ईरान-पाकिस्तान की दोस्ती थी मजबूत ….. फिर क्यों आई रिश्तों में खटास
ईरान की ओर से पाकिस्तान में की गई एयरस्ट्राइक के दो दिन बाद पाकिस्तान ने भी ईरान में एयरस्ट्राइक की है। पाकिस्तान की इस एयरस्ट्राइक में नौ लोगों की जान चली गई है। पाकिस्तान की इस कार्रवाई के बाद अलगाववादी बलूच समूह ने चेतावनी दी है कि पाकिस्तान को इसकी कीमत चुकानी होगी। पहले ईरान ने बलूचिस्तान में एयर स्ट्राइक की, जिसमें 2 बच्चों की मौत हो गई।
ईरान और पाकिस्तान दोनों देशों ने अपनी-अपनी एयरस्ट्राइक को आतंकवादियों के खिलाफ बताया है. ईरान ने पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठन जैश-अल अदल को तो पाकिस्तान ने खुद को सरमाचर बताने वाले आतंकियों के खिलाफ एयरस्ट्राइक किए जाने की बात कही. दोनों देशों ने आरोप लगाया है कि लंबे समय से कहे जाने के बावजूद मुल्क में छिपे आतंकियों पर कार्रवाई नहीं किए जाने से उन्हें हवाई हमले पर मजबूर होना पड़ा. अब साफ लग रहा है कि दोनों मुस्लिम देशों के बीच संबंध फिलहाल सुधरने वाले तो नहीं हैं.
पाकिस्तान को मान्यता देने वाला दुनिया का पहला मुस्लिम देश था ईरान
मौजूदा समय में ईरान और पाकिस्तान के आपसी संबंध भले ही कड़वाहट के चरम पर हो, लेकिन शुरुआत में दोनों देशों के बीच गहरी दोस्ती थी. ईरान ने पाकिस्तान को दुनिया में खासकर मिडिल ईस्ट सहित मुस्लिम देशों के बीच पहचान दिलाने में मदद की थी. ईरान दुनिया में पाकिस्तान को मान्यता देने वाला पहला मुस्लिम देश था. ईरान और पाकिस्तान ने 19 फरवरी 1950 को एक समझौते पर दस्तखत किए थे.
लियाकत अली खान और शाह ने किया एक-दूसरे देश का दौरा, समझौते
पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान ने 1949 में ईरान की राजधानी तेहरान का दौरा किया था. इसके जवाब में 1950 में ईरान के शाह पाकिस्तान गए थे. ईरान के शाह पाकिस्तान जाने वाले पहले राष्ट्र प्रमुख माने जाते हैं. इसी तरह पाकिस्तान और ईरान 1955 में अमेरिका के नेतृत्व वाले बगदाद समझौते का हिस्सा बने. शुरुआत में दोनों मुस्लिम देशों के बीच दोस्ती में शिया-सुन्नी विवाद कभी आड़े नहीं आया.
भारत के खिलाफ 1965 और 1971 में ईरान का पाकिस्तान को पूर्ण समर्थन
भारत से युद्ध के दौरान साल 1965 और 1971 में ईरान ने पाकिस्तान को पूरी तरह से राजनीतिक और राजनयिक समर्थन दिया था. इसके पहले ईरान ने 1963 में पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच राजनयिक संबंध बहाल करने में मदद की. अंतरराष्ट्रीय जानकारों के मुताबिक पाकिस्तान की जरूरत के समय ईरान हथियारों, रसद और रकम सहित कई तरह की मदद मुहैया कराई. आइए, जानते हैं कि फिर वक्त बीतने के साथ ही क्यों ईरान और पाकिस्तान दूर होकर एक-दूसरे के दुश्मन बन गए?
1979 की इस्लामिक क्रांति के बाद ईरान और पाकिस्तान के रिश्तों में कड़वाहट
साल 1979 की इस्लामिक क्रांति ने ईरान और पाकिस्तान की मजबूत होती दोस्ती के रिश्तों में कड़वाहट ला दी. इसके पहले दोनों देशों ने इस्लामिक होने के आधार पर अफगानिस्तान में सोवियत संघ रूस के सैन्य दखल की निंदा की. दोनों ने अफगानी गुटों का समर्थन किया. वहीं, बाद में ईरान ने गैर पश्तून कम्यूनिटी का समर्थन किया, जबकि पाकिस्तान ने मुजाहिदीन और खासकर पश्तूनों का सपोर्ट किया.
अफगानिस्तान और तालिबान मसले पर भी ईरान और पाकिस्तान में मतभेद
इसके बाद साल 1989 में अफगानिस्तान से सोवियत संघ रूस के सैनिकों की वापसी हो गई. इसके बाद भी ईरान और पाकिस्तान के संबंधों में मधुरता नहीं आई. वहीं, काबुल पर कब्जे के बाद तालिबान ने मजार शरीफ में कई ईरानी राजनयिकों और शियाओं की हत्या कर दी. इस दोनों के रिश्ते के बीच कड़वाहट की बड़ी वजह बन गई. इससे तालिबान और ईरान के बीच संबंध टूट गए. साथ ही पाकिस्तान और ईरान के रिश्ते भी और ज्यादा खराब हो गए.
2021 के आसपास दोबारा सुधरने लगे थे पाकिस्तान-ईरान संबंध
2021 के बाद से पाकिस्तान-ईरान के संबंध फिर से सामान्य होने लगे थे। दोनों देशों ने कई समझौते किए, एक बिजली वितरण लाइन शुरू की, जिससे द्विपक्षीय व्यापार भी बढ़ा था।पिछले साल ही पाकिस्तान सेना के प्रमुख असीम मुनीर ने ईरान का दौरा किया था। हाल ही में दोनों देशों की नौसेनाओं ने होरमुज में युद्धाभ्यास भी किया था।17 जनवरी के हमले से ठीक पहले ईरान के विदेश मंत्री ने पाकिस्तान के कार्यवाहक प्रधानमंत्री से मुलाकात की थी।
पाकिस्तान और ईरान 904 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करते हैं। ईरान के पूर्वी सीमा में सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत है, जो पाकिस्तान के पश्चिमी बलूचिस्तान प्रांत से जुड़ा हुआ है। इसका बलूचिस्तान ऐसा इलाका है, जो दोनों देशों में फैला हुआ है।ये इलाका मादक पदार्थों और आतंकवाद का केंद्र है, इसलिए यहां आबादी कम है। यहां ज्यादातर आबादी बलूच और पश्तून लोगों की है। सांप्रदायिक मतभेदों और बलूच अलगाववादियों की वजह से ये इलाका अक्सर अशांत रहता है।