क्या फिर पलटी मारेंगे सुशासन बाबू, दिल्ली से पटना तक बढ़ी सियासी हलचल
New Delhi:सियासी गलियारों में नीतीश क्या सोचते हैं औऱ कब क्या कर देंगे ये किसी को पता नहीं रहता है.कभी बीजेपी के साथ तो कभी राजद के साथ उनकी सत्ता की कुर्सी डोलती रहती है. अब चर्चा तेज है कि नीतीश आरजेडी के साथ अपना गठबंधन तोड़, एकबार फिर भाजपा के साथ गले मिलाने वाले हैं. एक बात ये भी गौर फरमाने वाली रही है कि, पाला बदलने वाले नीतिश चाहे राजद में जाए या फिर बीजेपी में.उनकी मुख्यमत्री की कुर्सी बरकरार रहती है.
अगर नीतीश बाबू फिर पलटी मारते हैं, तो फिर असर राजद के साथ इंडिया गठबंधन पर भी होगा. क्योंकि, बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोलकर नीतीश ने ही देश भर में मशाल जलायी थी और सभी दलों को एकजुट कर देश की सत्ता से भाजपा को बेदखल करने में जुटे थे.उनके इस पलटी से इंडिया गठबंधन की मुश्किलें बढ़ने वाली हैं. लेकिन, सवाल यहां है कि लोकसभा चुनाव की तारीख के एलान होने में ज्यादा वक्त नहीं बचा हुआ है. ऐसे में उनकी पलटी से लाजमी है कि एक बड़ा फर्क बिहार की राजनीति में होगा . अगर बिहार की राजनीति को देखे तो पिछले तीन दशक में भाजपा,राजद और जेडीयू के ईर्द गिर्द ही सियासत घूमती रही. इसमे सबसे ज्यादा वक्त तक नीतीश कुमार ही बिहार की बागडोर को संभाले रखा .
दस सालों में पांचवीं बार पलटने जा रहे नीतीश बाबू
नीतीश कुमार बिहार की सियासत में धुरी बनाए हुए हैं और उन्हीं के इर्द-गिर्द 20 सालों से राजनीति केंद्रित है. दस सालों में पांचवी बार नीतीश पलटी मारने जा रहे हैं. नीतीश ने 1974 के छात्र आंदोलन के जरिये राजनीति में कदम रखा, 1985 में पहली बार विधायक बने. इसके बाद नीतीश कुमार ने पलटकर नहीं देखा और सियासत में आगे बढ़ते चले गए. लालू प्रसाद यादव 1990 में बिहार के मुख्यमंत्री बने, लेकिन 1994 में नीतीश ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया. नीतीश और लालू एक साथ जनता दल में थे, लेकिन राजनीतिक महत्वकांक्षा में दोनों के रिश्ते एक दूसरे से अलग हो गए.
17 साल तक रहे बीजेपी के साथ
साल 1994 में नीतीश ने जनता दल छोड़कर जार्ज फर्नांडीस के साथ मिलकर समता पार्टी का गठन किया. इसके बाद साल 1995 में वामदलों के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़े, लेकिन नतीजे पक्ष में नहीं आए. नीतीश ने लेफ्ट से गठबंधन तोड़ लिया और 1996 में बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए का हिस्सा बन गए. इसके बाद नीतीश कुमार बिहार में बीजेपी के साथ 2013 तक साथ मिलकर चुनाव लड़ते रहे और बिहार में सरकार बनाते रहे.बिहार में बीजेपी और नीतीश 17 साल तक साथ रहे. नीतीश कुमार का बीजेपी से पहली बार मोहभंग तब हुआ जब नरेंद्र मोदी को बीजेपी ने 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया. नीतीश ने नरेंद्र मोदी का विरोध करते हुए बीजेपी से नाता तोड़ लिया और 2014 का लोकसभा चुनाव अकेले लड़ा. 2014 के चुनाव में बेहतर नतीजे जेडीयू के पक्ष में नहीं आए, जिसके बाद आरजेडी और कांग्रेस के साथ हाथ मिला लिया.
2020 में फिर मारी पलटी
2015 विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की जेडीयू ने आरजेडी, कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और बिहार में बीजेपी का सफाया कर दिया. नीतीश कुमार ने आरजेडी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाया. नीतीश सीएम बने और तेजस्वी यादव ने डिप्टी सीएम की कुर्सी संभाली. बिहार में आरजेडी के साथ दो साल तक सरकार चलाने के बाद 2017 में नीतीश ने महागठबंधन से नाता तोड़ लिया. इसके बाद बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना ली. नीतीश सीएम बने और बीजेपी नेता सुशील मोदी डिप्टी सीएम बने.
नीतीश कुमार और बीजेपी ने 2017 से लेकर 2022 तक सरकार चलाया. इस दौरान 2020 का बिहार विधानसभा चुनाव भी नीतीश ने बीजेपी के साथ लड़ा, लेकिन चुनावी नतीजे में बीजेपी को फायदा और जेडीयू को नुकसान हुआ. जेडीयू तीसरे नंबर की पार्टी बन गई. जेडीयू 43 सीटें जीती तो बीजेपी के खाते में 74 सीटें आईं. इसके बावजूद बीजेपी ने मुख्यमंत्री की कुर्सी नीतीश कुमार को सौंपी और अपने दो डिप्टीसीएम बनाए.
नीतीश कुमार 2020 में सीएम जरूर बन गए लेकिन बीजेपी का दबाव बर्दाश्त नहीं कर पा रहे थे. बिहार में दो साल सरकार चलाने के बाद नीतीश कुमार ने 2022 में पलटी मारी और आरजेडी व कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बना ली. नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने और तेजस्वी यादव डिप्टी सीएम. डेढ़ साल के बाद नीतीश कुमार का मन फिर से बदल गया है और अब फिर से बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाने की कवायद में है.
सूत्रों की माने तो नीतीश कुमार 28 जनवरी को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर फिर से बीजेपी के समर्थन से सरकार बनाएंगे और सीएम पद की शपथ लेंगे.