Rahul-Priyanka not want to contest elections from Amethi-RaeBareli: अमेठी-रायबरेली इन 2 सीटों से क्यों चुनाव नहीं लड़ना चाहते राहुल-प्रियंका !

किस बात का है डर

Rahul-Priyanka not want to contest elections from Amethi-RaeBareli: अमेठी-रायबरेली इन 2 सीटों से क्यों चुनाव नहीं लड़ना चाहते राहुल-प्रियंका !

Rahul-Priyanka not want to contest elections from Amethi-RaeBareli:  आज अमेठी और रायबरेली को लेकर कांग्रेस की चुनाव समिति की बैठक होनी है. संशय यह है कि अमेठी से राहुल गांधी चुनाव मैदान में उतरेंगे या कांग्रेस अपनी पारंपरिक सीट से मुंह मोड़ लेगी. लोकसभा चुनाव के दो चरणों का मतदान हो चुका है.राहुल गांधी की वायनाड सीट पर मतदान हो चुका है. दूसरे चरण के तुरंत बाद इस बैठक के कई मायने निकाले जा रहे हैं.

Table of Contents

Rahul-Priyanka not want to contest elections from Amethi-RaeBareli: अमेठी-रायबरेली को लेकर संस्‍पेस बरकरार

अमेठी और रायबरेली के लिए नामांकन 26 अप्रैल से शुरू हो चुके हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि अमेठी से राहुल गांधी और रायबरेली से प्रियंका गांधी के चुनाव लड़ने पर अब फैसला लिया जाएगा. यही कारण है कि पार्टी ने अभी तक अमेठी और रायबरेली से उम्मीदवारों के नामों का ऐलान नहीं किया है.

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने पिछले लोकसभा चुनाव केरल की वायनाड और यूपी की अमेठी सीट से लड़ा था, लेकिन उन्हें स्मृति ईरानी ने चुनाव हरा दिया था. राहुल गांधी ने सिर्फ वायनाड से सीट दर्ज की थी. इस बार भी कांग्रेस ने वायनाड से राहुल गांधी को चुनावी मैदान में उतारा है, लेकिन अभी तक अमेठी को लेकर संस्पेस बरकार है.

Rahul-Priyanka not want to contest elections from Amethi-RaeBareli: कांग्रेस का गढ़

दरअसल, अमेठी सीट 2019 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी की हार से पहले कांग्रेस का गढ़ मानी जाती थी. ऐसा इसलिए, क्योंकि इस सीट से राहुल गांधी 2004, 2009 और 2014 में लोकसभा चुनाव जीते थे.

सियासत में विरासत को संजो कर रखना एक बड़ी चुनौती होती है. अगर, गढ़ पर दूसरी पार्टी का कब्जा हो जाए तो उसे वापस पाना उससे भी बड़ी टेढ़ी खीर होती है. कुछ ऐसी ही जद्दोजहद कांग्रेस के लिए यूपी की अमेठी और रायबरेली सीट को लेकर है. ये दोनों सीटें नेहरू-गांधी परिवार की पारंपरिक सीटें रही हैं.  इन सीटों पर 20 मई को वोटिंग होगी.

ऐसे में बीजेपी भी कांग्रेस के गणित को समझते हुए अमेठी से स्मृति ईरानी को तो उतार रखा है, लेकिन रायबरेली से अभी कैंडिडेट घोषित नहीं किए हैं.

Rahul-Priyanka not want to contest elections from Amethi-RaeBareli: जब अमेठी सीट पर कांग्रेस को लगा पहला झटका

1967 में अस्तित्व में आई अमेठी सीट पर पहले सांसद विद्याधर वाजपेयी हुए. वो कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े थे. मगर, 1977 में इस सीट से संजय गांधी लड़े. हालांकि, उन्हें जनता पार्टी के रवींद्र प्रताप सिंह के सामने हार का सामना करना पड़ा था. ये वो दौर था जब इंदिरा गांधी और कांग्रेस के खिलाफ इमरजेंसी का आक्रोश था. इसके बाद 1998 में बीजेपी के सतीश शर्मा ने जीत दर्ज की.

अमेठी लोकसभा सीट से संजय गांधी (1980), राजीव गांधी (1981,1984, 1989, 1991), सोनिया गांधी (1998) और राहुल गांधी (2004, 2009, 2014) सांसद रहे. इसके बाद साल 2019 में राहुल को स्मृति ईरानी से हार का सामना करना पड़ा था. इससे पहले के चुनाव 2014 में ईरानी ने उन्हें कड़ी टक्कर दी थी.

Rahul-Priyanka not want to contest elections from Amethi-RaeBareli: रायबरेली सीट पर कांग्रेस को पहला झटका

साल 1952 में पहली बार रायबरेली सीट पर कांग्रेस के टिकट पर फिरोज गांधी चुनाव लड़े और जीते. उन्होंने दूसरे चुनाव में भी जीत दर्ज की. इसके बाद 1960 में आरपी सिंह, 1962 में बैजनाथ कुरील भी कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े और लोकसभा पहुंचे.

इसके बाद यहां से 1967 और 1971 में इंदिरा गांधी चुनी गईं. इस सीट पर कांग्रेस को पहला झटका 1977 में जनता पार्टी के राज नारायण ने दिया. हालांकि इसके बाद हुए चुनाव में 1980 में इंदिरा गांधी ने फिर से सीट पर कब्जा किया. उनके बाद 1980 में हुए चुनाव में अरुण नेहरू ने जीत दर्ज की. वो दूसरी बार 1984 में भी सांसद चुने गए.

अरुण के बाद इस सीट पर शीला कौल दो बार (1989 और 1991) सांसद चुनी गईं. हालांकि वो हैट्रिक नहीं लगा पाईं और 1996 में जनता पार्टी के अशोक सिंह ने इस सीट पर जीत दर्ज की. वो दूसरी बार 1998 में भी सांसद चुने गए. फिर 1999 में चुनाव हुए.

इस चुनाव में सतीश शर्मा ने कांग्रेस को उसकी खोई सीट दिलाई और 2006 तक सांसद रहे. इसके बाद साल 2009 में सोनिया गांधी ने इस सीट पर चुनाव लड़ा और लगातार तीन बार सांसद चुनी गईं. वो 2019 तक यहां से सांसद रहीं. अपने आखिरी चुनाव में उन्होंने बीजेपी प्रत्याशी दिनेश प्रताप सिंह को भारी मतों से हराया था.

Rahul-Priyanka not want to contest elections from Amethi-RaeBareli:रायबरेली और अमेठी से कौन लड़ेगा?

विपक्षी गठबंधन इंडिया तहत कांग्रेस को यूपी के 80 सीटों में प्रदेश में 17 सीटें दी गई है. इसमें रायबरेली और अमेठी सीट भी है, लेकिन दोनों ही सीटों पर कांग्रेस ने पत्ते नहीं खोले हैं. दूसरी तरफ राजनीतिक गलियारों में कयास लगाए जा रहे हैं कि रायबरेली से कांग्रेस प्रियंका गांधी को टिकट दे सकती है. अमेठी से राहुल गांधी को चुनावी मैदान में उतारा जा सकता है.

Rahul-Priyanka not want to contest elections from Amethi-RaeBareli: अमेठी  लोकसभा सीट का इतिहास

अमेठी उत्तर प्रदेश का 72वां जिला है जिसे बीएसपी सरकार द्वारा आधिकारिक तौर पर 1 जुलाई 2010 को अस्तित्व में लाया गया था मूल रूप से अमेठी की स्थापना 1 जुलाई 2010 को हुई लेकिन अमेठी रियासत का इतिहास एक हजार वर्ष से भी पुराना है. अमेठी को सुल्तानपुर जिले की तीन तहसील मुसाफिरखाना, अमेठी, गौरीगंज तथा रायबरेली जिले की दो तहसील सलोन और तिलोई को मिला कर एक जिले का रूप दिया गया है. गौरीगंज शहर अमेठी जिले का मुख्यालय है.

यह भारत के नेहरू-गांधी परिवार की राजनैतिक कर्मभूमि रहा है. पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु, उनके पोते संजय गांधी, राजीव गांधी और उनकी पत्नी सोनिया गांधी ने इस जिले का प्रतिनिधित्व किया है. 2014 आम चुनाव में राहुल गांधी यहां से सांसद चुने गए लेकिन 2019 लोकसभा चुनाव में उन्हें भारतीय जनता पार्टी की स्मृति ईरानी ने पराजित कर दिया.

2011 की जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक अमेठी की 72.16 फीसदी जनसंख्या साक्षर है. इनमें पुरुष 83.85 फीसदी और महिलाओं की साक्षरता दर 60.64 फीसदी है.

अमेठी रियासत का इतिहास एक हजार वर्ष से भी पुराना है. राजा सोढ़ देव ने तुर्कों के आक्रमण के दौरान 966 ई. में इस रियासत की स्थापना की थी. तुर्कों के बाद मुगल शासकों ने भी इस रियासत पर हमले किए लेकिन इसका मान-सम्मान बचा रहा.

रायबरेली सीट से पांच बार सांसद रहीं सोनिया गांधी

निर्वाचन क्षेत्र के रूप में रायबरेली कांग्रेस का गढ़ है. ये पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का निर्वाचन क्षेत्र रहा है और 1999 से लगातार पांचवीं बार सोनिया गांधी यहां से सांसद चुनी गईं. यहां से तीन बार कांग्रेस पार्टी को हार का सामना करना पड़ा है.

रायबरेली लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत पांच विधान सभा क्षेत्र आते हैं. 2011 जनगणना के मुताबिक लगभग 35 लाख जनसंख्या वाले इस जिले में प्रति वर्ग किलोमीटर 739 लोग रहते हैं. रायबरेली की 67.25 फीसदी जनसंख्या साक्षर है. इनमें पुरुष 77.63 फीसदी और महिलाओं की साक्षरता दर 56.29 फीसदी है.

राहुल और प्रियंका लेंगे फैसला!

पांचवें चरण में रायबरेली और अमेठी सीट पर वोटिंग होनी है, जिसके लिए नामांकन प्रक्रिया भी शुरू हो गई है. ऐसे में कांग्रेस रायबरेली और अमेठी सीट पर उम्मीदवारों के नाम का ऐलान करने से पहले दोनों क्षेत्रों के स्थानीय कार्यकर्ताओं को दिल्ली मंथन के लिए बुलाया है.

कांग्रेस ने रायबरेली और अमेठी पर एक सर्वे कराया है, जिसमें निकलकर आया है कि अगर गांधी परिवार से कोई चुनाव लड़ता है, तो जीत निश्चित है. हालांकि, कांग्रेस चुनाव समिति ने इस पर कोई फैसला लेने के बजाय गांधी परिवार के ऊपर डाल रखा है. ऐसे में अब राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को निर्णय लेना है कि वो चुनाव लड़ेंगी कि नहीं.

Rahul-Priyanka not want to contest elections from Amethi-RaeBareli: अमेठी और रायबरेली पर है कांग्रेस का कब्जा 

उत्तर प्रदेश की अमेठी और रायबरेली लोकसभा सीट पर लंबे समय तक गांधी परिवार का कब्जा रहा है. रायबरेली से सोनिया गांधी 2019 में चुनाव जीती थीं. वह लंबे समय तक यहां की सांसद रहीं लेकिन अब स्वास्थ्य का हवाला देते हुए उन्होंने चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया है.अब सोनिया गांधी राज्यसभा सांसद बन चुकी हैं.

Rahul-Priyanka not want to contest elections from Amethi-RaeBareli: राहुल 1 मई को कर सकते हैं नामांकन

राजनीति के गलियारों से आ रही खबरें अगर सही हैं तो राहुल गांधी पांचवीं बार अमेठी सीट से एक मई को नामांकन कर सकते हैं. कांग्रेस के लिहाज से देखें तो यह पहला मौका है, जब अमेठी के उम्मीदवार के नाम की घोषणा होने में इतनी देरी हो रही है. 1967 में बनी अमेठी लोकसभा सीट पर कांग्रेस से मैदान में उसका ही योद्धा सबसे पहले उतरता रहा है.

अमेठी में इस चुनाव से पहले कांग्रेस में कभी इतनी खामोशी नहीं रहती थी. स्मृति ईरानी यहां कांग्रेस पर लगातार हमलावर हैं, लेकिन कांग्रेसी खेमे में चुप्पी है. अमेठी में हुए 16 चुनाव में अब तक तीन बार को छोड़ दें तो 13 बार यहां कांग्रेस का ही कब्जा रहा है.

उसमें भी नौ बार गांधी-नेहरू परिवार और दो बार इनके सिपहसालार यहां से सांसद हुए, जबकि राहुल गांधी के अमेठी से चुनाव लड़ने की खबर सार्वजनिक होते ही केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के निशाने पर राहुल गांधी आ गये हैं.

चुनावी सभाओं में वह साफ-साफ कहती हैं कि पहले अमेठी में लापता सांसद के पोस्टर लगते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है. 26 तारीख को वॉयनाड में वोटिंग होने के बाद गांधी परिवार का काफिला अमेठी आएगा, जिस राहुल ने 15 साल तक अमेठी से तथाकथित रिश्ता जोड़ा था उसे तोड़कर वॉयनाड चले गए. 15 सालों तक अमेठी के लोगों ने एक लापता सांसद को ढोया. अब 26 अप्रैल के बाद अमेठी आएंगे और नया रिश्ता बनाएंगे.

Rahul-Priyanka not want to contest elections from Amethi-RaeBareli: स्‍मृति इंरानी की लोकप्रियता

दस साल पहले आम चुनाव 2014 में भाजपा प्रत्याशी के रूप में कांग्रेस नेता राहुल गांधी से मुकाबला करने अमेठी आई स्मृति ईरानी ने मात्र 23 दिनों में ही यहां के लोगों से कुछ ऐसा नाता जोड़ा कि उन्हें तीन लाख से अधिक मत प्राप्त हुए.

मोदी सरकार में स्मृति ईरानी को हार के बाद भी मंत्री बनाया गया. इसी के साथ स्मृति ने अमेठी में अपनी सक्रियता बढ़ा दी. स्मृति की सक्रियता का लाभ भाजपा को मिलने लगा और एक के बाद एक चुनाव परिणाम भाजपा के पक्ष में आने लगे. गांव-गांव, घर-घर स्मृति अपनी नई पहचान बनाने में पूरी तरह सफल रही.

अगर पीएम मोदी नहीं होते तो राम मंदिर नहीं बनता……..मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने बताया समर्थन के पीछे का कारण

आम चुनाव 2019 में स्मृति अमेठी में भाजपा का कमल खिलाने में कामयाब हुई. इसी के साथ कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की जीत का सिलसिला भी चौथी बार थम गया. इससे पहले राहुल गांधी ने 2004, 2009 व 2014 में अमेठी हैट्रिक लगा चुके थे. अमेठी के चुनावी रणभूमि में भले ही अभी तक केंद्रीय मंत्री व सांसद स्मृति ईरानी अकेली घोषित योद्धा हों पर उनकी सक्रियता चुनाव को लेकर काफी बढ़ गई है. पिछले चार दिन वह अमेठी में रहकर बूथवार चुनावी लड़ाई में बड़ी जीत के लिए रणनीति बनाने में जुटी रही.

Rahul-Priyanka not want to contest elections from Amethi-RaeBareli: अमेठी में टक्‍कर की लड़ाई

वर्ष 1967 में अस्तित्व में आई अमेठी संसदीय सीट में कुल पांच विधानसभाएं हैं. इनमें अमेठी, जगदीशपुर, गौरीगंज व तिलोई अमेठी जिले की हैं, जबकि सलोन विधानसभा रायबरेली जिले की है. बीते तीन चुनावों की बात करें तो अमेठी की जनता का मूड बदला-बदला नजर आया.

वर्ष 2009 में कांग्रेस के टिकट पर चुनावी समर में उतरे राहुल गांधी ने 57.24 फीसदी मतों के अंतर से जीत दर्ज की, लेकिन, 2014 के चुनाव में परिणाम कुछ अलग दिखा. इस बार भाजपा के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरीं स्मृति जूबिन ईरानी मजबूती से लड़ीं.

यह बात अलग है कि राहुल गांधी ने जीत दर्ज की, लेकिन मतों का प्रतिशत 25.07 फीसदी घटने के साथ ही जीत के अंतर में 32.83 फीसदी कमी आई. फिर वर्ष 2019 के चुनाव में स्मृति ने गांधी परिवार के गढ़ को ध्वस्त कर जीत दर्ज कर ली.

संसदीय सीट की पांच विधानसभाओं में से चार पर भाजपा ने जीत हासिल की थी. ऐसे में इस बार गैर कांग्रेसी सांसद के दोबारा जीतने, जीत का अंतर बढ़ाने, सभी पांचों विधानसभा सीटों से जीत हासिल करने की एक बड़ी चुनौती स्मृति ईरानी के सामने है.

www.facebook.com/tarunrath

 

Related Articles

Back to top button

Notice: ob_end_flush(): Failed to send buffer of zlib output compression (1) in /home/tarunrat/public_html/wp-includes/functions.php on line 5427

Notice: ob_end_flush(): Failed to send buffer of zlib output compression (1) in /home/tarunrat/public_html/wp-includes/functions.php on line 5427