Special Status State: क्यों राज्य अपने लिए मांगते हैं स्पेशल स्टेट्स का दर्जा, क्या है मानक?
Special Status State: केंद्र में एनडीए की सरकार बनने के साथ ही बिहार और आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य के दर्जे की मांग जोर पकड़ने लगी. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जदयू और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू की पार्टी टीडीपी भी एनडीए सरकार का हिस्सा है, इसलिये इस मांग को बल मिल रहा है. दोनों राज्य लंबे समय से विशेष दर्जे की मांग करते आ रहे हैं.
जानिये क्या है विशेष राज्य का दर्जा या स्पेशल स्टेटस, कैसे मिलता है, इसके क्या मानक हैं और अभी कितने राज्यों को विशेष दर्जा मिला हुआ है…
Special Status State: ऐसे मिलता है विशेष राज्य का दर्जा
साल 1969 में पहली बार पांचवें वित्त आयोग ने गाडगिल फॉर्मूले के आधार पर तीन राज्यों जम्मू-कश्मीर, असम और नगालैंड को विशेष राज्य का दर्जा दिया था. इसका आधार इन तीनों राज्यों का सामाजिक, आर्थिक और भौगोलिक पिछड़ापन था. विशेष राज्य का दर्जा देने का उद्देश्य इन राज्यों का पिछड़ापन दूर करना था.
इसके अलावा राष्ट्रीय विकास परिषद की ओर से राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा देने को कुछ मापदंड भी बनाए गए थे. इनमें इस बात का ध्यान रखा जाता है कि किसी राज्य के संसाधन क्या हैं, वहां प्रति व्यक्ति आय कितनी है, राज्य की आमदनी का जरिया क्या है? जनजातीय आबादी, पहाड़ी या दुर्गम इलाका, जनसंख्या घनत्व, प्रतिकूल स्थान और अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास स्थित होने के कारण भी राज्यों को विशेष दर्जा दिया जा सकता है.
Special Status State: विशेष राज्य का दर्जा मिलने पर क्या होता है फायदा?
आर्टिकल 371 के जरिए राज्यों के लिए विशेष प्रावधान कर, उनकी विरासत और स्थानीय लोगों के अधिकारों को बचाया जाता है. विशेष राज्य का दर्जा मिलने पर किसी राज्य को खास छूट के साथ ही खास अनुदान भी मिलता है. देश में योजना आयोग के समय तो केंद्र सरकार के कुल योजनागत खर्च का लगभग 30 फीसदी हिस्सा इन्हीं राज्यों को मिल जाता था. इस धन को खर्च करने के लिए भी विशेष राज्यों को छूट थी. यदि केंद्र से दी गई धनराशि किसी एक वित्त वर्ष में पूरी तरह से खर्च नहीं हो पाती थी तो वह अगले वित्त वर्ष के लिए जारी कर दी जाती थी.
अमूमन किसी एक वित्त वर्ष में जारी राशि खर्च नहीं होने पर लैप्स हो जाती है. इसके अलावा विशेष राज्यों को कर्ज स्वैपिंग, स्कीम और कर्ज राहत योजना का लाभ भी मिलता था. इन सबका उद्देश्य ऐसे राज्यों में विकास को आगे बढ़ाना होता है.
Special Status State: टैक्स में छूट के साथ विकास के लिए मिलता है स्पेशल पैकेज
इनके अलावा विशेष राज्य का दर्जा मिलने पर वहां चलने वाली केंद्रीय योजनाओं में केंद्र सरकार की भागीदारी बढ़ जाती है. राज्य के उद्योगों को कर में राहत मिलती है, जिनमें एक्साइज और कस्टम ड्यूटी भी शामिल हैं. केंद्र सरकार की ओर से इन राज्यों के लिए विशेष पैकेज तैयार किए जाते हैं, जिससे वहां विकास को गति मिल सके. इसमें केंद्र सरकार विशेष राज्य को जो धनराशि देती है, उसमें 90 फीसदी अनुदान होता है. केवल 10 फीसदी राशि ही इन राज्यों को कर्ज के रूप में दी जाती है. इस 10 फीसदी राशि पर भी ब्याज नहीं लगता है.
Special Status State: देश के 11 राज्यों को कैसे मिला विशेष राज्य का दर्जा?
फिलहाल देश में 11 राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा मिला हुआ है. इनमें उत्तर-पूर्व के भी छह राज्य हैं. अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, नगालैंड, सिक्किम, त्रिपुरा, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड.
जम्मू-कश्मीर, असम और नगालैंड को 1969 में, हिमाचल प्रदेश को 1971 में, मणिपुर, मेघालय और त्रिपुरा को 1972 में, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश और मिज़ोरम को 1975 में तथा उत्तराखंड को 2001 में विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा मिला.
आर्टिकल 371 (ए) में नगालैंड के लिए यह खास प्रावधान किया गया है कि वहां की धार्मिक-सामाजिक परंपराओं, पारंपरिक कानून और नगा कानून के अनुसार दीवानी व फौजदारी से जुड़े फैसलों, जमीन व अन्य संसाधनों के हक और ट्रांसफर के संदर्भ में भारतीय संसद की कोई कार्यवाही लागू नहीं होती है.
हालांकि, राज्य की विधानसभा से पारित होने के बाद इस कार्यवाही को जरूर लागू किया जा सकता है. विशेष प्रावधान के अनुसार नगालैंड में जमीन और स्थानीय संसाधन सरकार के नहीं, बल्कि वहां के स्थानीय लोगों के हैं.
ऐसे ही अनुच्छेद 371 (जी) में मिजोरम को खास दर्जा मिला है. इसमें भी कहा गया है कि मिजो लोगों के कानूनी फैसलों और परंपराओं पर संसद की कोई कार्यवाही राज्य विधानसभा में इसका प्रस्ताव पारित होने के बाद ही लागू होगी. इसी तरह से असम के लिए अनुच्छेद 371 (बी) और अनुच्छेद 371 (सी) मणिपुर के लिए विशेष प्रावधान करता है.
संविधान के अनुच्छेद 371 (एफ) और 371 (एच) सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देते हैं. कर्नाटक, गोवा और आंध्र प्रदेश के लिए भी इसी के जरिए विभिन्न विशेष प्रावधान किए जाते हैं. अनुच्छेद 371 के जरिए ही महाराष्ट्र के विदर्भ और मराठवाड़ा क्षेत्रों, गुजरात के सौराष्ट्र और कच्छ के लिए अलग विकास बोर्डों के गठन की शक्ति राष्ट्रपति को मिलती है.
Special Status State: आंध्र प्रदेश क्यों चाहता है विशेष दर्जा?
साल 2014 में तत्कालीन आंध्र प्रदेश राज्य को आंध्र प्रदेश और तेलंगाना नाम से दो राज्यों में बांटा गया था.
इस विभाजन ने आंध्र प्रदेश की अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया. इसके लिए उन्हें विशेष सहायता निधि दी गई थी.
आंध्र प्रदेश के वित्तीय केंद्र राजधानी हैदराबाद को तेलंगाना के हिस्से में देने के बदले में पांच वर्षों के लिए विशेष राज्य का दर्जा देने का वादा किया गया था, लेकिन इसे पूरा नहीं किया गया.
इसके विरोध में चंद्रबाबू नायडू ने 2018 में एनडीए छोड़ दिया था.
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Special Status State: बिहार क्यों चाहता है विशेष दर्जा?
साल 2000 में तत्कालीन बिहार राज्य को दो राज्यों बिहार और झारखंड में विभाजित किया गया था.
प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध झारखंड के अलग होने की वजह से बिहार की अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई.
नीतीश कुमार कई वर्षों से बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग करते रहे हैं.
बिहार देश के सबसे ग़रीब राज्यों में से एक है.
नीतीश कुमार ने मांग की है कि राज्य को विशेष दर्जा दिया जाना चाहिए क्योंकि इस राज्य की बड़ी आबादी को स्वास्थ्य, शिक्षा और बुनियादी ढांचे तक पहुंच नहीं है.
लेकिन राज्यों को इस तरह का विशेष दर्जा देने से केंद्र सरकार पर वित्तीय बोझ बढ़ जाता है. केंद्र को योजनाओं में अधिक वित्तीय हिस्सेदारी लेने का प्रावधान करना होगा.