केरल विधानसभा हंगामा: सुप्रीम कोर्ट ने LDF विधायकों को राहत देने वाली याचिका की खारिज
सुप्रीम कोर्ट ने केरल विधानसभा में हंगामा करने वाले लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (LDF) के विधायकों को राहत देने से इनकार करते हुए याचिका को खारिज कर दिया है. ये मामला साल 2015 का है, जब राज्य में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (UDF) की सरकार थी. राज्य सरकार ने केरल हाईकोर्ट के 12 मार्च के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी और याचिका दाखिल कर विधायकों के खिलाफ केस वापस लेने की इजाजत मांगी थी.
कानून से ऊपर नहीं हो सकते चुने हुए लोग: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने केरल के विधायकों की अनुशासनात्मक कार्रवाई को वापस लेने की मांग वाली याचिका खारिज करते हुए अपने फैसले में कहा कि चुने हुए लोग कानून से ऊपर नहीं हो सकते और उन्हें उनके अपराध के लिए छूट नहीं दी जा सकती. फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विधायकों को विशेषाधिकार इसलिए दी गई है कि आप लोगों के लिए काम करो. असेंबली में तोड़फोड़ करने का अधिकार नहीं दिया गया है.
सुप्रीम कोर्ट ने केरल सरकार से किए तीखे सवाल
कोर्ट ने कहा कि आपके विशेषाधिकार विधायकों को क्रिमिनल लॉ से संरक्षण नहीं देते हैं. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने केरल सरकार से पूछा था कि उपद्रवी विधायकों के खिलाफ दर्ज शिकायत वापस लेने और कार्यवाही निरस्त करना कौन से जनहित में आता है? कोर्ट के फैसले से ही ये नजीर बनेगी कि सदन में उपद्रव करने के नतीजे क्या हो सकते हैं? विशेषाधिकार की लक्ष्मण रेखा कहां तक है? राजनीतिक मुद्दे पर विरोध कहां तक हो सकता है? जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने अजीत और अन्य के खिलाफ केरल सरकार की याचिका पर सुनाया फैसला है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विधायकों के पास कानून से बचाव के लिए कोई विशेषाधिकार नहीं है. केरल सरकार द्वारा याचिका वापस लेना जनता के लिए न्याय नहीं होगा. ट्रायल कोर्ट भी FIR वपास लेने की मांग खरिज कर चुका है. केरल सरकार की याचिका में कोई मेरिट नहीं है.
क्या था मामला?
बता दें कि केरल विधानसभा में 13 मार्च, 2015 को उस समय अप्रत्याशित घटना हुई थी, जब उस समय विपक्ष की भूमिका निभा रहे एलडीएफ के सदस्यों ने तत्कालीन वित्त मंत्री के एम मणि को राज्य का बजट पेश करने से रोकने की कोशिश की थी. मणि बार रिश्वत घोटाले में आरोपों का सामना कर रहे थे. तत्कालीन एलडीएफ सदस्यों ने अध्यक्ष की कुर्सी को मंच से फेंकने के अलावा पीठासीन अधिकारी की मेज पर लगे कंप्यूटर, की-बोर्ड और माइक जैसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को भी कथित रूप से क्षतिग्रस्त कर दिया गया था.
केरल सरकार ने उच्च न्यायालय के 12 मार्च के आदेश के खिलाफ शीर्ष अदालत में दायर अपनी याचिका में दावा किया था कि अदालत ने इस बात पर गौर नहीं किया कि कथित घटना उस समय हुई, जब विधानसभा का सत्र चल रहा था और अध्यक्ष की ‘पूर्व स्वीकृति के बिना’ कोई मामला दर्ज नहीं किया जा सकता था.