नयी दिल्ली। महाराष्ट्र में करीब दो महीने पहले शिवसेना के साथ मिलकर सरकार बनाने वाली कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने खुलासा किया है कि 2014 के विधानसभा चुनाव के बाद भी उद्धव ठाकरे की पार्टी शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) ने भाजपा को रोकने के लिए मिलकर सरकार बनाने का प्रस्ताव दिया था जिससे कांग्रेस ने तत्काल इनकार कर दिया था। चव्हाण ने साक्षात्कार में यह भी कहा कि शिवसेना के साथ हाथ मिलाने को लेकर इस बार भी पार्टी आलाकमान और अध्यक्ष सोनिया गांधी शुरू में तैयार नहीं थीं, लेकिन गहन विचार-विमर्श के बाद आगे बढ़ने और सरकार में शामिल होने का निर्णय लिया गया। गत नवंबर के आखिर में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में शिवसेना-राकांपा-कांग्रेस गठबंधन की सरकार बनी।
लंबे समय तक वैचारिक शत्रु रही शिवसेना के साथ हाथ मिलाने से जुड़ी परिस्थितियों के बारे में पूछे जाने पर चव्हाण ने कहा, यही स्थिति पांच साल पहले भी आई थी जब देवेंद्र फडणवीस की अल्पमत की सरकार बनी थी और शिवसेना विपक्ष में बैठी थी। उस समय भी शिवसेना और राकांपा की तरफ से यह प्रस्ताव मेरे पास आया था कि हम तीनों मिलकर सरकार बनाते हैं और भाजपा को रोकते हैं। उन्होंने कहा, मैंने उस प्रस्ताव को तुरंत खारिज कर दिया था। मैंने कहा था कि हार-जीत होती रहती है और हम हार गए हैं, उसमें कोई पहाड़ नहीं टूटता है क्योंकि पहले भी हारे हैं और विपक्ष में बैठे हैं। गौरतलब है कि 2014 का विधानसभा चुनाव भाजपा, शिवसेना, कांग्रेस और राकांपा अलग-अलग लड़े थे। भाजपा को 122, शिवसेना को 63, कांग्रेस को 42 और राकांपा को 41 सीटें हासिल हुई थीं। शुरू में कुछ महीने तक भाजपा ने अकेले सरकार चलाई और फिर शिवसेना भी उस सरकार का हिस्सा बनी थी।
फडणवीस से पहले महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे चव्हाण ने दावा किया, 2014 के बाद हमने पांच साल फडणवीस की सरकार देखी। इस दौरान जनतंत्र खत्म करने की कोशिश हुई। कांग्रेस और राकांपा के करीब 40 सांसदों और विधायकों को तोड़ा गया। लोगों को ब्लैकमेल करके और पदों का लालच देकर तोड़ा गया। उन्होंने आरोप लगाया, भाजपा एक पार्टी का शासन चाहती है और विपक्ष को खत्म करना चाहती है। फडणवीस सरकार में भ्रष्टाचार भी बहुत हुआ। अगर ये लोग पांच साल और सरकार में रहते तो जनतंत्र की नहीं बचता। कांग्रेस नेता ने कहा, इन हालात में हमने अपनी भूमिका बदली और वैकल्पिक सरकार का विचार किया। भाजपा और शिवसेना के बीच झगड़ा हुआ तो मैंने खुद वैकल्पिक सरकार की पहल की। फिर बातचीत शुरू हुई।
उन्होंने कहा, शुरू में कांग्रेस आलाकमान नाराज हुआ कि आप शिवसेना के साथ हाथ मिलाने पर कैसे विचार कर रहे हैं? सोनिया जी भी तैयार नहीं थीं। केरल के नेता तैयार नहीं थे। लेकिन मैंने सभी विधायकों से बात की और पार्टी के अल्पसंख्यक नेताओं से भी बात हुई। नेताओं ने माना कि भाजपा वैचारिक रूप से दुश्मन नंबर एक है। ऐसे में सबने वैकल्पिक सरकार पर सहमति दी। यह पूछे जाने पर कि क्या यह सरकार पांच साल चलेगी तो चव्हाण ने कहा, साझा सरकार के बारे में कोई 100 फीसदी गारंटी नहीं ले सकता है। लेकिन भाजपा ने जिस तरह से विपक्ष को खत्म करने की कोशिश की और जिस तरह से शिवसेना को धोखा दिया, हम उस मुद्दे पर साथ आए। मुझे लगता है कि जब तक ये मुद्दा है तब तक कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन रोजमर्रा में कठिनाई आती है क्योंकि अतीत की कुछ बाते रही हैं और भाजपा कुछ पुरानी बातों को सामने लाने में लगी हुई है।
उल्लेखनीय है कि 1989 में भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ गठबंधन बनाने का फैसला किया था। शिवसेना-भाजपा गठबंधन, कांग्रेस और फिर महाराष्ट्र में गठित राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को संयुक्त चुनौती देने लगा । 2014 में पहली बार गठबंधन के इतिहास में भाजपा और शिवसेना ने अलग अलग रास्ता अपनाया और 25 वर्षों में पहली बार दोनों दल एक दूसरे के ख़िलाफ़ मैदान में उतरे । अजित पवार से जुड़े घटनाक्रम और उनके उप मुख्यमंत्री बनने से जुड़े सवाल पर उन्होंने कहा, उप मुख्यमंत्री के बारे में शरद पवार ने निर्णय लिया है, उस पर मेरा टिप्पणी करना उचित नहीं है।
मंत्रिमंडल में अपने शामिल नहीं होने के बारे में पूछे जाने पर चव्हाण ने कहा, उद्धव जी मुख्यमंत्री,अजित पवार उपमुख्यमंत्री, बाला साहब थोराट पार्टी के नेता। इन सबके नीचे रहना मुझे उचित नहीं लगा। चव्हाण के मुताबिक उन्हें विधानसभा अध्यक्ष पद के लिए पेशकश की गई थी लेकिन उन्होंने सक्रिय राजनीति में बने रहने की खातिर इस पर सहमति नहीं दी। उन्होंने कहा कि आगे कांग्रेस नेतृत्व उन्हें जो भी भूमिका देगा, उसे वह स्वीकार करेंगे। यह पूछे जाने पर कि क्या राहुल गांधी के फिर से अध्यक्ष बनने की अटकलों को लेकर पार्टी के वरिष्ठ नेता असहज हैं तो उन्होंने कहा, बिल्कुल नहीं। यह सब कही-सुनी बातें हैं।