किसान नेताओं और सरकार के बीच 8 जनवरी को फिर होगी बातचीत
नई दिल्ली: नए कृषि कानूनों पर सातवें राउंड की बातचीत के बाद भी सरकार और किसानों के बीच गतिरोध बना रहा। सरकार और किसानों के बीच सातवें राउंड की बैठक खत्म हो गई है। आज की बैठक में भी बात नहीं बनी। कृषि कानून और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर गतिरोध जारी है। किसानों का कहना है कि सरकार संशोधन की बात पर अड़ी है और हमें कानून की वापसी से कम कुछ भी मंजूर नहीं। सरकार ने किसानों को फिर 8 जनवरी को बातचीत का प्रस्ताव दिया है। सूत्रों के मुताबिक यह बातचीत दोपहर 2 बजे होगी।
किसान संगठनों के नेताओं ने बताया कि आगे के कदम के बारे में कृषक संघ मंगलवार बैठक करेंगे। उन्होंने कहा कि हम कृषि कानून निरस्त करने पर जोर दे रहे हैं और सरकार आंतरिक विचार विमर्श के बाद आयेगी। इससे पहले किसान संगठनों और केंद्रीय मंत्रियों के बीव बैठक हुई। इसमें किसान संगठन प्रारंभ से ही तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने की मांग पर अड़े हुए थे जबकि सरकार की ओर से मंत्रियों द्वारा कानूनों के फायदे गिनाये गए। सूत्रों ने बताया कि ऐसे में सिर्फ एक घंटे की बैठक के बाद दोनों पक्षों ने भोजनावकाश लिया। इस दौरान तीनों केंद्रीय मंत्रियों ने आगे का रास्ता निकालने के लिये चर्चा की जबकि किसान संगठन के नेताओं ने ‘लंगर’ के माध्यम से आया भोजन ग्रहण किया।
हालांकि 30 दिसंबर की तरह आज केंद्रीय नेता लंगर के भोजन में शामिल नहीं हुए और भोजनावकाश के दौरान अलग से चर्चा करते रहे। भोजनावकाश एक घंटे से अधिक समय तक चला और गतिरोध समाप्त होने के कोई संकेत नहीं मिले क्योंकि सरकार कानूनों को निरस्त नहीं करने के अपने रूख पर कायम है। पहले घंटे की बातचीत के दौरान सिर्फ तीनों कृषि कानूनों को लेकर चर्चा हुई और अनाज खरीद से जुड़ी न्यूनतम समर्थन मूल्य की प्रणाली को कानूनी गारंटी देने की महत्वपूर्ण मांग पर चर्चा नहीं हुई।
इससे पहले, सरकार और किसान संगठनों के बीच छठे दौर की वार्ता 30 दिसंबर को हुई थी। उस दौरान पराली जलाने को अपराध की श्रेणी से बाहर रखने और बिजली पर रियायत जारी रखने की दो मांगों पर सहमति बनी थी। हालांकि, तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने और फसल की खरीद के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की व्यवस्था को लेकर कानूनी गारंटी पर अब तक कोई सहमति नहीं बन पायी है।
सूत्रों ने बताया कि तोमर ने रविवार को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से मुलाकात की और मौजूदा संकट के जल्द समाधान के लिए सरकार की रणनीति पर चर्चा की। उन्होंने बताया कि तोमर ने सिंह के साथ संकट का समाधान निकालने के लिए ‘बीच का कोई रास्ता’ निकालने को लेकर सभी मुमकिन विकल्पों पर चर्चा की। केंद्र के तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले एक महीने से ज्यादा समय से हजारों किसान दिल्ली की अलग-अलग सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे हैं। इनमें से ज्यादातर पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान हैं।
राष्ट्रीय राजधानी और आसपास के क्षेत्रों में भीषण ठंड के अलावा पिछले कुछ दिनों में भारी बारिश और प्रदर्शन स्थल पर जलजमाव के बावजूद किसान अपनी मांग पर डटे हुए हैं। पिछले साल सितंबर में लागू कानूनों के बारे में केंद्र सरकार का कहना है कि इससे कृषि क्षेत्र में बड़ा सुधार होगा और किसानों की आमदनी बढ़ाने में मदद मिलेगी लेकिन प्रदर्शन कर रहे किसानों को आशंका है कि इन कानूनों से एमएसपी और मंडी की व्यवस्था कमजोर होगी और वे बड़े कारोबारी घरानों पर आश्रित हो जाएंगे।
सरकार ने कहा है किसानों की आशंकाएं निराधार हैं और कानूनों को निरस्त करने से इनकार किया है। कई विपक्षी दलों और विभिन्न क्षेत्रों के लोगों ने भी किसानों का समर्थन किया है, वहीं कुछ किसान संगठनों ने पिछले कुछ हफ्तों में कृषि मंत्री से मुलाकात कर तीनों कानूनों को अपना समर्थन दिया।