Akshaya Tritiya (2024): अक्षय तृतीया(2024) को हुआ था मोक्षदायिनी मां गंगा का पृथ्वी पर अवतरण,जानिए पूरी कथा
Akshaya Tritiya (2024): अक्षय तृतीया(Akshaya Tritiya 2024) से जुड़ी कई धार्मिक मान्यताएं हैं. इस दिन अबूझ मुहूर्त होता है, इसलिए आप इस दिन किसी भी समय कोई भी शुभ कार्य कर सकते हैं. अक्षय तृतीया(Akshaya Tritiya 2024) को ब्रह्मा जी के पुत्र अक्षय कुमार की उत्पत्ति हुई थी. अक्षय तृतीया का अर्थ है वह तृतीया तिथि जिसका क्षय न हो. इस दिन प्राप्त किए गए पुण्य और फल का क्षय नहीं होता है, वह कभी नष्ट नहीं होता है.
अक्षय तृतीया (Akshaya Tritiya 2024) का महत्व मां गंगा से भी जुड़ा है. इस तिथि को ही मां गंगा स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरित हुई थीं. क्या है मां गंगा के अवतरण की कथा….. आपको बताते हैं
Akshaya Tritiya (2024): ऐसे हुआ मां गंगा का पृथ्वी पर अवतरण
पौराणिक कथा के अनुसार, कपिल मुनि के श्राप से महाराज सगर के 60 हजार पुत्र भस्म हो गए थे. उन लोगों ने कपिल मुनि पर यज्ञ का घोड़ा चोरी करने का आरोप लगाया था. अब समस्या यह थी कि महाराज सगर के उन सभी पुत्रों का उद्धार कैसे हो? तब महाराज दिलीप के पुत्र भगीरथ ने उनके उद्धार के लिए कठिन तपस्या करके ब्रह्म देव को प्रसन्न किया.
ब्रह्म देव ने भगीरथ से वरदान मांगने के लिए कहा, तो उन्होंने मां गंगा को पृथ्वी पर लाने की बात कही. तब ब्रह्मा जी ने उनसे कहा कि गंगा का वेग अधिक है, क्या पृथ्वी उसके वेग और भार को सहन कर सकती हैं? उनके वेग और भार को सहन करने की क्षमता सिर्फ भगवान शिव में है. तुम भगवान शिव को इसके लिए प्रसन्न करो.
ब्रह्म देव की आज्ञा पाकर भगीरथ ने अपने कठोर तप से भगवान शिव को प्रसन्न कर दिया और उनसे अपनी जटाओं में मां गंगा को अवतरित होने का वरदान मांगा. भगवान शिव मान गए. ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल से गंगा को शिव जी की जटाओं में छोड़ दिया. तब भगवान शिव ने गंगा को अपनी जटाओं में बांध लिया, लेकिन गंगा जटाओं से बाहर नहीं निकल पाईं.
तब भगीरथ ने फिर भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया और शिव जी को प्रसन्न करके गंगा को पृथ्वी पर अवतरित करने का वरदान प्राप्त किया. इसके बाद ही मां गंगा शंकर जी की जटाओं से होते हुए पृथ्वी पर अवतरित हुईं और महाराज सगर के 60 हजार पुत्रों को मोक्ष प्राप्त हुआ.http://महाभारत के भीष्म की मां थी गंगा
Akshaya Tritiya (2024): वैशाख शुक्ल सप्तमी तिथि को हुआ मां गंगा का जन्म
मां गंगा का जन्म वैशाख शुक्ल सप्तमी तिथि के दिन माना जाता है. पुराणों में देवी गंगा के जन्म कई कथाएं मिलती हैं. साथ ही इनमें गंगा के स्वर्ग से पृथ्वी पर आने का रहस्य भी बताया गया है.
वामन पुराण के अनुसार जब भगवान विष्णु ने वामन रूप में अपना एक पैर आकाश की ओर उठाया तो तब ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु के चरण धोकर जल को अपने कमंडल में भर लिया. इस जल के तेज से ब्रह्मा जी के कमंडल में गंगा का जन्म हुआ. ब्रह्मा जी ने गंगा को हिमालय को सौंप दिया इस तरह देवी पार्वती और गंगा दोनों बहन हुई. इसी में एक कथा यह भी है कि वामन के पैर के चोट से आकाश में छेद हो गया और तीन धारा फूट पड़ी. एक धारा पृथ्वी पर, एक स्वर्ग में और एक पाताल में चली गई और गंगा त्रिपथगा कहलाईं.
Akshaya Tritiya (2024): भगवान शिव को पति रूप में पाना चाहती थीं मां गंगा
शिव पुराण में ऐसी कथा मिलती है कि गंगा भी देवी पार्वती की तरह भगवान शिव को पति रूप में पाना चाहती थी. देवी पार्वती नहीं चाहती थी कि गंगा उनकी सौतन बने. फिर भी गंगा ने भगवान शिव की घोर तपस्या की. इनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने इन्हें अपने साथ रखने का वरदान दे दिया. इसी वरदान के कारण जब गंगा धरती पर अपने पूरे वेग के साथ उतरी तो जल प्रलय से धरती को बचाने के लिए भगवान शिव ने उन्हें अपनी जटाओं में लपेट लेते हैं, इस तरह गंगा को भगवान शिव का साथ मिल जाता है.
Akshaya Tritiya (2024): स्वर्ग का प्रेम धरती पर मिला
महाभारत की कथा के अनुसार देवी गंगा अपने पिता ब्रह्मा के साथ एक बार देवराज इंद्र की सभा में आईं. यहां पर पृथ्वी के महाप्रतापी राजा महाभिष भी मौजूद थे. महाभिष को देखकर गंगा मोहित हो गईं और महाभिष भी गंगा को देखकर सुध-बुध खो बैठे. इंद्र की सभा में नृत्य चल रहा था तभी हवा के झोंके से गंगा का आंचल कंधे से गिर गया.
सभा में मौजूद सभी देवी-देवताओं ने शिष्टाचार के तौर पर अपनी आंखें झुका ली लेकिन गंगा में खोए महाभिष उन्हें एकटक निहारते रह गए और गंगा भी उन्हें देखती रह गई. क्रोधित होकर ब्रह्मा जी ने शाप दिया कि आप दोनों लोक-लाज और मर्यादा को भूल गए हैं इसलिए आपको धरती पर जाना होगा और आप दोनों एक दूसरे को पसंद करते हैं इसलिए वहीं आपका मिलन होगा.
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Akshaya Tritiya (2024): महाभारत के भीष्म की मां थी गंगा
ब्रह्मा जी के शाप के निवारण हेतू मां गंगा नदी रूप में धरती पर आईं और दूसरी ओर महाभिष को हस्तिनापुर के राजा शांतनु के रूप में जन्म लेना पड़ा. एक बार शिकार खेलते हुए शांतनु जब गंगा तट पर पहुंचे तो गंगा मानवी रूप धारण कर शांतनु के पास आईं और दोनों में प्रेम हो गया.
शांतनु और गंगा की आठ संतानें हुई जिनमें सात को गंगा ने अपने हाथों से जल समाधि दे दी और आठवीं संतान के रूप में देवव्रत भीष्म का जन्म हुआ. लेकिन देवव्रत को गंगा जलसमाधि नहीं दे पाईं. कहते हैं कि गांगा के आठों संतान वसु थे जिन्हें शाप मुक्त करने के लिए गंगा उन्हें जल समाधि दे रही थी. लेकिन आठवीं संतान को शाप मुक्त कराने में गंगा असफल रही.
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