बिहार में जातीय जनगणना पर कैबिनेट की मुहर, 8 महीने में पूरी होगी गिनती

बिहार में जातीय जनगणना पर नीतीश कैबिनेट की मुहर लग गई है। शुक्रवार को सीएम नीतीश की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में जातीय जनगणना समेत आठ फैसलों को हरी झंडी मिली। आठ महीने के अंदर जातीय जनगणना पूरी करा ली जाएगी। बिहार सरकार अपने ही संसाधनों से गणना कराएगी।

मुख्य सचिव आमिर सुबहानी  ने कैबिनेट के फैसले की जानकारी देतेे हुए बताया कि कई स्तरों पर गणना होगी। सामान्य प्रशासन को मुख्य जिम्मेदारी दी जाएगी। जिला स्तर पर जिला प्रशासन इसके पदाधिकारी होंगे। पंचायत स्तर पर भी जिम्मेदारी तय होगी। गणना के लिए 500 करोड़ का प्रावधान बिहार आकस्मिक निधि से किया जाएगा। अगले साल फरवरी की डेडलाइन तय की गई है।

गुरुवार को ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में हुई सर्वदलीय बैठक में सर्वसम्मति से जातीय जनगणना का निर्णय लिया गया था। बिहार में सभी धर्मों की जातियों और उपजातियों की गिनती का फैसला लिया गया है। सर्वदलीय बैठक के बाद सीएम ने यह भी घोषणा की थी कि बहुत ही कम समय सीमा निर्धारित कर जाति आधारित गणना पूरी होगी। इसके लिए बड़े पैमाने पर तेजी से काम होगा।

भाजपा को तीन आशंकाएं
भाजपा ने जातीय जनगणना को लेकर तीन आशंकाएं जताई हैं। प्रदेश अध्यक्ष डॉ. संजय जायसवाल ने कहा है कि जाति आधारित गणना कराने के दौरान तीन आशंकाओं के निदान सुनिश्चित कराने का आग्रह हमने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से किया है। उन्होंने कहा कि बैठक में इस बात की सहमति व्यक्त की गई कि जाति एवं जाति में भी उपजाति आधारित सभी धर्मों की गणना होगी। हम केंद्र के बाबा साहब अंबेडकर के संविधान प्रदत्त सातवें शेड्यूल के अधिकारों में किसी तरह की छेड़खानी नहीं करेंगे। मुख्यमंत्री के सामने तीन आशंकाएं प्रकट की हैं, जिनका निदान गणना करने वाले कर्मचारियों को स्पष्ट रूप से बताना होगा।

पहली आशंका – गणना के दौरान कोई रोहिंग्या और बांग्लादेशी का नाम नहीं जुड़ जाए और बाद में वह इसी के आधार पर नागरिकता को आधार नहीं बनाए। दूसरी कि सीमांचल में मुस्लिम समाज में यह बहुतायत देखा जाता है कि अगड़े शेख समाज के लोग शेखोरा अथवा कुलहरिया बन कर पिछड़ों की हकमारी करने का काम करते हैं। यह भी गणना करने वालों को देखना होगा। तीसरी कि भारत में सरकारी तौर पर 3747 जातियां है और केंद्र सरकार ने स्वयं सुप्रीम कोर्ट के हलफनामे में बताया है कि उनके 2011 के सर्वे में 4.30 लाख जातियों का विवरण जनता ने दिया है। यह बिहार में भी नहीं हो, इसके लिए सभी सावधानियां बरतने की आवश्यकता है।

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