Havoc of heat: गर्मी का कहर हो रहा जानलेवा.. कितनी गर्मी बर्दाश्त कर सकता है इंसान का शरीर?

Havoc of heat: गर्मी का कहर हो रहा जानलेवा.. कितनी गर्मी बर्दाश्त कर सकता है इंसान का शरीर?

Havoc of heat: गर्मी अपने चरम पर है. उत्तर भारत में गर्मी का प्रकोप जारी है, लोगों को गंभीर स्वास्थ्य खतरे का सामना करना पड़ रहा है. राजस्‍थान से लेकर यूपी तक इस हीटवेब से लोगों की मौत हो रही है. सुबह होते ही दोपहर की धूप का एहसास होने लगता है. अब हालात इतने खराब हो गए हैं कि रात में भी तापमान अपने रिकॉर्ड तोड़ने लगा है.

अब सवाल उठता है कि हमारा शरीर बाहर का कितना अधिक तापमान झेल सकता है? कई एक्‍सपर्टस बताते हैं कि चाहे गर्मी हो या सर्दी हमारे शरीर के अंदर का तंत्र हमेशा शरीर का तापमान 37.5 डिग्री सेल्सियस बनाए रखने के लिए काम करता है.

Havoc of heat: ज्‍यादा तापमान हो सकता है बॉडी के लिए खतरनाक

वैज्ञानिकों के अनुसार,  शरीर के तापमान की एक सीमित सीमा – 36C से 37.5C ​​के भीतर सबसे अच्छा काम करता है. एक बार 40C तक पहुंचने पर, यह कम आर्द्रता के स्तर के साथ भी खतरनाक हो सकता है और अब जब तापमान 50C के करीब है तो स्थिति गंभीर है.

मानव शरीर 37.5 डिग्री सेल्सियस में काम करने के लिए बना है. लेकिन उससे दो-चार डिग्री ऊपर और दो-चार डिग्री नीचे तक के तापमान को एडजस्ट करने में शरीर को दिक़्क़त नहीं आती.

दिमाग़ का पीछे का हिस्सा जिसे ‘हाइपोथैलेमस’ कहते हैं, वो शरीर के अंदर तापमान को रेग्यूलेट करने के लिए ज़िम्मेदार होता है. पसीना निकलना, सांस लेना (मुंह खोल कर), दिक़्क़त होने पर खुली हवादार जगह पर जाना, ये सब एक तरह से शरीर के अंदर बने वो सिस्टम है जिससे शरीर अपना तापमान नियंत्रित रखता है.

अक़्सर तापमान बढ़ने पर हमारी धमनियाँ ( ब्लड वेसल्स) भी चौड़ी हो जाती हैं ताकि खून ठीक से शरीर के हर हिस्से तक पहुँच सके.

Havoc of heat: इन बातों से भी पड़ता है प्रभाव

वैज्ञानिक इसके साथ उन बाह्य कारकों को भी जिम्‍मेदार मानते हैं कि मसलन कितनी देर आदमी उस तापमान में एक्सपोज़ है, मौसम में आर्द्रता कितनी है, शरीर पसीना/पानी को कैसे निकाल रहा है, शारीरिक गतिविधि का स्तर कैसा है, इंसान ने कैसे कपड़े पहने है, अनुकूलन की स्थिति क्या है आदि…ये तमाम बातें भी शरीर को बढ़ते तापमान के साथ एडजस्ट करने में मदद करती हैं.”

अक्सर गर्मी के साथ मौसम में आर्द्रता यानी ह्यूमिडिटी भी बढ़ जाती है, जिससे पसीना ज़्यादा निकलता है. ऐसा इसलिए है क्योंकि शरीर गर्मी से छुटकारा पाने के लिए पसीने के वाष्पीकरण पर बहुत अधिक निर्भर करता है. पसीने का वाष्पीकरण तापमान पर निर्भर नहीं है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि हवा में कितना पानी है”.

Havoc of heat: अचानक तापमान बढ़ना हो सकता है खतरनाक

जब शरीर लम्बे समय तक सूर्य की किरणों को सीधे झेलती है तो शरीर में पानी की कमी होने लगती है. पसीना और पेशाब के रास्ते शरीर से पानी निकलता है. अगर बाहर से पानी/तरल पदार्थ शरीर के अंदर नहीं जाता तो शरीर का तापमान सामान्य ( 37.5 डिग्री ) से ऊपर की ओर बढ़ने लगता है.

इस वजह से बुख़ार जैसी स्थिति पैदा हो सकती है. कभी-कभी उससे भी भयानक स्थिति पैदा हो जाती है. इस अवस्था को हाइपरथर्मिया कहते हैं.

अगर बाहर का तापमान धीरे-धीरे बढ़ता है तो मानव शरीर कुछ हद तक इसे बर्दाश्त करने के लिए तैयार रहता है. लेकिन मुश्किल तब आती है जब अचानक से तापमान बढ़ जाता है.”

Havoc of heat: पांच वजहें जो बढ़ा रही हैं गर्मी

1. ग्लोबल वार्मिंग 

ग्लोबल वार्मिंग,भीषण गर्मी की अहम वजह है . इसकी वजह से अब सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि दुनिया भर में तापमान बढ़ने की खबरें हैं. यहां तक की लंदन में भी हीटवेव के अलर्ट जारी किए गए हैं. हर जगह वेदर पैटर्न में बदलाव हुआ है.

2. अल नीनो 

वैज्ञानिकों के मुताबिक, भारत में भीषण गर्मी का एक कारण अल नीनो प्रभाव है, जो वैश्विक मौसम पैटर्न में बदलाव के लिए जिम्मेदार है. अल नीनो की स्थिति में हवाएं उल्टी बहती हैं और इससे समुद्री सतह का तापमान भी बढ़ता है, जो दुनिया के मौसम को प्रभावित करता है. हालांकि, जल्द ही अल नीनो कमजोर पड़ने लगेगा और ला नीना प्रभावी हो जाएगा. प्रशांत महासागर में पानी जब ठंडा होने लगता है तो उसे ला नीना कहते हैं. ला नीना के प्रभावी होने के बाद इस साल भारत में अच्छा मानसून आने की संभावना है.

HeatStroke: इस भीषण गर्मी में हीट स्‍ट्रोक हो सकता है जानलेवा, लक्षणों को पहचान कर, करें बचाव

3. कंक्रीट के जंगल बनते शहर

ज्यादातर मानवीय गतिविधियों, इमारतों और शहरी क्षेत्रों में बुनियादी ढांचों की वजह से होता है, जिससे किसी भी हरे भरे प्राकृतिक इलाके की तुलना में ज़्यादा गर्मी अवशोषित होती है और लंबे समय तक बनी रहती है. इसी वजह से वार्म नाइट की स्थिति बनने लगी है, जिससे रात में गर्मी से आराम नहीं मिलता. दिल्ली की बात करें तो यहां का बिल्ड अप एरिया लगातार बढ़ रहा है. बिल्ड अप एरिया में हो रही वृद्धि सीधे तौर पर गर्मी से जुड़ी है.

4. पश्चिमी विक्षोभ 

उत्तर भारत की पहाड़ियों में बारिश और बर्फबारी का एकमात्र स्रोत उष्णकटिबंधीय तूफान हैं, जिन्हें पश्चिमी विक्षोभ के रूप में जाना जाता है.दिल्ली और आसपास के इलाकों में दिन के समय भीषण गर्मी की वजह राजस्थान और दक्षिण हरियाणा से आने वाली शुष्क और गर्म पश्चिमी हवाएँ हैं. पश्चिमी विक्षोभ के प्रभाव से शहर में आंशिक रूप से बादल छाए हुए हैं, जिससे रात का तापमान भी कम नहीं हो रहा है और रातें गर्म बनी हुई हैं.

5. कार्बन डाईऑक्साइड  

इसके अलावा लगातार पेट्रोल, डीजल का इस्तेमाल. जंगलों को कटना. कम हरियाली होना, इंडस्ट्री का बढ़ना, इन सबसे ग्रीनहाउस गैसों का जमावड़ा होता है. ज्यादातर कार्बन डाईऑक्साइड और मीथेन. इसकी वजह से धरती के वायुमंडल में गर्मी फंस जाती है. इससे पृथ्वी पर मौजूद हर चीज का औसत तापमान बढ़ जाता है. चाहे वह जमीन हो. जल हो या हवा. इसकी वजह से मौसमी बदलाव होते हैं. चरम गर्मी यानी हीटवेव की घटनाएं बढ़ जाती हैं.

Related Articles

Back to top button