BJP in UP: ऐसी कौन सी वजहें रहीं, जो राजनीति के केंद्र रहे यूपी में बिगड़ गया बीजेपी का खेल
BJP in UP: लोकसभा चुनाव 2024 में आए रूझानों को देखते हुए ये कहा जा सकता है कि BJP के लिए सबसे बड़ा नुकसान यूपी से हुआ है, तो ये गलत नहीं होगा. क्योंकि अगर बीजेपी 245 पर दिख रही है तो उसे 28 सीटों का नुकसान होता दिख रहा है. सपा-कांग्रेस के गठबंधन ने उन्हें कड़ा मुकाबला दिया और एक तरह से हार की कगार पर लाकर खड़ा कर दिया.
2019 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने 62 सीटों पर जीत हासिल की थी. वहीं बहुजन समाज पार्टी (BSP) दूसरे नंबर पर रही. बीएसपी ने 10 सीटों पर परचम लहराया और समाजवादी पार्टी ने पांच सीटों पर जीत हासिल की थी. वहीं कांग्रेस की बात करें तो सोनिया गांधी ही रायबरेली सीट से जीत हासिल करने में कामयाब हो पाई थीं, जबकि राहुल गांधी अपनी अमेठी सीट से चुनाव हार गए थे.
बीजेपी का राम मंदिर से लेकर हिंदुत्व का मुद्दा, सपा के पीडीए फॉर्मूले के सामने काम नहीं कर पाए. आइए जानते हैं कि कौन सी ऐसी वजहें रही, जिसकी वजह से याेगी के उत्तर प्रदेश में बीजेपी पिछड़ गई.
BJP in UP: संविधान और आरक्षण का मुद्दा पड़ा भारी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जैसे ही 400 पार का नारा दिया, भाजपा के कुछ नेता दावा करने लगे कि 400 पार इसलिए चाहिए क्योंकि संविधान बदलना है. इस बात को लपक लिया कांग्रेस के राहुल गांधी ने, कांग्रेस और सपा ने इसे आरक्षण से जोड़ दिया. दावा किया कि भाजपा इतनी ज्यादा सीटें इसलिए चाहती है ताकि वह संविधान बदल सके और आरक्षण खत्म कर सके. सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने भी संविधान और आरक्षण को लेकर नैरेटिव बनाते हुए नजर आए थे. इसका नतीजा रहा कि दलित समुदाय के बीच यह बात बैठ गई कि बीजेपी सत्ता में आई तो संविधान को बदल देगी.
इसके चलते दलित समाज ने बड़ी संख्या में बीजेपी ही नहीं बल्कि बसपा जैसे दलित आधार वाले दलों का साथ छोड़कर इंडिया गठबंधन के पक्ष में खड़े नजर आए. इसका नतीजा है कि सपा और कांग्रेस को बढ़त मिल रही है. बीजेपी इस नैरेटिव को चुनाव में नहीं तोड़ सकी.
BJP in UP: बीजेपी की सोशल इंजीनियरिंग पर भारी पड़ा पीडीए फॉर्मूला
सपा पर हमेशा से यह आरोप लगते रहे हैं कि वे सिर्फ एक समुदाय या जाति के लोगों को ही टिकट देने में वरीयता देते हैं. लेकिन इस बार अखिलेश यादव ने काफी सतर्क रहते हुए जातिगत समीकरणों को देखते हुए प्रत्याशी उतारे.अखिलेश यादव ने इस बार यूपी में चार मुस्लिम और पांच यादव उम्मीदवार ही उतारे थे. कुर्मी समुदाय से 10 तो मल्लाह समाज के 5 और कुशवाहा-मौर्य-शाक्य से 6 प्रत्याशी उतारे थे. इसके अलावा राजभर समुदाय से भी एक प्रत्याशी दिया था. ठाकुर और ब्राह्मणों को गिनती के टिकट दिए थे. सपा ने इस बार सुरक्षित सीटों के साथ-साथ दो सामान्य वर्ग की सीटों पर भी दलित समुदाय के प्रत्याशी उतारने का प्रयोग किया था.
BJP in UP: उम्मीदवार का गलत चयन
चुनाव की शुरुआत के साथ लग रहा था कि भाजपा ने प्रत्याशियों के चयन में काफी गलतियां की. स्थानीय लोगों के गुस्से को दरकिनार करते हुए ऐसे लोगों को टिकट दिए गए, जो मतदाताओं को शायद पसंद नहीं आए. इसलिए बहुत सारे मतदाता जो भाजपा को वोट देते आ रहे थे, उन्होंने घर से निकलना ठीक नहीं समझा. गलत कैंडिडेट सलेक्शन कार्यकर्ताओं को भी पसंद नहीं आया और उन्होंने मनमुताबिक काम नहीं किया. नतीजा भाजपा को मिलने वाले मत प्रतिशत में भारी गिरावट दर्ज की गई. 2019 में जहां भाजपा को तकरीबन 50 फीसदी मत मिले थे. वहीं इस बार 42 फीसदी वोट मिलता नजर आ रहा है. यानी कि मतप्रतिशत में लगभग 8 फीसदी की गिरावट आई है.
चूंकि इस बार प्रधानमंत्री मोदी के दिए नारे 400 पार…. को बीजेपी प्रत्याशियों ने ऐसे लिया कि सारा चुनाव मोदी के चेहरे पर लड़ा जा रहा है, विकास और गरीब कल्याण योजनाओं के सहारे चुनावी मैदान में हैं. तो जमीन पर उतर कर मेहनत करने की क्या जरूरत है. ये नेरेटिव भी यूपी में बीजेपी की सीटों को कम रहने में हुआ है.
BJP in UP: बेरोजगारी और पेपर लीक भी बना बड़ा मुद्दा
भाजपा सरकार पर लगातार ये आरोप लग रहे हैं कि वे नौकरी नहीं दे पा रहे हैं. पेपर लीक हो जाता है. इसके लिए कोई पुख्ता इंतजाम नहीं किए जाते. बहुत सारे युवा वर्षों से प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं, लेकिन अब उनकी उम्र निकल रही है. वे परीक्षा नहीं दे पा रहे हैं. युवाओं में यह एक बड़ा मुद्दा था. इसी वजह से जमीन पर भारी संख्या में युवा भाजपा से काफी नाराज दिखे.
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BJP in UP: मुसलमानों ने बदला वोटिंग पैटर्न
मुसलमानों का एकमुश्त वोट इंडिया गठबंधन के पक्ष में गया है. इसके चलते एनडीए और बसपा का सारा खेल बिगड़ गया. यूपी में 20 फीसदी के करीब मुस्लिम मतदाता है, बसपा प्रमुख मायावती बड़ी संख्या में मुस्लिम समुदाय के प्रत्याशी उतारे थे जबकि सपा 4 और कांग्रेस ने यूपी में सिर्फ दो मुस्लिम को प्रत्याशी बनाया था. इसके बाद भी मुसलमानों ने बसपा के मुस्लिम प्रत्याशियों के ऊपर इंडिया गठबंधन के गैर-मुस्लिम प्रत्याशियों को अहमियत दी.
मुस्लिमों ने चुनाव के दौरान पूरी तरह खामोशी अख्तियार कर रखा और एकमुश्त होकर वोटिंग करने का दांव इंडिया गठबंधन के लिए मुफीद साबित हुआ है.