Ayodhya: 22 जनवरी को भगवान राम की प्राण-प्रतिष्ठा की वो एतिहासिक तारीख है, जिसको देखने के लिए कितनों ने अपनी जान, जवानी और जिन्दगानी कुर्बान कर दी। आज हम आपको इतिहास के उन पन्नों के बीच ले जाएंगे, जहां से ये विवाद शुरू हुआ था।
अयोध्या विवाद देश के सबसे बड़े पुराने जमीन विवादों में शामिल था। इस लेकर 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया और 5 अगस्त, 2020 को यहां राम मंदिर की आधारशिला रखी गई थी।
सरकारी दस्तावेजों और शिलालेखों के अनुसार, अयोध्या में विवादित स्थल पर 1528 से 1530 के बीच मुगल बादशाह बाबर के आदेश पर उसके गवर्नर मीर बाकी ने एक मस्जिद बनवाई थी, जिसे आमतौर पर बाबरी मस्जिद कहते हैं।दिलचस्प बात ये है कि बाबरी मस्जिद पर झगड़े की शुरुआत राम मंदिर नहीं, बल्कि किसी अन्य मंदिर को लेकर हुई थी।दरअसल, 1855 में नवाबी शासन के दौरान कुछ मुसलमानों ने बाबरी मस्जिद से कुछ 100 मीटर दूर अयोध्या के प्रतिष्ठित हनुमानगढ़ी मंदिर पर कब्जे के लिए धावा बोल दिया था।हमला करने वाले मुसलमानों का दावा था कि एक मस्जिद तोड़कर ये मंदिर बनाया गया था, यानि ये अयोध्या विवाद के बिल्कुल विपरीत मामला था।
हनुमानगढ़ी मंदिर पर हिंदू वैरागियों और मुस्लिमों के बीच खूनी संघर्ष हुआ और वैरागियों ने हमलवारों को वहां से खदेड़ दिया। अपनी जान बचाने के लिए हमलावर बाबरी मस्जिद में जा छिपे, लेकिन वैरागियों ने मस्जिद में घुसकर उनका कत्ल कर दिया।
इस बीच 1857 में अवध में नवाब का राज खत्म हो गया और ये सीधे ब्रिटिश प्रशासन के अंतर्गत आ गया।माना जाता है कि इसी दौरान वैरागियों ने मस्जिद के बाहरी हिस्से में चबूतरा बना लिया और वहां भगवान राम की पूजा करने लगे।प्रशासन से जब इसकी शिकायत की गई तो उन्होंने शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए चबूतरे और बाबरी मस्जिद के बीच एक दीवार बना दी, लेकिन दोनों का मुख्य दरवाजा एक ही रहा।
अयोध्या विवाद में मुकदमेबाजी की शुरुआत 1885 में हुई।29 जनवरी, 1885 को निर्मोही अखाड़ा के महंत रघुबर दास ने सिविल कोर्ट में केस दायर करते हुए 17X21 फुट लम्बे-चौड़े चबूतरे को भगवान राम का जन्मस्थान बताया और वहां मंदिर बनाने की अनुमति मांगी।उन्होंने खुद को चबूतरे वाली जमीन का मालिक बताया।पहले सिविल कोर्ट, फिर जिला कोर्ट और फिर अवध के जुडिशियल कमिश्नर की कोर्ट, तीनों ने वहां मंदिर बनाने की अनुमति नहीं दी।
तीनों कोर्ट ने अपनी सुनवाई के दौरान राम चबूतरे को हिंदुओं की आस्था का प्रतीक माना, लेकिन जमीन के मालिकाना हक के सबूत न होने और शांति बनाए रखने के लिए मंदिर बनाने की इजाजत नहीं दी।
6 दिसंबर, 1992 को ढहाई गई बाबरी मस्जिद
इस दौरान VHP का राम मंदिर आंदोलन चलता रहा और भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने रथ यात्रा निकाली। इन आंदोलनों के दौरान कारसेवक अयोध्या पहुंचते रहे और 6 दिसंबर, 1992 को उन्होंने बाबरी मस्जिद ढहा दी। इसके बाद देशभर में दंगे हुए थे।
हाई कोर्ट ने विवादित जमीन को 3 बराबर हिस्सों में बांटा
विवाद पर 2 दशक से अधिक समय तक सुनवाई करने के बाद 2010 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया।अपने फैसले में हाई कोर्ट ने विवादित 2.77 एकड़ जमीन को निर्मोही अखाड़ा, सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड उत्तर प्रदेश और रामलला विराजमान के बीच 3 बराबर हिस्सों में बांट दिया।हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ इन तीनों और अन्य कुछ पक्षकारों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर कीं।
सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में सुनाया ऐतिहासिक फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता के जरिए भी मामले की समाधान की कोशिश की, लेकिन ये असफल रही।इसके बाद 2019 में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश (CJI) रंजन गोगोई की अगुवाई वाली 5 सदस्यीय बेंच ने 40 दिन की सुनवाई के बाद 16 अक्टूबर को अपना फैसला सुरक्षित रखा।अंत में 9 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए सदियों पुराने इस विवाद का पूरा निपटारा कर दिया।कोर्ट ने संपूर्ण विवादित परिसर का हक रामलला को दे दिया।
2020 में शुरू हुआ मंदिर का निर्माण
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद 2020 में राम मंदिर का निर्माण शुरू हुआ। एक रिपोर्ट के अनुसार, 67 एकड़ वाले परिसर में से 2 एकड़ जमीन पर मंदिर बनाया गया है।मंदिर बनने की लागत करीब 300-400 करोड़ के करीब होगी, लेकिन पूरे राम मंदिर क्षेत्र का निर्माण होने में 1,100 करोड़ रुपये तक का खर्च आएगा।22 जनवरी को होने वाले समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्राण प्रतिष्ठा करेंगे।
अयोध्या भूमि का पूरा विवाद – साल 1528 में मुगल बादशाह बाबर ने बाबरी मस्जिद का निर्माण किया था, हिन्दुओं का दावा है कि ये मस्जिद भगवान राम की जन्मभूमि पर बनाई थी, यहां पहले राम मंदिर था, जिसे तोड़कर मस्जिद बनाई गई. -साल 1853 में पहली बार इस जगह को लेकर सांप्रदायिक हिंसा हुई – साल 1859 में ब्रिटिश हुकूमत ने विवादित जगह के आसपास बाड़ लगवा दी. मुस्लिम को ढांचे के अंदर और हिन्दुओं को बाड़ के बाहर चबूतरे पर पूजा करने की इजाज़त दी. – साल 1885 में महंत रघुबीर दास ने फैजाबाद जिला अदालत में राम चबूतरे पर मंदिर बनाने की याचिका दायर की, जिसे कोर्ट ने ख़ारिज कर दिया. – साल 1949 में भगवान नाम की मूर्ति मस्जिद के अंदर मिली, हिन्दू पक्ष ने भगवान राम के प्रकट होने का दावा किया, जबकि मुस्लिम पक्ष ने कहा कि हिन्दुओं ने चुपचाप मूर्तियां अंदर रख दीं. दोनों पक्षों ने केस दायर किया. तत्कालीन सरकार ने इसे विवादित ढांचा मानकर ताला लगवा दिया. – साल 1950 में गोपाल सिंह विशारद ने जन्मभूमि स्थान पर रामलला की पूजा की अनुमति के लिए याचिका दाखिल की. – साल 1959 में निर्मोही अखाड़ा ने जन्मभूमि पर क़ब्ज़े की मांग करते हुए तीसरी अर्जी दाखिल कर दी. – साल 1961 में यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड ने मस्जिद की ज़मीन पर हक़ और मूर्तियां हटाने की मांग करते हुए अर्ज़ी दी – साल 1984 में विश्व हिन्दू परिषद ने देशभर में विवादित ज़मीन पर राम मंदिर बनाने के लिए आंदोलन शुरू किया. – साल 1986 में जिला जज ने मस्जिद के दरवाजे से ताला खोलने और दर्शन की इजाज़त दी. – साल 1989 में विश्व हिन्दू परिषद ने विवादित ज़मीन के पास ही राम मंदिर का शिलान्यास किया और पहला पत्थर रखा. – साल 1990 में लाल कृष्ण आडवाणी ने राम मंदिर निर्माण के लिए रथयात्रा निकाली – साल 1992 में वीएचपी समेत तमाम हिन्दू संगठनों के लाखों कार्यकर्ताओं ने विवादित ढांचे को गिरा दिया. जिसके बाद देशभर में सांप्रदायिक दंगे भड़क गए. – साल 2002 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के तीन जजों ने विवादित जमीन के मालिकाना हक के लिए सुनवाई शुरू की. -साल 2003 में एएसआई ने मस्जिद के नीचे राम मंदिर के सबूत होने की बात कही,, मुस्लिम पक्ष ने विरोध किया. – साल 2010 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने विवादित स्थल को सुन्नी वक्फ बोर्ड, रामलला विराजमान और निर्मोही अखाड़ा के बीच 3 बराबर-बराबर हिस्सों में बांटने का आदेश दिया. – साल 2011-2019 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में कई अर्ज़ियां दाखिल की गईं. – साल 2019 में करीब 70 साल के विवाद के बाद सुप्रीम कोर्ट के पाँच जजों की बेंच राम मंदिर के पक्ष में फ़ैसला सुनाया और मुस्लिमों को अलग से पांच एकड़ जमीन देने का आदेश दिया. -साल 2020 5 अगस्त 2020 को मंदिर के निर्माण के लिए भूमिपूजन किया गया -साल 2024- 22 जनवरी 2024 मंदिर का उद्घाटन होगा और रामलला की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी.