Vivekananda Rock Memorial: कैसे बना विवेकानंद रॉक मेमोरियल, जहाँ चल रही है पीएम मोदी की साधना

Vivekananda Rock Memorial: कैसे बना विवेकानंद रॉक मेमोरियल, जहाँ चल रही है पीएम मोदी की साधना

Vivekananda Rock Memorial: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कन्याकुमारी के विवेकानंद रॉक मेमोरियल में ‘ध्यान साधना’ कर रहे हैं. उन्होंने गुरुवार 30 मई शाम करीब 6 बजकर 45 मिनट पर ध्यान शुरू किया , जो 1 जून की शाम तक चलेगा. उल्लेखनीय है कि पीएम मोदी उसी शिला पर बैठकर ध्यान कर रहे हैं, जहां स्वामी विवेकानंद ने ध्यान किया था.

पौराणिक कथाओं के अनुसार देवी पार्वती ने यहां भगवान शिव की प्रतीक्षा करते हुए एक पैर पर खड़े होकर ध्यान लगाया था. यह भारत का सबसे दक्षिणी छोर है. यह वही स्थान है, जहां भारत की पूर्वी और पश्चिमी तट रेखाएं मिलती हैं. यह हिंद महासागर, बंगाल की खाड़ी और अरब सागर का मिलन बिंदु भी है.

पीएम मोदी जिस विवेकांनद रॉक मेमोरियल में ध्यान लगा रहे हैं, दरअसल ये वही जगह है जहां 132 साल पहले शिकागो जाने से पहले स्वामी विवेकानंद तैरकर पहुंचे थे. उन्होंने तीन दिन तक ध्यान लगाया और तप किया था. कन्याकुमारी में तप का स्वामी विवेकानंद के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा. माना जाता है कि यहां विवेकानंद को भारत माता के बारे में दिव्य ज्ञान प्राप्त हुआ और उन्होने विकसित भारत का सपना देखा था.

इसके बाद शिकागो में उनके दिए भाषण से उनके ज्ञान का डंका पूरी दुनिया में मचा. आइए जानते हैं कि कैसे ये शिला एक मेमोरियल में तब्‍दील हो गई.

Vivekananda Rock Memorial: कैसे बना विवेकानंद रॉक मेमोरियल

साल 1963 में जब स्वामी विवेकानंद की जन्म शताब्दी मनाई जा रही थी, तब कुछ स्थानीय लोगों ने शिला के पास एक स्मारक बनाने का मन बनाया. हालांकि उन्हें खास सफलता नहीं मिल पाई. इसके बाद उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन सरसंघचालक माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर से संपर्क किया. गोलवलकर ने आरएसएस के प्रचारक एकनाथ रानाडे को स्मारक निर्माण का जिम्मा सौंपा.

एकनाथ रानाडे अपनी किताब Story of Vivekananda Rock Memorial में लिखते हैं कि उस वक्त तमिलनाडु में कांग्रेस की सरकार थी और एम. भक्तवत्सलम मुख्यमंत्री हुआ करते थे. जब उनसे मेमोरियल के लिए मदद मांगी तो साफ मना कर दिया. यही रुख केंद्रीय संस्कृति मंत्री हुमायूं कबीर का था…’ रानाडे ने इसके बाद भी हार नहीं मानी. वह दिल्ली आ गए और लाल बहादुर शास्त्री से मिले.

लाल बहादुर शास्त्री ने रानाडे से कहा, ‘मैं बहुत धीरे चलने वाला व्यक्ति हूं, पर आपको रास्ता सुझा सकता हूं. अगर आप विवेकानंद शिला स्मारक के लिए जनमत तैयार कर लें तो इससे सरकार पर दबाव पड़ेगा. इसकी शुरुआत सांसदों से कर सकते हैं…’ उन दिनों संसद का सत्र चल रहा था. एकनाथ रानाडे फौरन अपने काम में जुट गए और अगले तीन दिन के अंदर 323 सांसदों से मिलकर उनसे सिग्नेचर करा लिया. जिसमें कांग्रेस से लेकर लेफ्ट जैसी पार्टियों के सांसद भी शामिल थे. इसके बाद रानाडे वापस शास्त्री के पास पहुंचे और उन्होंने हामी भर दी.

Vivekananda Rock Memorial: फंड कहां से आए

रानाडे अपनी किताब में लिखते हैं कि स्मारक के लिए मंजूरी तो मिल गई, लेकिन जो सबसे बड़ी समस्या थी वो पैसे की थी. उन्होंने चंदा जुटाने का मन बनाया. शुरुआत देश के मुख्यमंत्रियों से की. जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला से लेकर नागालैंड के सीएम होकिशे सेमा ने मदद किया. उन दिनों पश्चिम बंगाल में लेफ्ट की सरकार थी और ज्योति बसु मुख्यमंत्री हुआ करते थे.

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रानाडे को उम्मीद थी कि चूंकि स्वामी विवेकानंद बंगाल के ही रहने वाले थे, इसलिये बंगाल सरकार मदद से पीछे नहीं हटेगी. पर ज्योति बसु ने साफ कहा- ‘मेरा विवेकानंद जी से कोई संबंध नहीं है. लेफ्ट पार्टी का सदस्य होने के कारण मदद नहीं कर सकता..’ इसके बाद रानाडे ज्योति बसु की पत्नी कमला बसु से मिले और वह मदद को तैयार हो गईं. स्मारक के लिए 1100 रुपए जुटाकर दिया.

Vivekananda Rock Memorial:30 लाख लोगों ने दिया चंदा

विवेकानंद केंद्र के मुताबिक शिला के लिए करीब सभी राज्य सरकारों ने 1-1 लाख का दान दिया. पर सबसे महत्वपूर्ण बात है आम लोगों का चंदा. एकनाथ रानाडे गांव-गांव तक गए और लोगों से कहा कि वे एक रुपये से लेकर अधिकतम 5 रुपये का चंदा दे सकते हैं. कुल 30 लाख लोगों ने चंदा दिया. इस तरह स्मारक का निर्माण शुरू हो गया. 2 सितंबर 1970 को भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति वी.वी. गिरी ने इसका उद्घाटन किया.

Vivekananda Rock Memorial: ध्‍यान में पीएम लेंगे केवल तरल पदार्थ

कहते  हैं कि ध्‍यान करने से अपने वास्‍तविक चेतना का बोध होता है. जीव ईश्‍वर का अंश है, इस चीज की अनुभूति होती है. ध्‍यान और तप में अन्‍न का सेवन नहीं किया जाता है. यही वजह है कि पीएम मोदी 45 घंटों तक सिर्फ नारियल पानी, अंगूर का रस और अन्य तरल पदार्थ पर रहेंगे.

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