CAA, NRC, and UCC: क्या है CAA, NRC,और UCC, जिस पर ममता बनर्जी को है एतराज
समझें आसान शब्दों में
CAA, NRC, and UCC: ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस (TMC) ने बुधवार को लोकसभा चुनाव के लिए अपना घोषणा पत्र जारी किया. पार्टी ने कहा, ‘हमारा स्टैंड है कि बंगाल में CAA लागू नहीं होगा, NRC और समान नागरिक संहिता (UCC) भी लागू नहीं होने देंगे.’
सीएए, यूसीसी और एनआरसी तीनों ऐसे कानून हैं जिसको लेकर देश भर में लंबी बहस चली है लेकिन तीनों के तहत अधिकार और प्रावधान में कई बुनियादी फर्क हैं. आम तौर पर ज्यादातर लोग इन तीनों कानूनों में बारीकी से अंतर नहीं कर पाते. सीएए नागिरकता देने वाला कानून है, यूसीसी देश में सभी नागरिकों को समान कानून का कवच देता है जबकि एनआरसी अवैध नागरिकों की पहचान कराता है. खास बात ये कि तीनों कानून जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने की तरह ही बीजेपी के एजेंडे में पहले से शामिल है.
CAA, NRC, and UCC: क्या है सीएए कानून?
सीएए यानी नागरिकता संशोधन कानून साल 2019 में संसद में पारित हुआ था. इसे 11 दिसंबर को किया गया था. संसद में 125 वोट इस एक्ट के पक्ष में पड़े थे जबकि 105 वोट इसके विरोध में पड़े थे. एक दिन बाद ही राष्ट्रपति ने इस विधेयक पर 12 दिसंबर को हस्ताक्षर कर इसकी मंजूरी दे दी थी. एक्ट के पारित होने के बाद मोदी सरकार के मंत्रियों ने इसे देश के लिए बड़ी उपलब्धि बताया जबकि विपक्षी दलों के साथ-साथ देश के मुस्लिम संगठनों ने इसका कड़ा विरोध किया था.
देश में भारी विरोध के चलते ही इस कानून को पांच साल तक लागू नहीं किया गया लेकिन ऐन चुनाव से पहले इसकी अधिसूचना जारी कर देने का अपना खास मकसद है. अब एक बार फिर यह कानून विपक्षी दलों के निशाने पर है. जबकि सरकार ने फिर से साफ किया है कि सीएए देश की जरूरत है.
सीएम केजरीवाल से भगवंत मान ने की मुलाकात, बोले उनके साथ हो रहा अपराधियों जैसा व्यवहार
CAA, NRC, and UCC: सीएए पर सरकार का तर्क
केंद्र सरकार का तर्क है कि सीएए का मकसद धार्मिक तौर पर उत्पीड़न का शिकार हुए लोगों को भारत में नागरिकता देना है. इसे भारत के पड़ोसी देशों मसलन पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के उन लोगों को भारत में रहने का कानूनी अधिकार दिया जाएगा जो अपने-अपने मुल्क में मजहबी भेदभाव के शिकार हुए हैं. इसमें गैर-मुस्लिमों मसलन हिंदू, सिख, जैन, पारसी और ईसाई शामिल हैं. विपक्षी दलों ने कानून के इस प्रावधान का विरोध किया है कि और सवाल उठाया है कि आखिर इनके साथ ही इन तीन देशों के पीड़ित मुस्लिमों को भी क्यों नहीं शामिल किया गया है?
CAA, NRC, and UCC: सीएए और एनआरसी में अंतर
अक्सर लोग सीएए और एनआरसी में अंतर नहीं कर पाते. इस पर सियासत भी खूब होती है. सीएए धार्मिक तौर पर गैर-मुस्लिम पीड़ितों को भारत में नागरिकता देने का कानून है जबकि एनआरसी यानी नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन बिल का संबंध भारत में अवैध रूप से रह रहे लोगों का डाटा तैयार करने से है. केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह कह चुके हैं कि असम की तरह पूरे देश में एनआरसी लागू किया जाएगा. सा्थ ही उन्होंने सीएए भी लागू करने की बात कही थी. सरकार साफ कर चुकी है कि एनआरसी के जरिए केवल घुसपैठियों की गिनती की जाएगी और उन्हें ही देश से बाहर किया जाएगा.
CAA, NRC, and UCC: अब यूसीसी को भी समझें
यूसीसी यूनिफॉर्म सिविल कोड यानी समान नागरिकता कानून है. यह भी बीजेपी के बड़े एजेडों में से एक है. हालांकि गोवा में सीएए पहले से लागू है इसके बावजूद देश भर में इसकी उपयोगिता और व्यावहारिकता को लेकर बहस होती रही है. अब इसी साल फरवरी में उत्तराखंड में भी इसे लागू कर दिया गया है. इसके तहत राज्य के सभी धर्मों और समुदायों के लिए एक समान कानून लागू करने का प्रावधान है.
4 फरवरी 2024 को उत्तराखंड विधानसभा में यूसीसी को मंजूरी दी गई थी. समान नागरिकता कानून का मुद्दा बीजेपी के पुराने मुद्दों में से एक है. साल 2014 में ही केंद्र में सरकार बनने के बाद से ही बीजेपी इसे लागू करने पर जोर दे रही थी.
उत्तराखंड की पुष्कर सिंह धामी सरकार कह चुकी है कि यूसीसी का विरोध भ्रामक है. धार्मिक और सांस्कृतिक भिन्नताओं को बिना नुकसान पहुंचाए सभी धर्मों के लोगों के लिए सीएए कानून पारित किया गया है.
www.facebook.com/tarunrath