वरिष्ठ पत्रकार वेद प्रताप वैदिक का निधन

वरिष्ठ पत्रकार वेद प्रताप वैदिक (Ved Pratap Vaidik) का  निधन हो गया। वे दुनियाभर में भारतीय पत्रकारिता को पहचान दिलाने के लिए जाने जाते थे। उन्होंने इंदौर में अपनी शिक्षा ली और इसके बाद देश-विदेश के कई समाचार पत्रों और मीडिया संस्थानों में काम किया। बताया जा रहा है कि वे अपने घर में गिरने से घायल हो गए थे। उन्होंने पाकिस्तानी आतंकवादी हाफिज सईद का इंटरव्यू किया था जो काफी चर्चा में रहा था।

वैदिक (Ved Pratap Vaidik) एक राजनीतिक विश्लेषक और स्वतंत्र स्तंभकार थे। वो नियमित रूप से देशभर में चल रहे मुद्दों पर अपने विचार लिखते थे। उन्होंने हिन्दी के लिए सत्याग्रह किया और जेल भी गए। सिर्फ 13 वर्ष की उम्र में हिन्दी के लिए पहली बार जेल गए। उन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति पर अपना शोध ग्रन्थ हिन्दी में लिखा जिसके कारण ‘स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज’(जेएनयू) ने उनकी छात्रवृत्ति रोक दी और स्कूल से निकाल दिया। इस ज्वलन्त मुद्दे पर 1966-67 में भारतीय संसद में खूब हंगामा हुआ। डॉ राममनोहर लोहिया, मधु लिमये, आचार्य कृपलानी, हीरेन मुखर्जी, प्रकाशवीर शास्त्री, अटल बिहारी वाजपेयी, चन्द्रशेखर, भागवत झा आजाद, हेम बरुआ आदि कई वरिष्ठ नेताओं ने वैदिक का समर्थन किया। अंत में इंदिरा गांधी की पहल पर ‘स्कूल’के संविधान में संशोधन हुआ और वैदिक को वापस लिया गया। डॉ वैदिक ने पिछले 50 वर्षों में हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए कई आंदोलन चलाए। उन्होंने एक लघु पुस्तिका विदेशों में अंग्रेजी भी लिखी जिसमें बताया कि कोई भी स्वाभिमानी और विकसित राष्ट्र अंग्रेजी में नहीं बल्कि अपनी मातृभाषा में सारा काम करता है। उनका विचार है कि भारत में अनेकानेक स्थानों पर अंग्रेजी की अनिवार्यता के कारण ही आरक्षण अपरिहार्य हो गया है जबकि इस देश में इसकी कोई आवश्यकता नहीं है।

कई भाषाओं के जानकार, विदेशों में बनाई पहचान
वैदिक (Ved Pratap Vaidik) का जन्म 30 दिसंबर1944 को इंदौर में हुआ। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा भी इंदौर में ही ग्रहण की। दर्शन और राजनीति उनके मुख्य विषय थे। उन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से अन्तरराष्ट्रीय राजनीति में पीएचडी करने के बाद दिल्ली में राजनीति शास्त्र का अध्यापन किया। अपने अफगानिस्तान पर शोधकार्य के दौरान उन्हें कई अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालयों में पढ़ने का अवसर मिला। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञों में उनका स्थान महत्वपूर्ण है। उन्होंने लगभग पचास देशों की यात्रा की है। वे रूसी, फारसी, अंग्रेजी, संस्कृत व हिन्दी सहित अनेक भारतीय भाषाओं के विद्वान थे।

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