Mahaprasad to Lord Jagannath: भगवान जगन्‍नाथ जी को चढ़ाए जाने वाले महाप्रसाद में होता क्‍या है? क्‍यों लगता है खिचड़ी का भाेग?

Mahaprasad to Lord Jagannath: भगवान जगन्‍नाथ जी को चढ़ाए जाने वाले महाप्रसाद में होता क्‍या है? क्‍यों लगता है खिचड़ी का भाेग?

Mahaprasad to Lord Jagannath: हर साल जेठ महीने की पूर्णिमा पर भगवान जगन्नाथ को स्नान करवाया जाता है। इसके बाद वो बीमार हो जाते हैं और आषाढ़ महीने के कृष्ण पक्ष के 15 दिनों तक दर्शन नहीं देते।16वें दिन भगवान का श्रृंगार किया जाता है और नवयौवन के दर्शन होते हैं।

बीते पंद्रह दिन से भोग नहीं स्वीकार रहे भगवान को रथयात्रा की समाप्ति के बाद जब फिर से श्रीमंदिर में स्थापित किया जाएगा। इसके बाद से ‘महाभोग और महाप्रसाद’ की परंपरा फिर से वर्ष भर के लिए शुरू होगी.

भगवान जगन्नाथ को 56 भोग लगाया जाता है, जिसमें कई सारे व्यंजन और खाद्य पदार्थ शामिल हैं। व्यंजन के आधार पर श्रीमंदिर में इसे तीन भागों में बांटा गया है। स्थानीय भाषा में इसे सकुंडी महाप्रसाद, शुखिला महाप्रसाद और निर्माल्य या कैबल्य के रूप में जाना जाता है। श्रीमंदिर की रसोई में बड़ी संख्या में रसोइये इसका निर्माण करते हैं।

Mahaprasad to Lord Jagannath: क्‍यों कहते हैं महाप्रसाद ?

श्री जगन्नाथ जी के प्रसाद को महाप्रसाद माना जाता है जबकि अन्य तीर्थों के प्रसाद को सामान्यतः प्रसाद ही कहा जाता है। श्री जगन्नाथ जी के प्रसाद को महाप्रसाद का स्वरूप महाप्रभु बल्लभाचार्य जी के द्वारा मिला। कहते हैं कि महाप्रभु बल्लभाचार्य की निष्ठा की परीक्षा लेने के लिए उनके एकादशी व्रत के दिन पुरी पहुँचने पर मन्दिर में ही किसी ने प्रसाद दे दिया। महाप्रभु ने प्रसाद हाथ में लेकर स्तवन करते हुए दिन के बाद रात्रि भी बिता दी। अगले दिन द्वादशी को स्तवन की समाप्ति पर उस प्रसाद को ग्रहण किया और उस प्रसाद को महाप्रसाद का गौरव प्राप्त हुआ। नारियल, लाई, गजामूंग और मालपुआ का प्रसाद विशेष रूप से इस दिन मिलता है।

Mahaprasad to Lord Jagannath: भगवान जगन्नाथजी को लगते हैं ये भोग

सकुंडी महाप्रसादः इस भोग को एक तरीके से पूरी तरह पका हुआ ताजा भोजन माना जा सकता है। इसमें भात, खेचड़ी भात, पखाला, मीठी दाल, सब्जियों की करी, अदरक-जीरा मिले चावल, सूखी सब्जियां, दलिया आदि शामिल रहते हैं।

शुखिला महाप्रसादः इस भोग में सूखी मिठाइयां शामिल होती हैं। जैसे खाजा, गुलगुला, चेन्नापोड़ा (छेने से बनने वाला केकनुमा व्यंजन) आदि शामिल हैं।

निर्माल्य या कैबल्य महाप्रसाद : इसमें श्रीमंदर में भगवान पर चढ़ने वाले चावल, प्रतिमाओं पर चढ़े फुल, आचमनि का जल, ये सभी निर्माल्य या कैबल्य कहलाते हैं। बता दें कि मंदिर में दर्शन करने पहुंचे श्रद्धालुओं को निर्माल्य दिया जाता है।

बता दें कि निर्माल्य में शामिल चावल को तपती धूप में सुखा कर रखा जाता है। लोगों में इसके प्रति बड़ी श्रद्धा है। वह पुरी की यात्रा में मिले निर्माल्य को घर लाकर तिजोरी, या पूजाघरों जैसे पवित्र स्थानों पर रखते हैं।

Mahaprasad to Lord Jagannath: खिचड़ी भोग

यहां के खिचड़ी भोग की बहुत महिमा है। मंदिर में प्रवेश से पहले दाईं तरफ आनंद बाजार और बाईं तरफ महाप्रभु श्री जगन्नाथ मंदिर की पवित्र विशाल रसोई है। इस रसोई में प्रसाद पकाने के लिए सात बर्तन एक दूसरे के ऊपर रखे जाते हैं। यह प्रसाद मिट्टी के बर्तनों में लकड़ी पर ही पकाया जाता है,

लेकिन, आश्चर्य की बात यह है कि इस दौरान सबसे ऊपर रखे बर्तन का पकवान सबसे पहले पकता है फिर नीचे की तरफ से एक के बाद एक प्रसाद पकता जाता है। मंदिर के इस प्रसाद को रोज़ाना करीब 25,000 से ज़्यादा श्रद्धालु ग्रहण करते हैं। ख़ास बात तो यह है कि यहां न तो प्रसाद बचता है और न ही कभी कम पड़ता है।

Mahaprasad to Lord Jagannath: क्यों लगता है खिचड़ी का भोग?

अगर आप जगन्नाथ मंदिर गए हैं तो आपने देखा होगा कि वहां सबसे पहले खिचड़ी का भोग लगाया जाता है। दरअसल इसके पीछे एक कथा बताई जाती है। बताया जाता है कि भगवान जगन्नाथ की एक परम उपासक भक्त थीं कर्मा बाई, जो भगवान को अपना पुत्र मानती थीं और उसी तरह उनसे स्नेह भी करती थीं।

कर्मा बाई काफी वृद्ध महिला थीं लेकिन हर रोज भगवान जगन्नाथ का भोग लगाना नहीं भूलती थीं। एक बार कर्मा बाई के मन में आया क्यों न एक बार अपने हाथों से भगवान जगन्नाथ को भोग लगाया जाए लेकिन उनके मन में शंका भी थी कि क्या वह उनको पसंद आएगा भी या नहीं।

Mahaprasad to Lord Jagannath: भगवान ने जान ली कर्मा के मन की इच्छा

भगवान जगन्नाथ कर्मा बाई की मन इच्छा को जान गए और वह एक दिन सुबह-सुबह उनके घर चले गए और बोला कि मुझे बहुत तेज भूख लगी है इसलिए कुछ जल्दी से बनाकर दे दीजिए। तब जाकर उन्होंने झटपट से खिचड़ी बना दी क्योंकि उसको बनाने में ज्यादा समय नहीं लगता।

कर्मा बाई ने भगवान को खिचड़ी परोस दी और खुद पंखा करने लगीं। भगवान बड़े चाव से खिचड़ी खाने लगे और कर्मा बाई से कहा कि मुझे यह बहुत पंसद आई है अब से वे रोज खिचड़ी खाने आएंगे।

भगवान जगन्नाथ की बात सुनकर कर्मा बाई बहुत प्रसन्न हुई। उस दिन के बाद से कर्मा बाई हर रोज जल्दी खिचड़ी बना देतीं और भगवान भी खिचड़ी खाने आ जाते और कपाट खुलने से पहले मंदिर वापस चले जाते।

Mahaprasad to Lord Jagannath: महात्मा ने बताए भोग लगाने के नियम

एक दिन जब कर्मा बाई खिचड़ी बना रही थीं तब एक महात्मा ने देखा कि कर्मा बाई बिना स्नान और रसोई साफ किए बिना खिचड़ी बना रही हैं। तब महात्मा ने कर्मा बाई को समझाया कि ऐसा करना गलत है। अगर प्रभु के लिए भोग बना रही हैं तो स्नान करके और साफ-सफाई के साथ नियमों का पालन करते हुए भोजन तैयार करें।

महात्मा की बात कर्मा बाई को समझ में आ गई। अगर दिन भगवान जगन्नाथ कर्मा बाई के यहां पहुंचे और खिचड़ी का इंतजार करने लगे क्योंकि कर्मा बाई स्नान व साफ-सफाई पर ध्यान दे रही थीं और नियमों के तहत भोजन तैयार कर रही थीं।

ऐसे में भगवान ने जल्दी जल्दी खिचड़ी खाई और बिना मुंह धोकर चले गए क्योंकि कपाट खुलने का समय हो चुका था।

Mahaprasad to Lord Jagannath: महात्मा ने कर्मा बाई से मांगी माफी

मंदिर के पुजारी ने कपाट खोलते हुए देखा कि भगवान जगन्नाथ के मुंह पर खिचड़ी लगी हुई है। जब पुजारी ने भगवान से इसकी वजह जानीं तो भगवान ने सब कुछ बता दिया और कहा कि भगवान तो केवल भाव के भूखे हैं। अगर सच्चे मन से भक्त केवल पत्तों का भोग लगाया तो उसका स्वाद सोने-चांदी की थालियों में लगे भोग से ज्यादा होगा। जो स्वाद भक्त के भाव में होता है, वह 56 भोग से कहीं ज्यादा होता है।

जब यह बात महात्मा को पता चली तो उसको बहुत अफसोस हुआ और उसने कर्मा बाई से माफी भी मांगी और कहा कि जैसा तुम भोग लगाना चाहती हो, वैसे ही लगाओ। महात्मा ने कहा कि भगवान को तो केवल आस्था व श्रद्धा चाहिए। इससे बढ़कर कोई और नियम नहीं है, ईश्वर को प्राप्त करने के लिए।

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Mahaprasad to Lord Jagannath: इस तरह शुरू हुआ खिचड़ी का भोग

कुछ दिन बाद कर्मा बाई ने शरीर को त्याग दिया। उस दिन पुजारी ने मंदिर के कपाट खोले तो देखा भगवान जगन्नाथ की आंखों से आंसू हैं। पुजारी ने पूछा भगवान आखिर हुआ क्या है, आप रो क्यों रहे हैं। तब भगवान जगन्नाथ ने पुजारी से कहा कि आज मेरी मां कर्मा बाई इस लोक को छोड़कर मेरे लोक में आ गई हैं। अब मुझे खिचड़ी कौन खिलाएगा। जिस प्रेम से खिचड़ी बनाती और मुझे खिलाती थीं, अब ऐसा कौन करेगा?

तब पुजारी ने कहा कि हे प्रभु, हम आपको आपकी मां की कमी को महसूस नहीं होने देंगे। आज के बाद से आपके लिए सबसे पहले खिचड़ी का ही भोग लगाया जाएगा। इसके बाद से भगवान जगन्नाथ के लिए हर रोज खिचड़ी बनाई जाती है और उनका भोग लगाया जाता है।

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