आनंद मोहन की रिहाई पर नीतीश-तेजस्वी की सफाई
Bihar: बिहार सरकार ने सोमवार की शाम को जेल में बंद कैदियों की रिहाई को लेकर एक बड़ा बदलाव किया। इस बदलाव के बाद बिहार के गोपालगंज जिले के तत्कालीन डीएम जी कृष्णैया की हत्यारे बाहुबली पूर्व सांसद आनंद मोहन सिंह की जल्द ही रिहाई हो जाएगी। हालांकि इस समय आनंद मोहन अपने बड़े बेटे चेतन आनंद की शादी को लेकर 15 दिनों की पैरोल पर जेल से बाहर हैं।
बिहार सरकार ने 10 अप्रैल को जेल मैनुअल के परिहार नियमों में बदलाव को कैबिनेट की स्वीकृति दी थी। बिहार सरकार ने कारा अधिनियम 1894 की धारा 59 एवं दंड प्रक्रिया संहिता 1973 (1074 का 2) की धारा 432 द्वारा प्रदत्त शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए बिहार कारा हस्तक 2012 की अधिसूचना निर्गत होने की तिथि से यह संशोधन किया था। आनंद मोहन गोपालगंज के तत्कालीन डीएम जी कृष्णैया की हत्या के आरोप पर अपनी सजा पूरी कर चुके हैं लेकिन सरकारी सेवक की हत्या का दोषी होने के कारण रिहाई नहीं मिल पा रही थी।
इसी बाबत जहां एक तरफ बीजेपी नीतीश सरकार पर हमलावर है तो वहीं भतीजा तेजस्वी आनंद मोहन की रिहाई पर सफाई दे रहे हैंं।
तेजस्वी यादव ने कहा कि जो कानूनी तरीका था उसे पालन किया इसके बाद वह रिहा हो रहे हैं तो फिर इसपर सवाल क्यों उठ रहे हैं. इसके बाद जब मीडिया ने कहा कि आनंद मोहन सिंह की रिहाई पर सुशील मोदी सवाल उठा रहे हैं तब तेजस्वी यादव ने कहा कि सुशील मोदी ही उनकी रिहाई की भी मांग कर रहे थे.
DM की हत्या के मामले में हुई थी सजा
बता दें कि 1994 को गोपालगंज के तत्कालीन DM जी कृष्णैया की गोली मारकर हत्या हुई थी। हत्या के इस मामले में आनंद मोहन को सजा हुई थी। आनंद मोहन को साल 2007 में इस मामले में पटना हाई कोर्ट ने दोषी ठहराया था और फांसी की सजा सुनाई थी। 2008 में पटना हाई कोर्ट की ओर से ही इस सजा को उम्र कैद में तब्दील कर दिया गया। आनंद मोहन पिछले 4 महीने में 3 बार पेरोल पर बाहर आए हैं। वह अभी भी अपने बेटे और RJD के विधायक चेतन आनंद की सगाई के लिए परोल पर बाहर हैं।
कौन है बाहुबली नेता आनंद मोहन सिंह
आनंद मोहन बिहार के सहरसा जिले के पचगछिया गांव से आते हैं। उनके दादा राम बहादुर सिंह एक स्वतंत्रता सेनानी थे। आनंद मोहन की राजनीति में एंट्री 1974 में लोकनायक जयप्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति के दौरान हुई थी। आनंद मोहन राजनीति में महज 17 साल की उम्र में आ गये थे। जिसके बाद उन्होने कॉलेज की पढ़ाई छोड़ दी थी। इमरजेंसी के दौरान पहली बार 2 साल जेल में रहे। आनंद मोहन का नाम उन नेताओं में शामिल है जिनकी बिहार की राजनीति में 1990 के दशक में तूती बोला करती थी।
जेपी आंदोलन के जरिए ही आनंद मोहन बिहार की सियासत में आए और 1990 में सहरसा जिले की महिषी सीट से जनता दल के टिकट पर चुनाव जीते। तब बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव थे। स्वर्णों के हक के लिए उन्होंने 1993 में बिहार पीपल्स पार्टी बना ली। लालू यादव का विरोध कर ही आनंद मोहन राजनीति में निखरे थे।
लालू के घोर विरोधी
बिहार की राजनीति में जब भी कद्दावर और दमखम रखने वाले बाहुबली नेताओं की बात की जाती है आनंद मोहन सिंह का नाम लोग जरूर लेते हैं। बिहार की राजनीति जब से शुरू हुई, तबसे जाति के नाम पर चुनाव हुए और लड़े गए। एक दौर बिहार की राजनीति में 90 के दशक में आया जब ऐसा सामाजिक ताना-बाना बुना गया था कि जात की लड़ाई खुलकर सामने आ गई थी और अपनी-अपनी जातियों के लिए राजनेता भी खुलकर बोलते दिखते थे।
चुनाव के समय जात के नाम पर आए दिन मर्डर की खबरें आती थीं। उस वक्त लालू यादव का दौर चल रहा था। उस दौर में आनंद मोहन लालू के घोर विरोधी के रूप में उभरे। 90 के दशक में आनंद मोहन की तूती बोलती थी। उनपर हत्या, लूट, अपहरण, फिरौती, दबंगई समेत दर्जनों मामले दर्ज हैं।
पिछले 15 वर्षों से सहरसा जेल में काट रहे सजा
आईएएस अधिकारी की हत्या के मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद पिछले 15 वर्षों से बिहार की सहरसा जेल में सजा काट रहे। वह उन 27 कैदियों में शामिल हैं, जिन्हें जेल नियमों में संशोधन के बाद बिहार की जेल से रिहा किया गया जाएगा। नियमों में बदलाव और आनंद मोहन सिंह की रिहाई से राजनीतिक गलियारे में बवाल मचा हुआ है