Jagannath Rath Yatra 2024: जगन्‍नाथ रथ यात्रा निकालने के पीछे क्‍या है पौराणिक महत्‍व, यहां जाने

Jagannath Rath Yatra 2024: जगन्‍नाथ रथ यात्रा निकालने के पीछे क्‍या है पौराणिक महत्‍व, यहां जाने

Jagannath Rath Yatra 2024: भगवान जगन्‍नाथ की रथयात्रा आषाढ़ शुक्‍ल पक्ष की द्वितीया तिथि को पुरी में शुरू होती है. भगवान जगन्‍नाथ रथयात्रा के माध्‍यम से एक बार आम जनमानस के बीच में जाते हैं. भगवान जगन्‍नाथ की रथयात्रा का हिंदू धर्म में बड़ा महत्‍व है.

भगवान जगन्नाथ जी की रथयात्रा आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को जगन्नाथपुरी में आरंभ होती है और दशमी तिथि को समाप्त होती है. भगवान जगन्नाथ की इस रथ यात्रा में उनके साथ भाई बलराम और बहन सुभद्रा भी अपने अपने रथों पर विराजमान होकर नगर भ्रमण करते हैं.

Jagannath Rath Yatra 2024: जगन्‍नाथ रथ यात्रा के पीछे कई पौराणिक कथाएं

श्री जगन्नाथ जी की रथयात्रा में भगवान श्री कृष्ण के साथ राधा या रुक्मिणी नहीं होतीं बल्कि बलराम और सुभद्रा होते हैं. यह रथ यात्रा शुरू होने के पीछे कई कथाएं प्रचलित हैंं, उनमें  एक कथा का वर्णन कुछ इस प्रकार है.

एक बार द्वारिका में श्री कृष्ण रुक्मिणी आदि राज महिषियों के साथ शयन करते हुए निद्रा में अचानक राधे-राधे बोल पड़े. महारानियों को आश्चर्य हुआ. जागने पर श्रीकृष्ण ने अपना मनोभाव प्रकट नहीं होने दिया, लेकिन रुक्मिणी के मन में जिज्ञासा उत्‍पन्‍न हुई  और उन्‍होंने अन्य रानियों से वार्ता की.

राधा की श्रीकृष्ण के साथ रहस्यात्मक रास लीलाओं के बारे में माता रोहिणी भली प्रकार जानती थीं. उनसे जानकारी प्राप्त करने के लिए सभी महारानियों ने अनुनय-विनय की. पहले तो माता रोहिणी ने टालना चाहा लेकिन महारानियों के हठ करने पर कहा, ठीक है सुनो, सुभद्रा को पहले पहरे पर बिठा दो, कोई अंदर न आने पाए, भले ही बलराम या श्रीकृष्ण ही क्यों न हों.

माता रोहिणी के कथा शुरू करते ही श्री कृष्ण और बलराम अचानक अन्त:पुर की ओर आते दिखाई दिए. सुभद्रा ने उचित कारण बता कर द्वार पर ही रोक लिया. अन्त:पुर से श्रीकृष्ण और राधा की रासलीला की वार्ता श्रीकृष्ण और बलराम दोनो को ही सुनाई दी. उसको सुनने से श्रीकृष्ण और बलराम के अंग -अंग में अद्भुत प्रेम रस का उद्भव होने लगा.

साथ ही सुभद्रा भी भाव विह्वल होने लगीं. तीनों की ही ऐसी अवस्था हो गई कि पूरे ध्यान से देखने पर भी किसी के भी हाथ-पैर आदि स्पष्ट नहीं दिखते थे. सुदर्शन चक्र विगलित हो गया. उसने लंबा-सा आकार ग्रहण कर लिया. यह माता राधिका के महाभाव का गौरवपूर्ण दृश्य था. अचानक नारद के आगमन से वे तीनों पूर्ववत हो गए. नारद ने ही श्री भगवान से प्रार्थना की कि हे भगवान आप तीनों के जिस महाभाव में लीन मूर्तिस्थ रूप के मैंने दर्शन किए हैं, वह सामान्य जनों के दर्शन हेतु पृथ्वी पर सदैव सुशोभित रहे. महाप्रभु ने तथास्तु कह दिया.

एक और पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार देवी सुभद्रा को नगर भ्रमण की इच्छा हुई. तब भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ रथ पर बैठकर नगर भ्रमण के लिए गए. तब भगवान जगन्नाथ अपनी मौसी गुंडिचा देवी के घर भी गए. और सात दिनों तक मौसी के यहां विश्राम किया. तभी से ही यह यात्रा ही जगन्नाथ रथ यात्रा की शुरूआत हुई.

Jagannath Rath Yatra 2024: अलग-अलग रथ में सवार होते हैं तीनों

नंदीघोष में भगवन जगन्नाथ: 16 पहिये वाले इस रथ को बनाने में 742 लकड़ी के टुकड़े लगते हैं. रथ की ऊंचाई 45 फीट 6 इंच होती है.
तलध्वज में बलभद्र: 14 पहिये वाले इस रथ को बनाने में लकड़ी के 731 टुकड़े लगते हैं. रथ की ऊंचाई 45 फीट रहती है.
देवदलन में बहन सुभद्रा: इस रथ में 12 पहिये होते हैं. इसे बनाने में 711 लकड़ी के टुकड़े लगते हैं. रथ की ऊंचाई 44 फीट होती है.

Jagannath Rath Yatra 2024: कब शुरू होगी रथयात्रा

इस साल पुरी में निकलने वाली जगन्नाथ रथयात्रा दो दिन चलेगी. जगन्नाथ मंदिर का पंचांग बनाने वाले ज्योतिषी का कहना है कि इस साल आषाढ़ महीने के कृष्ण पक्ष में तिथियां घट गई. जिसके चलते रथयात्रा से पहले होने वाली पूजा परंपराएं 7 जुलाई की शाम तक चलेंगी.

7 जुलाई को दिनभर पूजा परंपराएं चलेंगी और शाम को 4 बजे के आसपास रथयात्रा शुरू होने की संभावना है. चूंकि सूर्यास्त के बाद रथ नहीं हांके जाते हैं, इसलिए रथ रास्ते में ही रोके दिए जाएंगे. 8 को सुबह जल्दी रथ चलना शुरू होंगे और इसी दिन गुंडिचा मंदिर पहुंच जाएंगे.

 53 साल बाद ऐसा मुहूर्त आया है कि जब एक ही दिन तीन उत्सव होंगे. भगवान का नवयौवन दर्शन, नेत्रोत्सव और रथयात्रा रविवार को ही निकलेगी. हर साल ये अलग-अलग दिन होते थे.

हर साल जेठ महीने की पूर्णिमा पर भगवान जगन्नाथ को स्नान करवाया जाता है. इसके बाद वो बीमार हो जाते हैं और आषाढ़ महीने के कृष्ण पक्ष के 15 दिनों तक दर्शन नहीं देते.16वें दिन भगवान का श्रृंगार किया जाता है और नवयौवन के दर्शन होते हैं.

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इस बार तिथियों की गड़बड़ी के चलते ये पखवाड़ा 15 की बजाय 13 दिन का ही रहा. इसी कारण भगवान के ठीक होने का दिन रथयात्रा वाली तिथि को पड़ रहा है. अब 7 जुलाई को भगवान जगन्नाथ के नवयौवन श्रृंगार के दर्शन होंगे. इसके साथ नैत्रोत्सव भी होगा.

रथयात्रा की तिथि बदली नहीं जा सकती, इसलिए श्रृंगार और नैत्रोत्सव के बाद रथयात्रा से जुड़ी पूजा शुरू होगी. इन विधियों के चलते देरी होने से सूर्यास्त के पहले ही भगवान को रथों पर स्थापित कर रथों को खींचा जाएगा.

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