CJI पर महाभियोग का नोटिस खारिज, सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकती है कांग्रेस

नई दिल्ली: प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ दिए गए महाभियोग प्रस्ताव के नोटिस को राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू ने सोमवार (23 अप्रैल) को ठुकरा दिया है. ऐसे में अब उम्मीद की जा रही है कि कांग्रेस सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकती है. कांग्रेस नेता पहले ही इस बारे में अपनी राय जाहिर कर चुके हैं. पार्टी के एक नेता ने कहा था, ‘‘सभापति के फैसले को चुनौती दी जा सकती है. इसकी न्यायिक समीक्षा हो सकती है.’’ उन्होंने कहा था कि कांग्रेस इस उम्मीद के साथ प्रधान न्यायाधीश पर ‘नैतिक दबाव’ बना रही है कि महाभियोग प्रस्ताव पेश किए जाने पर वह अपने न्यायिक उत्तरदायित्व से अलग हो जाएंगे.

कांग्रेस के एक नेता ने कहा था कि पहले भी महाभियोग का सामना करने वाले न्यायाधीश न्यायिक कार्य से अलग हुए थे और प्रधान न्यायाधीश को भी यही करना चाहिए. उन्होंने कहा, ‘‘यह सिर्फ परिपाटी है, इसके लिए कोई कानूनी या संवैधानिक बाध्यता नहीं है.’’

सीजेआई को पद से हटाने के प्रस्ताव पर नायडू ने किया था विचार-विमर्श
उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा को पद से हटाने संबंधी कांग्रेस तथा अन्य दलों की ओर से दिए गए नोटिस पर बीते 22 अप्रैल को अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल सहित संविधानविदों और कानूनी विशेषज्ञों से विचार-विमर्श किया था. राज्यसभा सचिवालय के सूत्रों के अनुसार नायडू ने याचिका को स्वीकारने अथवा ठुकराने को लेकर संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप, पूर्व विधि सचिव पी.के. मल्होत्रा और विधायी मामलों के पूर्व सचिव संजय सिंह सहित अन्य विशेषज्ञों से कानूनी राय ली थी.

अधिकारियों के अनुसार नायडू ने मामले की गंभीरता के मद्देनज़र हैदराबाद के अपने कुछ कार्यक्रमों को रद्द कर कानूनविदों के साथ बैठक की थी. सचिवालय के अधिकारियों ने बताया कि उन्होंने (वेंकैया नायडू ने) राज्यसभा सचिवालय के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ भी विचार-विमर्श किया और उन्होंने उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश बी. सुदर्शन रेड्डी से भी बातचीत की.

संविधान विशेषज्ञों ने किया था प्रस्ताव का विरोध
संवैधानिक विशेषज्ञों ने बीते 20 अप्रैल को कहा था कि कांग्रेस नीत विपक्ष का देश के प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा को पद से हटाने की कार्यवाही शुरू करने के लिये दिये गए नोटिस से राजनीति की बू आती है और यह संसद में पारित नहीं हो पाएगा. विशेषज्ञों का मानना था कि यह फैसला न तो शक्तियों का दुरूपयोग है और न ही कोई कदाचार है.

महाभियोग के कदम ‘न्यायपालिका की स्वतंत्रता’ के लिए खतरा
महाभियोग के कदम को प्रमुख विधिवेत्ता जैसे सोली सोराबजी, उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीशों एस एन ढींगरा और अजित कुमार सिन्हा और वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने ‘प्रेरित’ और ‘राजनीतिक’ बताया. अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली तत्कालीन राजग सरकार के दौरान अटॉर्नी जनरल रहे सोराबजी ने प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ पद से हटाने की कार्यवाही शुरू करने का नोटिस देने के लिए तीखा हमला बोला और कहा, ‘न्यायपालिका की स्वतंत्रता के साथ यह सबसे खराब बात हो सकती है.’ उन्होंने कहा कि यह घटना लोगों के मन में न्यायपालिका में विश्वास और भरोसे को हिला देगी.

महाभियोग प्रस्ताव को बताया ‘प्रेरित’
सोराबजी के विचार को न्यायमूर्ति ढींगरा ने भी साझा किया और कहा कि यह राजनीतिक लाभ हासिल करने का एक प्रयास है. उन्होंने गत 12 जनवरी को न्यायालय के चार वरिष्ठ न्यायाधीशों न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर, न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एम बी लोकुर और न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ की ओर से आहूत संवाददाता सम्मेलन की ओर परोक्ष रूप से इशारा किया जिसमें वे मुद्दे उठाये गए थे जो कि इस नोटिस में प्रतिबिंबित हो रहे हैं. उन्होंने कहा कि न्यायालय के न्यायाधीशों के बीच असंतोष इस कदम को उचित नहीं ठहराता.

उन्होंने कहा, ‘यह नोटिस प्रेरित है और संसद सदस्य यह जानते हुए राजनीतिक लाभ चाहते हैं कि उनके पास प्रधान न्यायाधीश को हटाने की कार्यवाही के लिए पर्याप्त संख्या बल नहीं है. न्यायाधीशों के बीच असंतोष का यह मतलब नहीं कि आप पद से हटाने की कार्यवाही शुरू कर दें. असंतोष जीवन का एक हिस्सा है.’

महाभियोग को बताया न्यायपालिका के लिए एक ‘दुखद दिन’
न्यायमूर्ति सिन्हा और वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने इसे न्यायपालिका के लिए एक ‘दुखद दिन’ और उच्चतम न्यायालय के उस फैसले की ‘केवल एक प्रतिक्रिया’ करार दिया, जिसमें उसने न्यायाधीश लोया की कथित संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु की जांच की मांग वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया था. लोया सोहराबुदीन शेख फर्जी मुठभेड़ मामले की सुनवायी कर रहे थे.

महाभियोग प्रस्ताव ‘विशुद्ध दलीय राजनीति’
पूर्व लोकसभा महासचिव सुभाष सी. कश्यप ने कहा कि प्रस्ताव ‘विशुद्ध दलीय राजनीति’ से प्रेरित है. सुभाष कश्यप ने दावे के साथ कहा कि संविधान के प्रावधानों के तहत सिर्फ राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाया जा सकता है. अनुच्छेद 124 में न्यायाधीश को कदाचार या अयोग्यता सिद्ध होने की सूरत में हटाने की बात कही गई है. न्यायाधीश पर महाभियोग चलाने का कहीं उल्लेख नहीं है. कश्यप ने जोर देकर कहा कि महाभियोग प्रस्ताव बिल्कुल सफल नहीं होने वाला है. उन्होंने कहा, “महाभियोग प्रस्ताव का मकसद न्यायपालिका और सरकार, यानी सत्ताधारी दल को परेशान करना है. यह पारित नहीं होने वाला है.”

सीजेआई पर प्रस्ताव ‘आत्मघाती कदम’
सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश रेड्डी ने कहा, “महाभियोग प्रस्ताव लाने वाले राजनीतिक दलों के लिए यह आत्मघाती कदम है.” उन्होंने दावे के साथ कहा, “प्रथम दृष्टया प्रधान न्यायाधीश पर किसी कदाचार का आरोप तय करने के लिए कोई साक्ष्य नहीं है.” उन्होंने कहा कि अनियमितता से कदाचार तय नहीं होता है.

7 दलों ने दिया था महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस
बीते 20 अप्रैल को कांग्रेस और छह अन्य विपक्षी दलों ने देश के प्रधान न्यायाधीश पर ‘कदाचार’ और ‘पद के दुरुपयोग’ का आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस दिया था. महाभियोग प्रस्ताव पर कुल 71 सदस्यों ने हस्ताक्षर किए थे, जिनमें सात सदस्य सेवानिवृत्त हो चुके हैं. महाभियोग के नोटिस पर हस्ताक्षर करने वाले सांसदों में कांग्रेस, राकांपा, माकपा, भाकपा, सपा, बसपा और इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) के सदस्य शामिल थे. यह कदम प्रधान न्यायाधीश के नेतृत्व वाली उच्चतम न्यायालय की एक पीठ द्वारा उन याचिकाओं को खारिज किये जाने के एक दिन बाद आया है, जिनमें विशेष सीबीआई न्यायाधीश बी एच लोया की मृत्यु की स्वतंत्र जांच की मांग की गई थी.

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