क्या जातिगत जनगणना का मुद्दा चुनावों में लगाएगा कांग्रेस की नैया पार?

प्रीती पांडेय

बिहार में जातीय जनगणना के आंकड़े जारी होने के बाद अब जातिय सियासत का असर चुनावी राज्यों में भी देखने को मिलेगा । कांग्रेस वर्किग कमेटी की दिल्ली में बैठक आयोजित की गई जिसमें तय किया गया है कि कांग्रेस शासित राज्यों में जातीय जनगणना कराई जाएगी। चार घंटे मंथन करने के बाद पार्टी ने तय किया है कि वो कांग्रेस शासित राज्यों में जातीय जनगणना कराएगी। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इसका ऐलान करते हुए कहा कि वर्किंग कमेटी ने जाति आधारित जनगणना का समर्थन करने का ऐतिहासिक फैसला लिया है, साथ ही उम्मीद जताई कि विपक्ष के गठबंधन में भी ज्यादातर दल इस फैसले से सहमत होंगे । कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में सोनिया गांधी, प्रियंका वाड्रा, राहुल गांधी के साथ ही राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे प्रमुख रूप से मौजूद थे। इनके साथ ही बैठक में कर्नाटक, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भी शामिल हुए।जातीय गणना कराने को लेकर लिए फैसले के बारे में बताते हुए राहुल गांधी ने कहा- “जिन राज्यों में हमारी सरकार है, वहां जातिगत गणना होगी। छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना में हमारी सरकार आ रही है। हमारे पास जाति जनगणना का डेटा नहीं, सरकार अगर उस डेटा को रिलीज नहीं करती है तो जब हमारी सरकार आएगी, तब हम उसे रिलीज करेंगे।”माना जा रहा है कि कांग्रेस ने बीजेपी के हिंदुत्व एजेंडा का मुकाबला करने के लिए जाति आधारित गणना पर जोर दिया है।साथ ही ओबीसी को अपने पाले में खींचने की कोशिश तेज कर दी है।राहुल ने कहा कि इस देश में किसकी कितनी आबादी है। सवाल यह है कि देश का जो धन है क्या वो इन लोगों के हाथ में है या नहीं। देश के संस्थानों में आदिवासी, ओबीसी, दलित कितने हैं? यही सवाल है। हिंदुस्तान के संस्थानों में कितने हैं। यही हम पूछ रहे हैं। प्रधानमंत्री कह रहे हैं आप देश को तोड़ना चाहते हैं, इस पर आप क्या कहेंगे?

राहुल गांधी ने कहा कि बिहार की जातिगत जनगणना ने साबित कर दिया है कि राज्य में 84 फीसदी लोग अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) हैं और उनकी हिस्सेदारी उनकी आबादी के हिसाब से होनी चाहिए। उन्होंने कहा, ‘केंद्र सरकार के 90 सचिवों में से केवल तीन ओबीसी हैं, जो भारत के बजट का केवल पांच फीसदी संभालते हैं।राहुल ने आगे कहा कि हमारे 4 सीएम हैं और उनमें से तीन ओबीसी के हैं। । बीजेपी के दस मुख्यमंत्री हैं लेकिन एक ही ओबीसी से है। मैंने संसद में उदाहरण दिया कि देश के 90 सचिवों में से केवल तीन ओबीसी वर्ग के हैं। इसे लेकर आज तक कुछ नहीं कहा गया। इससे साफ था कि नरेंद्र मोदी इस बात पर सहमत हैं कि देश में जिनकी आबादी 50 फीसदी के करीब है उनकी सत्ता में भागीदारी न के बराबर हो। उनका काम है कि ओबीसी समुदाय का ध्यान भटकाया जाए। राहुल गांधी ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ओबीसी वर्ग के लिए काम नहीं करते, बल्कि उनका ध्यान भटकाने का प्रयास करते हैं। राहुल गांधी ने कहा कि जाति आधारित जनगणना एक एक्सरे की तरह है जिससे ओबीसी और अन्य वर्गों की स्थिति के बारे में पता चल सकेगा। राहुल गांधी ने सवाल किया कि आखिर प्रधानमंत्री यह एक्सरे क्यों नहीं चाहते ?
सरकारी योजनाओं का लाभ समाज के हर तबके को मिल सके इसके लिए भारत के जातिगत आंकड़ों को जानना महत्वपूर्ण है।
वहीं कांग्रेस अध्यक्ष मिल्लकार्जुन खड़गे ने कहा – कल्याणकारी योजनाओं में सही हिस्सेदारी के लिए समाज के कमजोर वर्गों की स्थिति पर सामाजिक-आर्थिक डेटा होना जरूरी है। कांग्रेस लगातार देशव्यापी जातीय जनगणना की मांग उठा रही है, लेकिन इस मुद्दे पर BJP चुप है। उन्होंने कहा, ‘यूपीए-2 सरकार ने वास्तव में इस जनगणना को पूरा किया था, लेकिन इसके परिणाम मोदी सरकार द्वारा प्रकाशित नहीं किए गए थे। सामाजिक सशक्तिकरण कार्यक्रमों के लिए एक मजबूत आधार प्रदान करने और सामाजिक न्याय को गहरा करने के लिए इस तरह की जनगणना आवश्यक हो गई है।’
बीते कुछ चुनावों पर अगर गौर फरमाया जाए तो पाएंगे कि बीजेपी के पक्ष में ओबीसी के वोट बैंक में लगातार ईजाफा हुआ है। 2014 लोकसभा चुनाव के बाद से इसमें काफी बढ़ोतरी हुई है। यदि पिछले दो लोकसभा चुनाव के आंकड़ों पर नजर दौड़ाई जाए तो जाए तो पता चलता है कि बीजेपी के पक्ष में ओबीसी वोटर लामबंद हुए हैं तो वहीं दूसरी ओर विपक्षी दलों खासकर कांग्रेस की पकड़ यहां कमजोर हुई है। सीएसडीएस के आंकड़ों से पता चलता है कि 2009 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के पक्ष में 22 फीसदी ओबीसी मतदाताओं ने मतदान किया लेकिन 2014 में यह बढ़कर 34 फीसदी हो गया। यह वह चुनाव था जब पहली बार नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने। 5 साल बाद जब 2019 के लोकसभा चुनाव हुए तब यह आंकड़ा पहुंचकर 44 फीसदी पर पहुंच गया। वहीं कांग्रेस के पक्ष में इन दो चुनावों में केवल 15 फीसदी वोट बैंक से संतोष करना पड़ा। ऐसे में कांग्रेस की नजर इस बड़े वोट बैंक पर है, यही वजह है कि चाहे महिला आरक्षण बिल का मसला हो या जातीय जनगणना का मसला कांग्रेस लगातार ओबीसी को लेकर मुखर है ।

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