Nazul Zameen Bill: क्या है नज़ूल ज़मीन और उससे जुड़ा बिल? जिस पर विपक्ष के साथ अपने और सहयोगी दल भी कर रहे विरोध

Nazul Zameen Bill: क्या है नज़ूल ज़मीन और उससे जुड़ा बिल? जिस पर विपक्ष के साथ अपने और सहयोगी दल भी कर रहे विरोध

Nazul Zameen Bill: नज़ूल जमीन पर उत्तर प्रदेश सरकार का बिल इस समय सुर्खियों में है.  यह ऐसा बिल है जिसके पास होने में खुद योगी सरकार के विधायक विरोध कर रहे हैं.

विधानसभा में सूबे के मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ ने इसे पास  करा दिया. पर मामला विधान परिषद में आकर अटक गया. विधान परिषद में पेश करने के बाद इसे प्रवर समिति को भेज दिया गया है. जो दो महीने में अपनी रिपोर्ट देगी.

सरकार के भीतर ही इस बिल को लेकर अंदरूनी कलह सदन के भीतर दिखाई दी. विधान परिषद में ख़ुद बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष भूपेन्द्र चौधरी ने समिति को भेजने का प्रस्ताव दिया जिसे सभापति ने मान लिया. विधानसभा में बीजेपी के विधायक हर्ष वाजपेयी और सिद्धार्थनाथ सिंह ने अपनी आपत्ति ज़ाहिर की थी. इसके अलावा सरकार की सहयोगी और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने भी विरोध किया था.

इस पर हम समझते हैं कि यह नजूल बिल है क्‍या, और क्‍यों विपक्ष के साथ बीजेपी के विधायक भी कर रहे हैं विरोध…..

Nazul Zameen Bill: क्या है नज़ूल जमीन?

नजूल जमीन का स्वामित्व सरकार के पास होता है, लेकिन इसे अक्सर राज्य की संपत्ति के रूप में सीधे प्रशासित नहीं किया जाता है. राज्य आमतौर पर ऐसी भूमि को किसी शख्स या संस्था को एक निश्चित समय के लिए पट्टे पर आवंटित करता है, जो आमतौर पर 15 से 99 साल के बीच होती है. अगर पट्टे का समय खत्म हो रहा है, तो कोई स्थानीय विकास प्राधिकरण के राजस्व विभाग को एक लिखित आवेदन पेश करके पट्टे को नवीनीकृत करने के लिए प्राधिकरण से संपर्क कर सकता है.

सरकार पट्टे को नवीनीकृत करने या इसे रद्द करके नजूल जमीन को वापस लेना के लिए आजाद है. भारत के लगभग सभी प्रमुख शहरों में, नजूल भूमि को विभिन्न उद्देश्यों के लिए विभिन्न संस्थाओं को आवंटित किया गया है.

Nazul Zameen Bill: नजूल भूमि का जन्म

नजूल भूमि का जन्म ब्रिटिश शासन के दौरान हुआ. जो राजा और राज्य अंग्रेजों का विरोध करते थे, अक्सर उनके खिलाफ विद्रोह करते थे. जिसके कारण उनके और ब्रिटिश सेना के बीच कई युद्ध हुए. युद्ध में इन राजाओं को हराने के बाद अंग्रेज अक्सर उनकी जमीन उनसे छीन लेते थे.

भारत को आजादी मिलने के बाद अंग्रेजों ने इन जमीनों को खाली कर दिया. लेकिन राजाओं और राजघरानों के पास इनका स्वामित्व साबित करने के लिए अक्सर उचित दस्तावेज नहीं होने के कारण इन जमीनों को नजूल भूमि के रूप में चिह्नित किया गया. जिसका स्वामित्व संबंधित राज्य सरकारों के पास था.

Nazul Zameen Bill: बिल लागू होने पर क्‍या होगा ?

इस एक्ट के प्रभावी होने के बाद से उत्तर प्रदेश में किसी भी नजूल जमीन को किसी निजी शख्स अथवा निजी संस्था के पक्ष में फ्री होल्ड नहीं किया जाएगा.

अब नजूल भूमि का अनुदान केवल सार्वजनिक संस्थाओं को ही दिया जाएगा. जिसमें किसी भी केंद्रीय या राज्य सरकार के विभाग या शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक सहायता के क्षेत्र में सेवा करने वाली सार्वजनिक सेवा संस्थाएं शामिल हैं.

नए विधेयक के मुताबिक खाली पड़ी नजूल भूमि जिसकी लीज का समय खत्म हो रहा है, उसे फ्री होल्ड न करके सार्वजनिक हित की परियोजनाओं जैसे अस्पताल, विद्यालय, सरकारी कार्यालय आदि के लिए उपयोग किया जाएगा.

ऐसे पट्टाधारक जिन्होंने 27, जुलाई 2020 तक फ्री होल्ड के लिए आवेदन कर दिया है और निर्धारित शुल्क जमा कर दिया है, उनके पास यह विकल्प होगा कि वह लीज अवधि समाप्त होने के बाद अगले 30 वर्ष की अवधि के नवीनीकरण करा सकें. बशर्ते, उनके द्वारा मूल लीज डीड का उल्लंघन न किया गया हो.

ऐसी किसी भी भूमि पर जहां कि आबादी निवासरत है, अथवा जिसका व्यापक जनहित में उपयोग किया जा रहा है, उसे नहीं हटाया जाएगा. वर्तमान में उपयोग लाई जा रही भूमि से किसी की बेदखली नहीं की जाएगी.

ऐसे सभी पट्टाधारक जिन्होंने लीज अवधि में लीज डीड का उल्लंघन नहीं किया है, उनका पट्टा नियमानुसार जारी रहेगा.

कोई भी भवन जो कि नजूल की भूमि पर बनाई गई है और व्यापक जनहित में यदि उसे हटाया जाना आवश्यक होगा तो सरकार द्वारा प्रभावित व्यक्ति, भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन अधिनियम 2013 के अनुसार यथोचित मुआवजा और पुनर्वास पाने का अधिकारी होगा.

यह अधिनियम सरकार को अधिकार देती है कि वह नजूल की भूमि पर काबिज गरीब तबके के हितों को संरक्षण देते हुए उनके पक्ष में कानून बना सके एवं उनका पुनर्वास कर सके.

Nazul Zameen Bill: क्‍यों हो रहा विरोध ?

जो विरोध कर रहे हैं उनका कहना है कि इस बिल के ज़रिए सरकार नज़ूल की ज़मीन को रेगुलेट करना चाहती है जो सरकार के अधीन है पर सीधे सरकार के प्रबंधन में नहीं है. बिल के ज़रिए सरकार इसके ट्रांसफ़र को रोकना चाहती है.

इलाहाबाद से विधायक हर्ष वाजपेयी का कहना है, ”सरकार एक या दो लोगों से ज़मीन ले ले तो फर्क नहीं पड़ेगा लेकिन जो लोग ब्रिटिश काल से इन ज़मीनों पर रह रहे हैं, उनका क्या होगा, कई लोग 100 साल से रह रहे हैं. एक तरफ़ प्रधानमंत्री आवास दे रहे हैं, दूसरी तरफ़ हम लोगों से ज़मीन ले रहे हैं ये न्यायसंगत नहीं है.”

वहीं दूसरे विधायक सिद्धार्थनाथ सिंह ने कहा कि सुझाव पर सरकार को तवज्जो देनी चाहिए और लीज़ को फिर से नवीनीकरण का मौक़ा देना चाहिए.

सरकार के बिल के मुताबिक़ नज़ूल की ज़मीन पर मालिकाना हक़ के लिए कोर्ट में लंबित सभी मामले ख़ारिज माने जाएंगे.

Nazul Zameen Bill: सहयोगी दल भी कर रहें विरोध

सरकार के सहयोगी निषाद पार्टी और अपना दल (एस) की अनुप्रिया पटेल ने भी बिल का विरोध किया है.

अनुप्रिया पटेल ने एक्स पर लिखा कि, ”नज़ूल भूमि संबधी विधेयक को विमर्श के लिए विधान परिषद की प्रवर समिति को आज भेज दिया गया है, व्यापक विमर्श के बिना लाए गए इस बिल के संबध में मेरा स्पष्ट मानना है कि ये विधेयक गैर-ज़रूरी आम जनमानस की भावनाओं के विपरीत भी है.”

पटेल ने मांग की कि ये विधेयक वापस लेना चाहिए और अधिकारियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करनी चाहिए.

वहीं निषाद पार्टी के नेता संजय निषाद जिनकी पार्टी के विधायक ने इस बिल का विरोध किया था.

उनका कहना है कि लोग नदी के किनारे रह रहे हैं वो कैसे काग़ज़ दिखाएंगे और जब लोगों के बसाने की जगह दूसरा काम होगा तो लोग हमारे विरोध में खड़े हो जाएंगे.

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इस सभी लोगों का समर्थन समाजवादी पार्टी ने और जनसत्ता दल (लोकतांत्रिक) के रघुराज प्रताप सिंह उर्फ़ राजा भैया ने भी किया है.

समाजवादी पार्टी इस बिल को वापस लेने की मांग कर रही है. समाजवादी पार्टी का कहना है कि ये बिल जन विरोधी है.

सरकार की तरफ़ से संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना ने इस बिल का बचाव किया है उनका कहना था कि ‘बहुत सारे केस अदालत में लंबित हैं जो फ्री होल्ड की मांग कर रहे हैं. सरकार का हितों का नुक़सान हो रहा है. क्योंकि सार्वजनिक कामों के लिए सरकार को भी ज़मीन की ज़रूरत है.’

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