Devshayani Ekadashi 2024: भगवान विष्णु क्यों चले जाते हैं चार मास के लिए योगनिद्रा में? क्या है पौराणिक कथा?
Devshayani Ekadashi 2024: हिंदू धर्म में एकादशी का बहुत महत्व है. साल भर में 24 एकादशी पड़ती है. हर एकादशी का बहुत महत्व बताया गया है. 22 जून को ज्येष्ठ पूर्णिमा के बाद आषाढ़ मास शुरू हो रहा है.आषाढ़ का महीना भगवान विष्णु को समर्पित होता है. इसमें शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी तिथि को देवशयनी एकादशी कहा जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन से ही भगवान विष्णु योग निद्रा के लिए क्षीर सागर में चले जाते हैं और फिर चार महीने बाद देवप्रबोधनी एकादशी के दिन उठते हैं.
देवशयनी एकादशी को आषाढ़ी एकादशी, पद्मा एकादशी और हरि शयनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. देवशयनी एकादशी का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है. साल 2024 में देवशयनी एकादशी 17 जुलाई, 2024 बुधवार के दिन पड़ेगी.
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार श्री हरि के शयन को योगनिद्रा भी कहा जाता है. आखिर क्यों भगवान विष्णु चार महीने के लिए शयन में जाते हैं, इसको लेकर कई पौराणिक कथाएं शास्त्रों में वर्णित है, तो आइए आपको बताते हैं कि देवशयनी एकादशी की कथा और इसके महत्व के बारे में….
Devshayani Ekadashi 2024: राजा बलि के वचनों में बंधे श्री हरि
कहा जाता है कि भगवान विष्णु ने राजा बलि को वचन दिया था कि वह पाताल लोक में उसके साथ रहेंगे. राजा बलि ने अपना सबकुछ दान करने के बाद भगवान विष्णु से कहा था कि उसकी इच्छा है कि जब भी वह आंखें खोले तो उसके समक्ष आप साक्षात् दर्शन दें. भगवान वे उसे वरदान दे दिया और उसके साथ ही पाताल लोक में रहने लगे. बाद में माता लक्ष्मी राजा बलि के बंधन से मुक्त कराकर विष्णु जी को वैकुंठ लाईं. लेकिन भगवान विष्णु ने बलि से कहा कि वे चार माह पाताल लोक में निवास करेंगे. तब से चातुर्मास में हर साल भगवान विष्णु पाताल लोक में योग निद्रा में होते हैं.
Devshayani Ekadashi 2024: राजा बलि ने वामन देव को कर दिया सबकुछ दान
पौराणिक ग्रंथों में एक कथा के अनुसार वामन अवतार में भगवान विष्णु असुरों के राजा बलि के पास पहुंचते हैं और 3 पग भूमि दान में मांगते हैं. शुक्राचार्य बलि को मना करते हैं. लेकिन बलि के समक्ष कोई भी व्यक्ति जो भी वस्तु मांगता था, उसे दान में मिल जाती थी. वह अपने दान पुण्य के लिए लोकप्रिय था. वामन देव ने दो पग में पूरी पृथ्वी और स्वर्ग को नाप दिया. तीसरा पग बलि ने अपने सिर पर रख लिया. इससे प्रसन्न होकर वामन देव वास्तविक स्वरूप में आए. भगवान विष्णु ने राजा बलि से वरदान मांगने को कहा.
उससे पूर्व उन्होंने बलि को पाताल लोक का राजा बना दिया और कहा कि कलयुग के अंत तक वहां निवास करोगे. तब बलि ने भगवान विष्णु से कहा कि वह चाहता है कि जब भी सोकर उठे तो साक्षत् आपके दर्शन हो. आप पाताल लोक की शत्रुओं से रक्षा करें. वचनबद्ध होने के कारण भगवान विष्णु ने उसे वरदान दे दिया और उसके साथ पाताल लोक चले गए.
काफी समय बीत जाने के बाद जब भगवान विष्णु वैकुंठ लोक नहीं पहुंचे तो माता लक्ष्मी सहित सभी देवी और देवता चिंतित हो गए. तब नारद जी ने माता लक्ष्मी को उपाय बताया. उसको मानकर माता लक्ष्मी श्रावण पूर्णिमा के दिन राजा बलि के घर पहुंची और मदद की गुहार लगाई. उन्होंने पहले राजा बलि को राखी बांधी, उसके बाद पूरा बात बताई. उन्होंने बलि को भाई बनाकर कहा कि तुम भगवान विष्णु को पाताल लोक से वैकुंठ भेज दो.
Devshayani Ekadashi 2024: ऐसे मुक्त हुए भगवान विष्णु
माता लक्ष्मी को वचन देने के कारण राजा बलि ने भगवान विष्णु को उनके वरदान से मुक्त कर दिया. तब भगवान विष्णु ने उसे आशीर्वाद दिया और कहा कि वे चातुर्मास में पाताल लोक में निवास करेंगे. राजा बलि ने कहा कि आप दोनों मेरे संबंधी हो गए हैं तो कुछ दिन और पाताल लोक में रहें और सेवा का मौका दें. रक्षाबंधन से लेकर धनतेरस तक भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी पाताल लोक में रहे. फिर वहां से वापस वैकुंठ लौट आए.
Devshayani Ekadashi 2024: शंखासुर दैत्य से युद्ध के बाद विष्णु जी ने किया आराम
हिंदू धर्म में मान्यता है कि भगवान विष्णु इस दौरान पाताल लोक में आराम करते हैं इसलिए सभी शुभ काम होना बंद हो जाते हैं. लेकिन जैसे ही ये समय खत्म होता है हर शुभ कार्य शुरू हो जाते हैं. इन चार महीने कोई व्रत नहीं किया जाता है न ही भ्रमण किया जाता है, बल्कि एक ही जगह रहकर कुछ अनुशासन का पालन करते हैं.
Ganga Dussehra 2024: गंगा दशहरा पर करें ये शुभ उपाय, सुख-समृद्धि से भर जाएगा घर
इस एकादशी पर एक कथा और कही जाती है कि शंखासुर दैत्य का संहार करने के बाद भगवान ने चार मास तक क्षीरसागर में शयन किया था और तभी से यह परंपरा बन गई है. कहा जाता है कि भगवान ने लंबे समय तक शंखासुर से युद्ध किया और फिर थकान मिटाने के लिए विश्राम करने चले गए थे.
Devshayani Ekadashi 2024: भगवान शिव संभालते हैं सृष्टि
भगवान विष्णु के शयनकाल में चले जाने के बाद चार माह की अवधि में सृष्टि संचालन का जिम्मा शिव परिवार पर रहता है. इस दौरान पवित्र श्रावण मास आता है जिसमें एक माह तक भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व होता है.