Dev Diwali 2024: देवता मनाते हैं देव दीपावली का पर्व, इसके पीछे क्या है पौराणिक मान्यता?
Dev Diwali 2024: देव दीपावली का शाब्दिक अर्थ है, देवताओं के द्वारा मनाई जाने दिवाली। जैसे दीपावली रोशनी का त्योहार है, वैसे ही देव दीपावली भी दीयों और रोशनी का त्योहार है। हिंदू सनातन धर्म में इस दिन की विशेष महत्ता होती है। इस दिन देवता स्वर्ग से उतर कर इस धरती पर दीपदान करते हैं। देव दीपावली का पर्व, कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है।
आखिर क्यों कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही देव दीपावली का पर्व मनाया जाता है। इसके पीछे एक पौराणिक कथा है……
Dev Diwali 2024: देव दीपावली की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव के बड़े पुत्र और देवताओं के सेनापति भगवान कार्तिकेय ने तारकासुर का वध कर दिया था। पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए तारकासुर के तीनों बेटे तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली ने प्रण लिया। इन तीनों को त्रिपुरासुर के नाम से जाना जाता था।
तीनों ने कठोर तप कर ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया और उनसे अमरत्व का वरदान मांगा लेकिन ब्रह्म देव ने उन्हें यह वरदान देने से इनकार कर दिया और कहा कुछ और मांगो।
जिसके बाद त्रिपुरासुर ब्रह्म देव से वर मांगते हैं कि हमारे लिए तीन पुरियां जब अभिजित नक्षत्र में एक पंक्ति में हो और अत्यंत शांत होकर असंभव रथ पर सवार असंभव बाण से मारना चाहे तब ही हमारी मृत्यु हो, जिसके बाद ब्रह्म तथास्तु कहते हैं। वरदान के बाद त्रिपुरासुर बलशाली होकर हर कहीं आतंक मचाने लगते हैं, तीनों जहां भी जाते लोगों और ऋषि मुनियों पर अत्याचार करने लगते हैं।
देवता भी उनके आतंक से परेशान होकर भगवान शिव के पास जाते हैं और अपनी व्यथा सुनाते हैं, जिसके बाद भगवान शिव त्रिपुरासुर का संहार करने का संकल्प लेते हैं।
Dev Diwali 2024: भगवान शंकर ने किया त्रिपुरासुर का वध
भगवान शिव ने त्रिपुरासुर के वध के लिए पृथ्वी को रथ बनाया, सूर्य और चंद्रमा को पहिए बनाया, सृष्टि सारथी बने, भगवान विष्णु बाण बने, वासुकी धनुष की डोर बने और मेरु पर्वत धनुष बने। फिर भगवान शिव उस असंभव रथ पर सवार होकर असंभव धनुष पर बाण चढ़ाते हुए अभिजित नक्षत्र में तीनों पुरियों के एक पंक्ति में आते ही त्रिपुरासुर पर आक्रमण करते हैं और प्रहार होते ही तीनों पुरियां जलकर भस्म हो जाती है।
त्रिपुरासुर यानी तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली का अंत होता है। त्रिपुरासुर के वध के बाद भगवान शिव त्रिपुरारी के नाम से जाने गए। बता दें कि त्रिपुरासुर का जब वध हुआ उस दिन कार्तिक पूर्णिमा था, त्रिपुरासुर के वध की खुशी में सभी देवता प्रसन्न होकर भगवान शिव की नगरी काशी में दीप दान कर खुशियां मनाई गई।
तभी से कार्तिक पूर्णिमा का तिथि को देव दिवाली कहा गया क्योंकि सभी देवता पृथ्वी पर आकर दिवाली मनाए थे इसलिए इसे देव दीपावली कहा गया।
Dev Diwali 2024: काशी में ही क्यों मनाया जाता है यह पर्व?
काशी, जिसे भगवान शिव की नगरी कहा जाता है। सारे देवता काशी में इस पर्व को मनाने के लिए इकट्ठा होते हैं। कहते हैं कि जब त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध, भगवान शिव ने किया तो सभी देवतागण भगवान शिव से मिलने काशी नगरी पहुंचे थे। जहां देवताओं ने गंगा स्नान किया और फिर दीपदान कर खुशियां मनाई। इसलिए काशी में इस पर्व को बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है।
इस दिन मां गंगा की भी पूजा की जाती है। काशी के हर घाट पर दीए जलाकर, देवताओं के धरती पर आगमन को लेकर उनका स्वागत किया जाता है।
Dev Diwali 2024: पूजा-विधि
प्रदोष काल में सबसे पहले ईशान कोण में आप एक चौकी की स्थापना करें और इस पर एक पीला कपड़ा बिछा लें। इस चौकी पर कुछ दानें अक्षत के रख लें और इस आसन पर भगवान विष्णु, भगवान गणेश और भगवान शिव को स्थापित कर लें।
उसके ऊपर कुछ दानें अक्षत के रख लें। पुष्प से सभी प्रतिमाओं पर गंगाजल का छिड़काव करें। इसके पश्चात् दीप प्रज्वलित कर लें।
चंदन के तिलक से भगवान विष्णु, भगवान शिव और गणपति जी के मस्तक को सुशोभित करें। गणेश जी से शुरूआत करते हुए, सभी को अक्षत, पुष्प, पुष्प माला, धूप, मौली अर्पित करें। भगवान शिव को बिल्व पत्र, भांग, पंचामृत, धतूरा आदि अर्पित करें। भगवान विष्णु को तुलसी दल अवश्य अर्पित करें और गणेश जी को दूर्वा चढ़ाएं। इसके पश्चात् भोग लगाएं, भोग में खीर, पंजीरी, मिठाई, मौसमी फल आदि चढ़ा सकते हैं।
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पूजा में दक्षिणा रखें। आप चाहें तो इस दिन भगवान विष्णु जी की विशेष कृपा के लिए विष्णु सहस्रनाम का पाठ भी कर सकते हैं।
संभव हो पाए तो भगवान शिव के मंदिर में जाकर शिवलिंग का पंचामृत से अभिषेक करें। इस दिन दीप-दान का बहुत महत्व है तो आप विष्णु, शिव जी, पीपल के पेड़ और तुलसी जी को अवश्य दीप दान करें।