समलैंगिक विवाह को वैध बनाना इतना आसान भी नहीं है, जितना कि यह दिखता है-सुप्रीम कोर्ट
New Delhi: समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriage) के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में मंगलवार को सुनवाई जारी रही. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय पीठ ने समलैंगिक विवाह को लेकर अहम टिप्पणी की. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि समलैंगिक विवाह को वैध बनाना इतना आसान भी नहीं है, जितना कि यह दिखता है. इस मुद्दे पर कानून बनाने के लिए संसद (Parliament) के पास निर्विवाद रूप से विधायी शक्ति है. ऐसे में हमें इस पर विचार करना है कि हम इस दिशा में कितनी दूर तक जा सकते हैं. हालांकि मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस रविंद्र भट्ट ने कहा कि उन्हें उम्मीद बहुत कम है कि संसद इस मामले में कानून बनाएगी.
भारत के चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ (Constitution Bench) ने कहा कि अगर समलैंगिक विवाह की अनुमति दी जाती है, तो इसके नतीजे के पहलुओं को ध्यान में रखते हुए इसकी न्यायिक व्याख्या, विशेष विवाह अधिनियम, 1954 तक ही सीमित नहीं रहेगी. इसके दायरे में पर्सनल लॉ (Personal Law) भी आ जाएंगे. पीठ ने कहा कि शुरू में हमारा विचार था कि इस मुद्दे पर हम पर्सनल लॉ को नहीं छुएंगे, लेकिन बिना पर्सनल लॉ में बदलाव किए समलैंगिक शादी को मान्यता देना आसान काम नहीं है. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय संविधान पीठ गोद लेने, उत्तराधिकार, पेंशन से जुड़े कानून और ग्रेच्युटी आदि विषयों पर कई कानूनी सवालों से जूझ रही है.
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के सदस्यों में न्यायमूर्ति हिमा कोहली, न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा, न्यायमूर्ति एस के कौल और न्यायमूर्ति एसआर भट्ट भी शामिल हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ‘अब हमारे सामने यह सवाल है कि अगर यह शक्ति विशेष रूप से संसद को दी की गई है तो कोर्ट असल में अपने क्षेत्राधिकार का इस्तेमाल कहां करेगा. वे कौन सी खाली जगहें हैं, जहां कोर्ट अपनी शक्तियों का उपयोग करेगा.’ सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि इससे इनकार नहीं किया जा रहा कि 1954 के अधिनियम और विभिन्न धर्मों के पर्सनल लॉ के बीच संबंध है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ‘इसलिए आप विशेष विवाह अधिनियम तक सीमित नहीं रह सकते और इसे इससे आगे जाना होगा.’