NDA government under the leadership of Modi: तीसरी बार मोदी के नेतृत्व में NDA सरकार, किंगमेकर बने नायडू और नीतीश,बीजेपी के साथ भी-बीजेपी से दूर भी
NDA government under the leadership of Modi: एक बार फिर नरेंद्र मोदी देश के अगले प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेंगे. NDA के सभी साथी दलों ने एक बार फिर नरेंद्र मोदी को अपना नेता चुन लिया है. बुधवार को पीएम आवास पर हुई बैठक में इसका प्रस्ताव पास किया गया. इसमें 20 नेताओं के हस्ताक्षर हैं. खास बात ये है कि टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू और जदयू प्रमुख नीतीश कुमार ने भी इस प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए हैं.
सुबह से ही कयासों का बाजार गर्म था कि नीतीश बाबू और चंद्रबाबू नायडू कहीं यू टर्न ना लें ले. सबसे पहले तो बिहार के सीएम नीतीश कुमार को लेकर कयासों का बाजार गर्म हो गया, क्योंकि वे पटना से दिल्ली आने के क्रम में तेजस्वी के साथ ही फ्लाइट से आए दोनों के मुलाकात की तस्वीरें और वीडियोज भी वायरल होने लगे. ऐसा लगने लगा कि कहीं नीतीश कुमार फिर पलटी ना मारें.
तो दूसरी कयासबाजी टीडीपी सुप्रीमो चंद्र बाबू नायडू को लेकर चल रही थी. उनके लिए कहा जा रहा था कि नायडू इंडिया गठबंधन के ही सहयोगी थे और उसके बाद एनडीए के साथ आए और मिलकर चुनाव लड़ा. टीडीपी ने इस चुनाव में कुल 16 सीटों पर जीत मिली है और नीतीश के साथ वह भी किंगमेकर के तौर पर देखे जा रहे थे. लेकिन इन सारे कयासों पर विराम लग गया और एनडीए ने आशंकाओं के बादल को दूर कर सहयोगियों ने फाइनल मुहर लगा दी और सर्वसम्मिति से नरेंद्र मोदी को संसदीय दल का नेता चुन लिया गया.
NDA government under the leadership of Modi: 7 जून को सरकार बनाने का दावा पेश करेंगे
राष्ट्रपति से मुलाकात के बाद ही पीएम मोदी तीसरी बार सरकार बनाने का दावा पेश करेंगे.राष्ट्रपति ने एनडीए के सांसदों को मिलने का समय दे दिया है.7 जून को राष्ट्रपति शाम 5 से 7 बजे तक सांसदों से मुलाकात करेंगी, इस दौरान एनडीए के सभी सहयोगी दलों के सांसद मौजूद रहेंगे.
NDA government under the leadership of Modi: नायडू रहे हैं एनडीए के पुराने साथी
तेलुगू देशम पार्टी (TDP) दक्षिण की राजनीति में एक बड़ा नाम है और यह भी एक क्षेत्रीय पार्टी है. पार्टी की स्थापना 29 मार्च 1982 को आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एनटी रामाराव (NTR) ने की थी और पार्टी का मकसद तेलुगु भाषियों के लिए काम करना था. TDP का असर आंध्र प्रदेश और तेलंगाना राज्यों में देखा जाता है. पार्टी आंध्र प्रदेश में कई बार सत्ता पर काबिज होने में कामयाब रही है.
एनटी रामाराव के दामाद और आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू एक सितंबर 1995 को टीडीपी के अध्यक्ष बने. साथ ही नायडू रामाराव की जगह आंध्र के मुख्यमंत्री बन गए. एनटीआर 4 बार सीएम रहे. चंद्रबाबू नायडू की अगुवाई में पार्टी 1998 में बीजेपी की अगुवाई वाली एनडीए में शामिल हो गई. बाद में चंद्रबाबू नायडू अपनी कई मांगों को लेकर एनडीए से अलग हो गए. 2024 के चुनाव से पहले चंद्रबाबू फिर से एनडीए के साथ आ गए हैं.
NDA government under the leadership of Modi: नायडू का सियासी सफर
एक बार फिर चंद्रबाबू नायडू मुख्यमंत्री के रूप में आंध्र प्रदेश का नेतृत्व करने के लिए तैयार हैं. वह 1995 से 2004 और 2014 से 2019 तक आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं. उन्होंने 2004 से 2014 तक आंध्र प्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के रूप में भी कार्य किया.
नायडू का राजनीतिक करियर 1970 के दशक में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से शुरू हुआ. 1978 में, वह आंध्र प्रदेश विधान सभा के लिए चुने गए और 1980 से 1982 तक उन्होंने राज्य मंत्रिमंडल में मंत्री के रूप में कार्य किया. बाद में वह टीडीपी में शामिल हो गए, जिसकी स्थापना उनके ससुर नंदमुरी तारक रामा राव (NT Rama Rao) ने की थी. नायडू शुरू में एनटीआर के मुखर आलोचक हुआ करते थे. 1984 में एनटीआर को मुख्यमंत्री पद से हटाने के कांग्रेस के प्रयास को विफल करने में मदद करने के बाद, नायडू उनके विश्वासपात्र बन गए और टीडीपी के महासचिव बनाए गए.
चंद्रबाबू नायडू ने 1989 से 1995 तक टीडीपी विधायक के रूप में कार्य किया और इस अवधि के दौरान वह एक हाई-प्रोफाइल विपक्षी नेता बन गए. 1995 में एनटी रामा राव के नेतृत्व के खिलाफ पार्टी के भीतर तख्तापलट के बाद वह आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बने.
नायडू ने 1996 और 1998 में संयुक्त मोर्चा का नेतृत्व किया और अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार को समर्थन दिया. यह उनके राजनीतिक करियर का एक महत्वपूर्ण पड़ाव था, जिसने उन्हें राष्ट्रीय राजनीति में मजबूती प्रदान की. उनका और बीजेपी का साथ 2018 तक रहा.
आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग कर बीजेपी से गठबंधन तोड़ लिया और विपक्षी खेमे का हिस्सा बने. 2019 में कांग्रेस के संग मिलकर लोकसभा और विधानसभा चुनाव लड़े. हालांकि, चंद्रबाबू नायडू चुनाव नहीं जीत सके. 2024 के लोकसभा और आंध्र प्रदेश के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले चंद्रबाबू नायडू का जेल जाना सियासी मुफीद साबित हुई. चुनाव से ठीक पहले नायडू ने बीजेपी के साथ गठबंधन किया और उन्हें लोकसभा और विधानसभा दोनों जगह फायदा हुआ.
NDA government under the leadership of Modi: मोदी- चंद्रबाबू नायडू के रिश्ते
जब गुजरात में साल 2002 में दंगे हुए थे तो चंद्रबाबू नायडू एनडीए के पहले ऐसे नेता थे, जिन्होंने बतौर मुख्यामंत्री नरेंद्र मोदी के इस्तीफ़े की मांग की थी.
अप्रैल 2002 में टीडीपी ने मोदी के ख़िलाफ़ हिंसा को रोकने और सांप्रदायिक दंगों के पीड़ितों को राहत देने में में बुरी तरह फेल होने को लेकर एक प्रस्ताव भी पारित किया था. हालांकि, ये प्रस्ताव गिर गया था.
2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान मोदी और नायडू के बीच कई बार तीखी बयानबाजी भी हुई थी. गठबंधन से अलग होने के कारण पीएम मोदी ने नायडू को ‘यूटर्न बाबू’ कहा था. हालांकि, 2019 के लोकसभा और आंध्र विधानसभा चुनाव में हार के बाद नायडू ने कई बार कथित रूप से एनडीए में शामिल होने की कोशिश की थी.
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माना जाता है कि नायडू ने जो कुछ भी बयानबाजी की थी, उसे लेकर मोदी टीडीपी को एनडीए में लाना नहीं चाहते थे. लेकिन एक्टर से राजनेता बने पवन कल्याण मोदी और नायडू को करीब लेकर आए. आखिरकार चुनाव से ऐन पहले मार्च में टीडीपी एनडीए में शामिल हो गई. और आज किंगमेकर की भूमिका में आ गई.
NDA government under the leadership of Modi: नीतीश का मोदी से नाता
मोदी और नीतीश के बीच रिश्ते काफी पहले से ही उतार-चढ़ाव भरे रहे थे. नीतीश को डर बना रहता था कि मोदी का साथ उनके वोटरों को नाराज न कर दे. इसलिए 2009 के लोकसभा चुनाव के दौरान नीतीश कुमार ने बिहार में मोदी को प्रचार करने के लिए आने नहीं दिया था. इसके बाद 2010 के विधानसभा चुनाव के के दौरान भी नीतीश ने मोदी को बिहार में प्रचार करने नहीं दिया था.
इसी तरह नीतीश कुमार ने जब साल 2013 में एनडीए छोड़ा तो उसकी वजह नरेंद्र मोदी ही थे.तब बीजेपी ने नरेंद्र मोदी को अपने चुनावी अभियान का प्रमुख ही बनाया था. लेकिन नीतीश को अंदाज़ा हो गया था कि बीजेपी पीएम पद का उम्मीदवार उन्हें ही बनाएगी. नीतीश कुमार को यह बिल्कुल पसंद नहीं था.
बीजेपी और जेडीयू 17 साल से साथ थे. गठबंधन से अलग होने का ऐलान करते हुए नीतीश ने कहा था कि हम अपने … मूल सिद्धांतों से समझौता नहीं कर सकते. उन्होंने ये भी कहा था कि उन्हें गठबंधन से अलग होने के लिए मजबूर किया गया.
2014 का लोकसभा चुनाव नीतीश ने अकेले लड़ा. इससे नीतीश की जेडीयू को खासा नुकसान पहुंचा. हार की जिम्मेदारी लेते हुए नीतीश ने मई 2014 में मुख्यमंत्री पद पद से इस्तीफा दे दिया. इसके बाद 2015 का विधानसभा चुनाव उन्होंने लालू यादव की आरजेडी के साथ मिलकर लड़ा था. नीतीश-लालू की जोड़ी चल पड़ी और बिहार मे जेडीयू-आरजेडी की सरकार बनी.
लेकिन दो साल बाद ही जुलाई 2017 में नीतीश पलटी मारते हुए दोबारा एनडीए में आ गए. एनडीए में आने के बाद 2019 का लोकसभा और 2020 का विधानसभा चुनाव उन्होंने बीजेपी के साथ मिलकर लड़ा. 2020 में बिहार में एनडीए की सरकार बनी, लेकिन फिर अगस्त 2022 में उन्होंने पलटी मारी और आरजेडी के साथ मिलकर सरकार बनाई. इसी साल जनवरी में नीतीश कुमार ने यूटर्न लेते हुए आरजेडी का साथ छोड़ा और फिर एनडीए में आ गए.
नीतीश कुमार का गठबंधन बदलना भारत की राजनीति में ऐसी प्रक्रिया बन गई है, जो हैरान नहीं करती लेकिन सस्पेंस बरकरार रहता है कि वो किसे कब किंग की भूमिका में ला दें. अब 12 सीटों के साथ नीतीश को अपने साथ बनाए रखना नरेंद्र मोदी के लिए चैलेंज होगा.