New government in Odisha: ओडिशा में 24 साल बाद नई सरकार, नवीन कैसे हार गए ओडिशा, क्या है राजनीतिक समीकरण
New government in Odisha: लोकसभा चुनाव 2024 अपने अपने चुनाव परिणामों की वजह से यदा याद रखा जाने वाला है. जहां एक तरफ मोदी सरकार 3.0 बनने की कवायद शुरू हो गई है तो दूसरी तरफ सारा विपक्ष एकजुट होकर एक सधे नंबर के साथ संसद में विपक्ष के रूप में बैठने को तैयाार है.
इस बार के चुनाव में कुछ राज्यों के परिणाम चौंकाने वाले रहे हैं. जिसमें एक राज्य ओडिशा है,जहां 24 साल से काबिज पटनायक सरकार का पठाक्षेप हो गया.
आज जब प्रधानमंत्री मोदी संसदीय दल के नेता चुने जाने के बाद बोलने के लिए आए, तो उन्होंने जय जगन्नाथ कह कर अपने भाषण की शुरूआत की,इस दौरान उन्होंने कहा कि महाप्रभु जगन्नाथ, मैंने अनुभव किया हमेशा कि ये गरीबों के देवता हैं. वहां जो क्रांति रूप परिणाम आया और मैं इसके साथ कह सकता हूं कि विकसित भारत का जो हमारा सपना है, आने वाले 25 साल, पहले मैंने 10 साल कहा था अब 25 साल कह रहा हूं, महाप्रभु जगन्नाथ की कृपा से ओडिशा देश की विकास इंजन में एक होगा. वहीं राष्ट्रपति द्रौपदी मूर्मू ने भी नरेंद्र मोदी को भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा भेटस्वरूप दी.
New government in Odisha: आखिर क्यों पटनायक पर भारी पड़ गई भाजपा
ओडिशा में बीजेपी ने शानदार प्रदर्शन किया. राज्य में बीजेपी की सरकार तो आई ही लोकसभा चुनाव में भी ये सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. भारतीय जनता पार्टी ( बीजेपी ) ने ओडिशा में नवीन पटनायक के किले में सेंध लगा दी है. 78 सीटों के साथ भगवा पार्टी के पास अब 147 सीटों वाली विधानसभा में पूर्ण बहुमत है और वह तटीय राज्य में अपनी पहली सरकार बनाने के लिए तैयार है, जहां पटनायक की बीजू जनता दल ( बीजेडी ) 2000 से शासन कर रही थी और 4 जून तक अजेय लग रही थी.
77 सालों के इतिहास में तीन पटनायक कुल 45 साल ओडिशा की सत्ता पर काबिज रहे. इसमें जानकी बल्लभ पटनायक, बीजू पटनायक और बाद में उनके बेटे नवीन पटनायक शामिल हैं . साल 2000 से वह लगातार ओडिशा की सत्ता पर काबिज हैं. नवीन पटनायक के पिता बीजू पटनायक 1961 से 1963 और फिर 1990 से 1995 तक ओडिशा के सीएम रहे. जेबी सरकार 14 साल तक रही. पहला टर्म 1980 से 1989 और दूसरा टर्म 1995 से 1999 तक रहा.
लगातार पांच बार विधानसभा चुनाव जीतने और चौबीस साल तक निष्कंटक राज करने वाले नवीन पटनायक अपने एक अन्य विधानसभा क्षेत्र से चुनाव हार गए. बीजेडी को 51 विधानसभा सीटों पर सफलता जरूर मिली मगर लोकसभा की एक भी सीट बीजेडी नहीं जीत सकी.
New government in Odisha: 24 साल तक अजेय रहे पटनायक
बीते 24 साल तक चुनावों में अजेय रहने वाले नवीन पटनायक को ओडिशा में भारी हार का सामना करना पड़ा है.नवीन पटनायक ने भारत के सबसे सफल मुख्यमंत्री के तौर पर इतिहास में एक जगह बनाई है. वो उस बीजेपी से हार गए, जिसने 90 दशक में ओडिशा की राजनीति में उनके प्रवेश का समर्थन किया था. ओडिशा में लोकसभा के साथ कराए गए विधानसभा चुनावों के नतीजों में बीजेपी को स्पष्ट बहुमत मिला है.
उसे विधानसभा की 147 सीटों में 78 और लोकसभा की 21 सीटों में 20 पर जीत मिली हुई है. अब पार्टी पहली बार इस प्रदेश में अपनी सरकार बनाएगी. बीजेपी ने उन नवीन पटनायक को सत्ता से बेदखल किया है, जिन्होंने राज्य में 24 साल तक निर्बाध शासन किया और लगातार पाँच बार विधानसभा के चुनाव जीते. नवीन पटनायक की पार्टी बीजू जनता दल ने विधानसभा चुनावों में 51 सीटों पर जीत दर्ज की और लोकसभा में शून्य पर रही.
नवीन बाबू ख़ुद उन दो सीटों में से एक पर हार गए, जहाँ उन्होंने चुनाव लड़ा था. साल 2019 में बीजेडी ने 117 विधानसभा सीटें और 12 लोकसभा सीटें जीती थीं.
साल 2008 में बीजेपी, बीजेडी से अलग हो गई थी और उसके बाद कई सालों तक उसे कोई ख़ास क़ामयाबी नहीं मिली. लेकिन 2019 में उसने ओडिशा में लोकसभा की 8 सीटें जीतीं. जबकि एक साथ कराए गए विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 23 सीटें मिलीं और कांग्रेस को तीसरे नंबर पर धकेलते हुए प्रमुख विपक्षी पार्टी के रूप में उभरी.
इस बात को ध्यान में रखते हुए नवीन पटनायक ने अपने पांचवें कार्यकाल में सांस्कृतिक राजनीति का सहारा लेना शुरू किया.
इस बात का अहसास करते हुए कि छोटे कस्बों और शहरों में आकांक्षी और युवा मतदाताओं का एक वर्ग बीजेपी का समर्थन कर रहा है, नवीन ने कल्याणकारी स्कीमों से आगे देखना शुरू किया, जो कि उनकी राजनीतिक का केंद्र बन गया था. मतदाताओं के इस नए वर्ग को साथ लाने के लिए, बीजेडी सरकार ने ओडिशा को भारत का एक स्पोर्ट्स कैपिटल के रूप में पेश करने की कोशिश की. क्रिकेट से परे अन्य खेलों को बढ़ावा दिया जैसे कि हॉकी वॉलीबाल और बैडमिंटन.
राज्य सरकार पुरुष और महिला नेशनल हॉकी टीमों को प्रायोजित करती रही है. इसने राज्य में बड़े धूमधाम और दिखावे के साथ दो हॉकी वर्ल्ड कप सिरीज़ का भी आयोजन किया.
अयोध्या में राम मंदिर निर्णाण के बाद बीजेपी के प्रति बढ़ते झुकाव का मुक़ाबला करने के लिए बीजेडी सरकार ने पुरी के श्री जगन्नाथ मंदिर के आसपास एक हेरिटेज कॉरिडोर का निर्माण कराया. साथ ही पूरे ओडिशा में सभी प्रमुख मंदिरों का जीर्णोद्धार और सौंदैर्यीकरण कराया.
इस साल के शुरू में राज्य सरकार ने राज्य के साहित्य और साहित्यकारों को सम्मानित करने के लिए पहला विश्व ओड़िया भाषा सम्मेलन आयोजित किया.
सरकार ने बड़े पैमाने पर सरकारी स्कूलों के इनफ़्रास्ट्रक्चर, बस सेवाओं, टर्मिनल और अस्पतालों के आधुनिकरण का काम भी शुरू कराया.
हालांकि उनके एक रणनीतिक चूक हो गई. कोई भी राजनेता इन परियोजनाओं की निगरानी करते हुए खुद श्रेय लेता लेकिन नवीन ने सब कुछ अपने प्रमुख सहयोगी और नौकरशाह वीके पांडियन को सौंप दिया, जो प्रशासन का चेहरा बन गए और अंत में सीएम से भी अधिक ताक़तवर दिखाई दिए.
पटनायक का स्वास्थ्य
बीजेडी की हार के पीछे एक कारण यह भी हो सकता है कि बीजेपी ने पटनायक के स्वास्थ्य को लेकर उनके खिलाफ़ एक ज़हरीला अभियान सफलतापूर्वक चलाया. प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी चुनावी रैली में कहा कि अगर बीजेपी राज्य में सत्ता में आती है, तो पार्टी पटनायक के स्वास्थ्य में ‘अचानक गिरावट’ के पीछे के कारणों का पता लगाने के लिए एक विशेष समिति का गठन करेगी.
पीएम मोदी ने बीजद सुप्रीमो की ‘बिगड़ती सेहत’ के पीछे एक साजिश का भी संकेत दिया. बीजद नेता वीके पांडियन पर परोक्ष हमला करते हुए पीएम मोदी ने सवाल किया कि क्या पटनायक की ओर से ओडिशा सरकार चला रही एक ‘लॉबी’ उनकी स्वास्थ्य स्थिति के लिए जिम्मेदार है.
पांडियन की दखलअंदाजी भी रही वजह
इससे पहले, एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें वीके पांडियन एक रैली के दौरान पटनायक का कांपता हुआ हाथ पकड़ते हुए और इसे लोगों की नज़रों से छिपाने की कोशिश करते हुए दिखाई दे रहे थे. भाजपा ने पांडियन पर हमला करने में देर नहीं लगाई और कहा कि यह उनकी सत्ता हथियाने का प्रतीक है.
पांडियन पूर्व नौकरशाह और नवीन पटनायक के करीबी सहयोगी हैं. 2011 में, पांडियन को पटनायक का निजी सचिव नियुक्त किया गया, वह 2023 तक इस पद पर रहे. 2019 में, उन्हें सचिव 5T (परिवर्तनकारी पहल) नियुक्त किया गया. भाजपा ने आरोप लगाया कि नवीन पटनायक अपने तमिल में जन्मे निजी सचिव के कारण अक्षम हैं चूंकि सभी निर्णय पटनायक द्वारा लिए जाते थे, इसलिए हाल के वर्षों में वरिष्ठ पदों पर पदोन्नत किए गए कुछ नेताओं को पार्टी का प्रबंधन करने की अनुमति नहीं दी गई.
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पांडियन तमिलनाडु मूल के हैं और ओडिशा में उनकी बेहद महत्वपूर्ण भूमिका को एक बड़ा मुद्दा बना दिया गया. जिसका भाजपा ने खूब प्रचार किया. दरअसल, सत्ता में लगातार वर्चस्व बनाये रखने वाले पटनायक ने अपने आसपास किसी राजनीतिक विकल्प बनने की संभावना को कभी पनपने नहीं दिया.
पांडियन प्रकरण पटनायक के लिए बेहद नुकसानदायक साबित हुआ क्योंकि ओडिशा में एक धारणा बन गई कि राज्य की बागडोर एक गैर ओड़िया व्यक्ति को सौंपी जा रही है. प्रशासनिक सेवा से इस्तीफा देकर पांडियन जैसे बीजेडी में शामिल हुए और उन्होंने राजनीतिक अभियानों में भाग लिया, भाजपा ने इसे ओडि़या अस्मिता का अपमान बताकर इसे बड़ा मुद्दा बना दिया. बाद में पटनायक की सफाई भी काम नहीं आई.