सुभाष घई की फ़िल्म मिलना मेरे लिए बड़ा अचीवमेंट था-नरेश गोसाई
नरेश गोसाई बहुत परिश्रमी, समर्पित, अभिनय के प्रति निष्ठावान और प्रतिभावान अभिनेता हैं.उन्होंने स्टेज, टी वी. और फिल्मों में बतौर अभिनेता खासी पहचान बनाई हैं और तो और एडवरटाइजिंग फिल्मों में बहुत कम समय में ना केवल अपार लोकप्रियता हांसिल की है बल्कि एडवर्ल्ड से सम्बद्ध कलाकारों में अपना बढ़िया रेपो भी बनाया.दूरदर्शन पर प्रसारित धारावाहिक ‘फिर वही तलाश, ”दिल दरिया ‘और..’दूसरा केवल ‘ से अपने कैरियर की शरुआत नरेश गोसाई ने छोटी-छोटी किन्तु महत्वपूर्ण भूमिकाओं से की. बेहतरीन संवाद अदायगी और भावप्रवण अभिनय की वज़ह से वह बहुत जल्दी निर्देशक लेख टंडन के प्रिय हो गए.
नरेश गोसाई को बचपन से ही सांस्कृतिक गतिविधियों में गहरी रूचि थी जब वह अपने पिता कुलदीप गोसाई जो भारत सरकार के कर्मचारी होते हुए भी राम लीला तथा स्टेज कार्यकर्मों में बढ़ चढ़ कर भाग लेते हुए देखते थे तो बड़े ही थिरल हो जाया करते थे. अपने बेटे की रूचि देखकर नरेश गोसाई को दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले प्रातः कालीन धारावाहिक पोपट जासूस, हमारे मैनेजर, आदि में संक्षिप्त रोल्स में प्रोमोट करना शुरू कर दिया.अपनी कार्य कुशलता और बढ़िया व्यवहारिकता के बल पर नरेश गोसाई ने दिल्ली स्तर पर धारावाहिक निर्माताओं, निर्देशकों का दिल जीत लिया जिसके चलते उन्हें बतौर अभिनेता नियमित काम मिलने लगा.यूँ तो नरेश गोसाई ने ढेर सारे धारावाहिक और टेली फ़िल्में भी दिल्ली में की… मगर उनका मक़सद मायानगरी मुंबई के नामचीन फ़िल्म मेकर्स और बड़े कलाकारों के साथ उम्दा काम करना था.अपने इसी सपने को साकार काने के लिए नरेश मुंबई कूच कर गए. श्रीकृष्ण सरल ने सही कहा है -“अगर तुम ठान लो तो तारे गगन के तोड़ सकते हो…”इसी राह पर नरेश गोसाई पहले दिल्ली और फिर मुंबई में फ़िल्म, सीरियल और एड्स यानी एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में बड़े जोरशोर से स्ट्रगल करने लगे. जब कोई शख्श धर जा या मर जा .. जैसी जिद्द कर बैठे तो ऊपर वाला भी उसे अपना ग्रीन सिग्नल दे ही देता है. कैरियर की पहली “मनोरमा ” उन्हें अपने दिल्ली प्रवास पर ही मिली.
- दिल्ली में आपने स्टेज, टेलीविज़न सीरियल्स और एड्स में काम किया, मुंबई आते ही पहली फ़िल्म कांची आपको कैसे मिली?
- मैंने तो हर पल यह महसूस किया है कि आपका वर्किंग कार्ड ही आपके आगे बढ़ने में सहायक होता है मेरे साथ भी यही हुआ. दिल्ली में किए काम का रिस्पांस मुझे मुंबई पहुंचते ही मिला, हुआ यूँ निर्माता, निर्देशक सुभाष घई उन दिनों अपनी अगली अपने फ़िल्म कांची की प्लानिंग कर रहे थे उनके दिमाग़ में एक हंसमुख सा ज़िंदादिल पुलिस इंस्पेक्टर का किरदार घूम रहा था जिसे वो रूटीन एक्टर से कराना नहीं चाहते थे.. उन्हें कॉमेडी की प्रॉपर टाइमिंग वाला तरो ताज़गी लिए, कम एक्सपोज एक्टर चाहिए था उन्होंने अपनी यह मंशा अपने कास्टिंग डायरेक्टर को बता दी. मयंक दीक्षित मेरा काम देख चुके थे बावजूद इसके कैरेटर ऑडिशन के बाद मुझे फाइनल ग्रीन सिंग्नल मिल गया. इतने बड़े फ़िल्म मेकर की फ़िल्म मिलना मेरे लिए मिलना बहुत बड़ा अचीवमेंट था,.. “
- कांची के बाद कौन-कौन सी फ़िल्में आपको मिली उनके बारे में विस्तार से बताएं?
- सुभाष घई साहब की कांची के बाद तो मेरी एक्टिंग की गाड़ी चल पड़ी…उसके बाद धीरे – धीरे मेरी पहचान बॉलीवुड में होने लगी. जाने माने युवा पीढ़ी के निर्माता, निर्देशकों की नज़र में आ गया. जिसकी वजह से ‘व्हायट इज फिश’ निर्देशक गुरमीत सिंह, ‘तीन थे भाई ‘ निर्देशक मिर्ग दीप लाम्बा,’लकी ओये लकी’ ‘निर्देशक दिबॉनकर बनर्जी, ‘आँखों देखी ‘ निर्देशक रजत कपूर और वेब सीरीज ‘ मिर्ज़ापुर ‘ और ‘इल लीगल ‘में मुझे नोटिस किए जाने वाले रोल्स मिले.
- आप एंटरटेनमेंट के सभी माध्यमों से जुड़े हैं किस तरह की फ़िल्में और रोल्स करने की ख्वाइश रखते हैं?
- “टी वी राइटर और फ़िल्म डायरेक्टर का माध्यम है इन मीडियम में एक्टर्स को उनकी कैपिसिटी और ऐज ग्रुप के अनुसार ही कास्ट किया जाता है. अभी तो मेरे सही सफर की शुरुआत है जब मौका आएगा तब ज़रूर बताऊंगा.”
- बॉलीवुड में ऐसा कोई नामचीन निर्देशक जिसके साथ आप काम करने की इच्छा रही हो?
- “हां यश चोपड़ा मेरे पसंदीदा निर्देशक थे. वक़्त, दाग,चांदनी, डर सिलसिला, दीवार, मेरी फेवरिट फ़िल्में रही हैं काश मैं उनके निर्देशन में काम कर पाता!”
- क्या आपकी रूचि अभिनय के अलावा प्रोडक्शन, डायरेक्शन में भी काम करने की भी है.?
- अभिनय मेरा पहला प्यार या यूँ कहिये मेरी खुराक है और इसी फन में एन्जॉय करना चाहता हूं. जबकि प्रोडक्शन और डायरेक्शन की विधाओं में थोड़ा सक्षम भी हूं.”.
- आपकी आनेवाली फ़िल्में?
- “यूँ तो मैं बहुत अच्छी अच्छी फ़िल्में कर रहा हूं मगर ‘लकी ओये लकी ‘को लेकर बहुत थिरल हूं. दिबाकर बनर्जी की इस फ़िल्म में मैं सनी लियोनी के पिता की बढ़िया भूमिका कर रहा हूं.”
-संजय एम. तराणेकर