दक्षिण कोरिया का सुरक्षा कवच बना अमेरिका

America: अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन और दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति यून सुक येओल ने उत्तर कोरिया को चेतावनी दी है। उन्होंने कहा कि अगर उत्तर कोरिया परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करता है तो ये वहां की सत्ता के लिए ‘अंत’ साबित होगा।

ये बात इन दोनों देशों ने अमेरिकाओवल ऑफिस वार्ता के बाद संयुक्त संवाददाता सम्मेलन के दौरान कही है। अमेरिका की तरफ से इस दौरान ये भी कहा गया कि वो दक्षिण कोरिया का सुरक्षा कवच है, साथ ही इस सुरक्षा कवच को परमाणु-सशस्त्र उत्तर के आक्रामक मिसाइल परीक्षणों के सामने मजबूत किया जा रहा है।

इस मौके पर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा, “उत्तर कोरिया के खिलाफ किसी भी संघर्ष में परमाणु हथियारों के इस्तेमाल से जुड़ी प्लानिंग में साउथ कोरिया को शामिल किया जाएगा।” जो बाइडन ने इस दौरान ये भी कहा, “संयुक्त राज्य अमेरिका या उसके सहयोगियों के खिलाफ जो भी शासन परमाणु हमला करता है, उसका अंत होगा।”

वहीं यून ने कहा कि उनकी प्रथमिकता ताकत का इस्तेमाल कर शांति बनाए रखना है न कि दूसरे पक्ष की सद्भावना के आधार पर झूठी शांति को फैलाना। उन्होंने ये भी कहा कि अगर परमाणु हमले की स्थिति बनती है तो इसका तगड़ा जवाब देने के लिए वो तैयार हैं।

परमाणु मिसाइलों से लैस पनडुब्बियां तैनात करेगा US

दरअसल इसी हफ्ते राष्ट्रपति यून सूक योल अमेरिका दौरे पर हैं। उत्तर कोरिया की तरफ से लगातार परमाणु मिसाइल का परीक्षण किया जा रहा है। इसी बीच बुधवार को दोनों देशों के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए हैं। इसके मुताबिक, उत्तर कोरिया के परमाणु हमले की धमकी के जवाब में अमेरिका कोरिया के प्रायद्वीप में परमाणु मिसाइलों से लैस पनडुब्बियां तैनात करेगा। अमेरिका की तरफ से 40 साल बाद ये दूसरी बार इस क्षेत्र में पनडुब्बियों को तैनात किया जाएगा।

अमेरिका और उत्‍तर कोरिया के बीच दुश्‍मनी का है लंबा इतिहास

उत्तर कोरिया, अमेरिका को लेकर आखिर हर वक्‍त क्‍यों आग-बबूला रहता है और वह उससे किस बात का बदला लेना चाहता है? आज हम इस दुश्‍मनी के इतिहास पर ही निगाह डालेंगे।

नार्थ कोरिया में सुलगती बदले की आग

दरअसल इन दोनों के बीच तनातनी का इतिहास काफी पुराना है। 1910 में कोरिया भी जापान का हिस्‍सा था। 1939 से 1945 तक चले द्वितीय विश्वयुद्ध के समय जर्मनी और जापान घनिष्ठ मित्र थे। द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान की हार के बाद मुख्य विजेता शक्तियों अमेरिका और तत्कालीन सोवियत संघ ने कोरिया को जापान से छीनकर उसका भी विभाजन कर दिया। कोरिया प्रायद्वीप पर 38 अंश अक्षांश पर इसके विभाजन की रेखा खींच दी गई। इस अक्षांश के उत्तर का हिस्सा रूस और चीन की पसंद के अनुसार एक कम्युनिस्ट देश बना और उत्तर कोरिया कहलाया। यहां पर रूस और चीन के समर्थन वाली साम्यवादी सरकार बनी। दक्षिण का हिस्सा अमेरिका और उसके मित्र देशों की इच्छानुसार एक पूंजीवादी देश बना और दक्षिण कोरिया कहलाया।

नार्थ कोरिया का साउथ कोरिया पर हमला

25 जून 1950 को उत्तर कोरिया के प्रमुख किम सुंग ने दक्षिण कोरिया पर हमला बोल दिया। इस युद्ध में उत्तर कोरिया को अप्रत्‍याशित जीत मिली। लेकिन जीत का जश्‍न मनाने से पहले ही उसको अमेरिका ने तगड़ा झटका दिया और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक प्रस्‍ताव पारित करवा लिया, जिसके बाद अमेरिका के झंडे तले सहयोगी देशों की सेना दक्षिण कोरिया की मदद के लिए वहां पहुंच गई। इन सेनाओं ने युद्ध की तस्‍वीर ही बदलकर रख दी थी। नतीजा यह हुआ है कि उत्तर कोरिया को पीछे हटना पड़ा और वह जीती हुई बाजी हार गया।

उत्तर कोरिया की बर्बादी पर खत्‍म हुआ ‘कोरियाई युद्ध’

1953 में युद्ध की समाप्ति की घोषणा कर दी गई। तभी से उत्तर कोरिया को अमेरिका एक कांटे की तरह चुभ रहा है। इतने वर्षों से उसकी अमेरिका से बदला लेने की आग ठंडी नहीं पड़ी है। आलम यह है कि वहां उत्तर कोरिया में अमेरिका का नाम लेना भी अपराध माना जाता है। एक लेख में कोलंबिया यूनिवर्सिटी के कोरियन इतिहास के प्रोफेसर चार्ल्स के. आर्मस्ट्रांग ने लिखा कि इस युद्ध के अंत में मरनेवाले, घायल और गुम हुए कोरियाई लोगों की संख्या करीब तीस लाख थी, जो कि इनकी कुल आबादी का करीब 10 फीसदी थी।

उत्तर कोरिया के सबसे अधिक लोग मारे गए

इस युद्ध में सबसे अधिक लोग उत्तर कोरिया के मारे गए थे। उन्‍होंने लिखा है कि मानवीय तबाही और जानमाल की क्षति दोनों ही तरफ व्यापक तौर पर हुई, लेकिन नॉर्थ में अमेरिका की तरफ से की गई भारी बमबारी के चलते ज्यादा तबाही हुई। अमेरिकी मिलिट्री लीडर्स ने उस वक्त कोरियाई युद्ध को लिमिटेड वॉर कहा, क्योंकि उन्होंने इसे कोरियाई प्रायद्वीप के आगे नहीं फैलने दिया था।

 

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