दमदार आवाज भी थे। आइए आपको बताते हैं उनके सियासी सफर के बारे में।
छात्र जीवन में रख दिया राजनीति में कदम, चुने गए डीयू अध्यक्ष
अरुण जेटली दिल्ली विश्वविद्यालय के दिनों से ही छात्र राजनीति में एक्टिव थे। छात्र जीवन में अरुण जेटली आरएसएस की स्टूडेंट विंग अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के सदस्य थे। अरुण जेटली ने स्नातक के दिनों में देशभर में प्रसिद्ध श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स के छात्र थे, वो इस कॉलेज के छात्रसंघ अध्यक्ष भी रहे। इसके बाद अरुण जेटली ने वकालत में एडमिश्न लिया और साल 1974 में एबीवीपी के प्रत्याशी के तौर पर डीयू के अध्यक्ष चुने गए।
इमरजेंसी के दौरान गए जेल
इंदिरा गांधी के शासन के दौरान जब देश में आपातकाल लागू किया गए तो देशभर के कई नेताओं और समाजिक कार्यकर्ताओं को जेल में डाल दिया गया। उन दिनों सरकार का विरोध करने पर अरुण जेटली को भी दिल्ली की तिहाड़ जेल में 19 महीने के लिए बंद कर दिया गया। जेल में अरुण जेटली की मुलाकात विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाले दिग्गजों से हुई।
आपातकाल के बाद चुनाव में किया जमकर प्रचार
साल 1977 में हुए चुनावों में कांग्रेस को बड़ी हार का सामना करना पड़ा। इन चुनावों में अरुण जेटली ने लोकतात्रिक युवा मार्चा के राष्ट्रीय संयोजक के तौर पर देशभर में चुनाव प्रसार किया।
1980 में हुई भाजपा में एंट्री
एबीवीपी, लोकतांत्रिक युवा मोर्चा के कार्यकर्ता के तौर पर काम कर चुके अरुण जेटली की भाजपा में एंट्री साल 1980 में हुई। उन दिनों अरुण जेटली दिल्ली में वकालत भी कर रहे थे। एक वकील और एक नेता के तौर पर अरुण जेटली देशभर मे विख्यात होते जा रहे थे। अरुण जेटली को साल 1991 में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में स्थान दिया गया।
रह चुके हैं भारत के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल
अरुण जेटली साल 1990 में भारत के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल नियुक्त किए गए। बतौर अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल, अरुण जेटली को बोफोर्स केस सौंपा गया, जिस मामले ने उन दिनों देश की राजनीति को हिला दिया था।
बीसीसीआई के उपाध्यक्ष का दायित्व भी निभाया
अरुण जेटली डीडीसीए के अध्यक्ष भी चुने जा चुके हैं। इतना ही नहीं, साल 2009 में अरुण जेटली बीसीसीआई के उपाध्यक्ष भी चुने गए।
अटल सरकार में पहली बार बने कैबिनेट मंत्री
अरुण जेटली को पहली बार अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्री पद दिया गया। उन्हें 1999 में राज्य मंत्री का पद दिया गया था, इसके बाद वो साल 2000 में भारत के कानून न्याय और कंपनी मामलों के मंत्री बनाए गए। अगले ही साल उन्हें जहाजरानी मंत्रालय की जिम्मेदारी भी दी गई, जहां उन्होंने पोर्ट्स के आधुनिकीकरण की तरफ खास ध्यान दिया।
2002 में चुने गए भाजपा के जनरल सेक्रेटरी
एक तरफ जहां अरुण जेटली केंद्र की अटल बिहारी सरकार में महत्वपूर्ण मंत्रालयों को बेहतरीन तरीके से संभाल रहे थे, वहीं दूसरी तरफ उनका कद संगठन की राजनीति में भी बढ़ रहा था। साल 2002 में अरुण जेटली भाजपा के जनरल सेक्रेटरी चुने गए। देश में सत्ता परिवर्तन होने के बाद भी वो भाजपा के प्रमुख चेहरों में बने रहे। साल 2006 में उन्हें गुजरात से राज्यसभा भेजा गया।
2009 में राज्यसभा में विपक्ष के नेता चुने गए
साल 2009 में अरुण जेटली राज्यसभा में विपक्ष के नेता चुने गए। भाजपा के एक पद वाली नीति के तहत उन्होंने संगठन के जनरल सेक्रेटरी के दायित्व से इस्तीफा दे दिया। राज्यसभा में विपक्ष के नेता की हैसियत के तौर पर उन्होंने CWG स्कैम, महिला आरक्षण बिल, इंडिया-अमेरिका न्यूक्लियर डील सहित कई मुद्दों पर दमदार भूमिका निभाई। साल 2012 में अरुण जेटली एकबार फिर से गुजरात से राज्यसभा के लिए चुने गए।
मोदी सरकार 1.0 में भी मिली महत्वपूर्ण जिम्मेदारी
अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री रह चुके अरुण जेटली को साल 2014 की मोदी सरकार में भी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई। हालांकि लोकसभा चुनाव में अमृतसर सीट पर वो हार गए, लेकिन उनके अनुभव को देखते हुए उन्हें वित्त, रक्षा के अलावा भी कई महत्वपूर्ण मंत्रालयों की जिम्मेदारी दी गई। मार्च 2018 में अरुण जेटली यूपी से राज्यसभा सदस्य चुने गए।
मोदी सरकार 2.0 में मंत्री पद लेने से कर दिया इंकार
लगातार गिरती सेहत के मद्देनजर अरुण जेटली ने नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में मंत्री पद लेने से इंकार कर दिया। उन्होंने पीएम नरेंद्र मोदी को चिट्टी लिखकर कोई भी दायित्व न देने का अनुरोध किया।