केरल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा- सबरीमला मंदिर में अब तक 51 महिलाओं ने की पूजा

नई दिल्ली: केरल सरकार ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि पिछले साल सितंबर में सबरीमला मंदिर में रजस्वला आयु वर्ग (10-50 साल) की महिलाओं के प्रवेश पर लगी पाबंदी कोर्ट द्वारा हटाए जाने के बाद से 51 महिला श्रद्धालु ऑनलाइन प्रक्रिया के जरिए सबरीमला मंदिर में प्रवेश कर चुकी हैं. सबरीमला मंदिर में बीते दो जनवरी को प्रवेश करने वाली 42 वर्षीय बिंदु और 44 वर्षीय कनकदुर्गा की याचिका पर सुनवाई के दौरान केरल सरकार ने कोर्ट को यह जानकारी दी. दोनों महिलाओं ने अपने लिए सुरक्षा मांगी है. कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया कि वह बिंदु और कनकदुर्गा को चौबीसों घंटे सुरक्षा मुहैया कराए.

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एल नागेश्वर राव और दिनेश माहेश्वरी की पीठ ने कहा कि वह सिर्फ दो महिलाओं- बिंदू और कनकदुर्गा की सुरक्षा के पहलू पर विचार करेगी और अर्जी में की गई किसी अन्य गुजारिश पर सुनवाई नहीं करेगी. पीठ ने कहा, ‘‘हम केरल सरकार को यह निर्देश देते हुए अभी इस रिट याचिका को बंद करना उचित समझते हैं कि वह याचिकाकर्ता संख्या एक (बिंदु) और दो (कनकदुर्गा) को पूरी सुरक्षा मुहैया कराए और यह सुरक्षा चौबीस घंटे उपलब्ध होनी चाहिए.’’ सबरीमला मंदिर में रजस्वला आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद केरल में बड़े पैमाने पर हिंसक प्रदर्शन देखने को मिले हैं.

केरल सरकार के वकील विजय हंसारिया ने पीठ को बताया कि अब तक 51 महिला श्रद्धालु सबरीमला मंदिर में प्रवेश कर चुकी हैं और उन सभी को पर्याप्त सुरक्षा मुहैया कराई जा रही है. अदालत को केरल सरकार की ओर से दिए गए नोट में कहा गया, ‘‘इस बाबत यह सूचित किया जाता है कि 10-50 वर्ष के आयु वर्ग की 7,564 महिलाओं ने दर्शन के लिए पंजीकरण कराया था और डिजिटल तौर पर स्कैन किए हुए रिकॉर्ड के मुताबिक 51 महिलाएं पहले ही मंदिर जा चुकी हैं और बगैर किसी समस्या के दर्शन कर चुकी हैं.’’ महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति देने के कोर्ट के फैसले की समीक्षा संबंधी याचिका दायर करने वाले याचिकाकर्ताओं के वकील मैथ्यू जे नेदुम्पारा ने कहा कि मंदिर में किसी भी महिला श्रद्धालु ने प्रवेश नहीं किया है.

हालांकि, पीठ ने इन सब मामलों पर विचार करने से इनकार कर दिया और कहा कि यदि केरल सरकार अदालत के आदेश के बिना ही महिला श्रद्धालुओं को सुरक्षा मुहैया करा रही है तो अदालती आदेश के बाद भी पर्याप्त सुरक्षा मुहैया कराने में कोई नुकसान नहीं है. महिला याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने कहा कि अदालत को याचिकाओं को सबरीमला मंदिर संबंधी लंबित मामलों से सीधे जोड़ने का आदेश देना चाहिए. पीठ ने इस अनुरोध को खारिज कर दिया. उल्लेखनीय है कि कनकदुर्गा और बिंदु ने इस महीने की शुरुआत में पुलिस सुरक्षा के बीच मंदिर में प्रवेश किया था.

इन दोनों महिलाओं के मंदिर में प्रवेश करने से तीन महीने पहले सुप्रीम कोर्ट ने भगवान अयप्पा के मंदिर में 10 वर्ष से 50 वर्ष तक की महिलाओं के प्रवेश पर लगा प्रतिबंध हटाने का ऐतिहासिक फैसला सुनाया था. मंदिर में प्रवेश करने वाली एक महिला पर उसकी सास ने हमला किया था. इसके बाद महिलाओं ने याचिका दायर करके सुरक्षा की मांग की थी. याचिका में प्राधिकारियों को यह निर्देश दिए जाने का अनुरोध किया गया था कि सभी आयुवर्ग की महिलाओं को बिना किसी रुकावट के मंदिर में प्रवेश की अनुमति दी जाए और भविष्य में मंदिर में दर्शन की इच्छा रखने वाली महिलाओं को पुलिस सुरक्षा दिए जाने समेत उनका सुरक्षित प्रवेश सुनिश्चित किया जाए.

इसमें महिला के जीवन और स्वतंत्रता को खतरे का भी जिक्र किया गया है. याचिका में कहा गया है, ‘‘प्राधिकारियों को मंदिर में प्रवेश करने वाली दो महिलाओं को चौबीस घंटे पूर्ण सुरक्षा मुहैया कराने और उनके खिलाफ सोशल मीडिया पर या किसी अन्य माध्यम से शारीरिक या मौखिक हिंसा करने में शामिल प्रदर्शनकारियों के विरुद्ध कानून के अनुसार कार्रवाई करने का आदेश दिया जाए.’’ इसमें यह आदेश दिए जाने की मांग की गई है कि 10 वर्ष से 50 साल तक के आयुवर्ग की किसी भी महिला के प्रवेश के कारण मंदिर का शुद्धिकरण न किया जाए या मंदिर के कपाट बंद नहीं किए जाएं.

याचिका में यह घोषणा करने को कहा गया है कि 10 वर्ष से 50 वर्ष तक की आयु की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश से किसी भी प्रकार से रोकना सुप्रीम कोर्ट के 28 सितंबर, 2018 के आदेश के विपरीत है. इस बीच, केरल की एलडीएफ सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दिए गए हलफनामे पर राज्य में विवाद पैदा हो गया. बीजेपी, सबरीमला कर्म समिति और भगवान अयप्पा के मंदिर से जुडे़ पंडालम राज परिवार ने राज्य सरकार पर बरसते हुए कहा कि हलफनामे में महिला श्रद्धालुओं की बताई गई उम्र में विसंगतियां हैं. मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस और बीजेपी ने एलडीएफ सरकार को आड़े हाथ लेते हुए कहा कि उसने हलफनामे में झूठ बोला है.

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