G7 Summit: क्या है G7 ? भारत नहीं है सदस्य फिर भी उसे क्यों बुलाया जाता है?
G7 Summit: इटली के अपुलिया में G7 शिखर सम्मेलन का आयोजन हो रहा है. समिट में पहुंचने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का इटली की प्रधानमंत्री मेलोनी ने वेलकम किया. आपको बताते चलें कि 13 से 15 जून के बीच इटली के पुलिया में G7 शिखर सम्मेलन हो रहा है.ये सम्मेलन ऐसे समय हो रहा है, जब दुनिया एक कठिन दौर से गुजर रही है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस सम्मेलन में हिस्सा लेने इटली पहुंचे हैं. बतौर प्रधानमंत्री अपना तीसरा कार्यकाल शुरू करने के बाद मोदी का ये पहला विदेश दौरा है.
इससे पहले जब साल 2023 में जापान के हिरोशिमा में G7 का सम्मेलन हुआ था तो भी नरेंद्र मोदी उसमें शामिल हुए थे. 2019 में भी भारत को G7 के लिए आमंत्रित किया गया था. 2020 में भी जो G7 समिट अमेरिका में होने वाला था, उसके लिए भी भारत को बुलाया गया था. हालांकि कोविड 19 के कारण इसे कैंसिल करना पड़ा था.
इस साल भी भारत के साथ कई ऐसे देशों को न्योता दिया गया है, जो G7 का हिस्सा नहीं हैं.
G7 Summit: भारत को बुलाने के मायने
G7 समिट में भारत की मौजूदगी हमेशा से एक विशेष मायने रखती है. 2.66 ट्रिलियन डॉलर की जीडीपी के साथ भारत की अर्थव्यवस्था G7 के तीन सदस्य देशों – फ्रांस, इटली और कनाडा से भी बड़ी है.अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) के अनुसार, भारत दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाओं में से एक है.
भारत की आर्थिक वृद्धि पश्चिमी देशों से अलग है, जहां अधिकतर देशों में विकास की संभावनाएं स्थिर हैं लेकिन भारत में ये संभावनाएं काफ़ी ज़्यादा हैं.
दुनिया की कई अर्थव्यवस्थाओं के बीच भारत बाजार क्षमता, कम लागत, व्यापार सुधार और अनुकूल औद्योगिक माहौल होने के कारण निवेशकों के लिए पसंदीदा जगह है.
भारत ने चीन को जनसंख्या के मामले में पीछे छोड़ दिया है.
देश में 68 प्रतिशत आबादी कामकाजी (15-64 वर्ष) है और 65 प्रतिशत आबादी 35 साल से कम की है. भारत में युवा, स्किल्ड और सेमी-स्किल्ड लोगों की अच्छी तादाद है.
दूसरा कारण ये है कि अमेरिका, जापान और यूरोपीय देश ऐसी नीतियां बना रहे हैं, जिनमें हिंद-प्रशांत क्षेत्र के साथ क़रीबी बढ़ाने की बात है.
पिछले कुछ सालों में ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी यानी यूरोप के G7 सदस्यों ने अपनी-अपनी इंडो-पैसिफिक रणनीतियां तैयार की हैं. इटली ने भी हाल ही में इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के साथ जुड़ने की इच्छा जताई है.
अमेरिका के वॉशिंगटन में स्थित थिंकटैंक हडसन इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट कहती है कि ऐसा लगता है कि भारत हालिया सालों में G7 का स्थायी मेहमान देश बन गया है.
G7 Summit: G7 क्या है?
G7 यानी ‘ग्रुप ऑफ़ सेवेन’ दुनिया की सात ‘अत्याधुनिक’ अर्थव्यवस्थाओं का एक गुट है, जिसका ग्लोबल ट्रेड और अंतरराष्ट्रीय फ़ाइनेंशियल सिस्टम पर दबदबा है.
ये सात देश हैं – कनाडा, फ़्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, ब्रिटेन और अमेरिका.
रूस को भी 1998 में इस गुट में शामिल किया गया था और तब इसका नाम G7 हो गया था पर साल 2014 में रूस के क्राइमिया पर कब्ज़े के बाद उसे इस गुट से निकाल दिया गया.
एक बड़ी इकॉनमी और दुनिया का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश होने के बावजूद चीन कभी भी इस गुट का हिस्सा नहीं रहा है.
चीन में प्रति व्यक्ति आय इन सात देशों की तुलना में बहुत कम है, इसलिए चीन को एक एडवांस इकॉनमी नहीं माना जाता.
लेकिन चीन और अन्य विकासशील देश जी 20 समूह में हैं.
यूरोपीय संघ भी G7 का हिस्सा नहीं है लेकिन उसके अधिकारी G7 के वार्षिक शिखर सम्मेलनों में शामिल होते हैं.
पूरे साल G7 देशों के मंत्री और अधिकारी बैठकें करते हैं, समझौते तैयार करते हैं और वैश्विक घटनाओं पर साझे वक्तव्य जारी करते हैं.
G7 Summit: G7 के एजेंडे में इस बार क्या है ?
इटली में होने वाले जी-7 शिखर सम्मेलन कई कारणों से महत्वपूर्ण है.
सबसे पहले इसका उद्देश्य दुनिया में बढ़ती मंहगाई और व्यापार से जुड़ी चिंताओं के बीच वैश्विक अर्थव्यवस्था को स्थिर करने के लिए आर्थिक नीतियों को कोऑर्डिनेट करना है.
दूसरा, इस शिखर सम्मेलन में कार्बन उत्सर्जन को कम करने और सस्टेनेबेल एनर्जी को बढ़ावा देने की रणनीति होगी और जलवायु परिवर्तन से निपटने पर ध्यान फोकस किया जाएगा.
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तीसरा मुद्दा होगा वैश्विक स्वास्थ्य व्यवस्था को बेहतर बनाना क्योंकि कोविड19 के बाद ये बात और साफ़ हुई की इस तरह के स्वास्थ्य आपातकाल के लिए सिस्टम को और बेहतर बनाना होगा.
इसके अलावा सम्मेलन में भू-राजनीतिक तनावों, चीन और रूस सहित ग़ज़ा और यूक्रेन युद्ध भी चर्चा की जाएगी.